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Home CineYatra

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/01/25
in CineYatra, फिल्म/वेब रिव्यू
7
रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

5 अगस्त, 2019 के दिन भारत ने कश्मीर से धारा 370 हटाई तो पड़ोसी पाकिस्तान के एक जनरल ने हिन्दुस्तान को सबक सिखाने के लिए एक खूंखार खलनायक जिम को भाड़े पर लिया। तीन साल बाद जिम ने भारत पर एक अजीब किस्म का हमला करने का प्लान किया। जिम को रोकने का काम मिला पठान को जो कभी भारत का खुफिया एजेंट था लेकिन अब वह गायब है। उसकी मदद को आगे आई पाकिस्तान की खुफिया एजेंट रह चुकी रुबीना। ये दोनों मिले तो दिल खिले और धमाके भी हुए। धमाके हुए तो खलनायक हारा और देशभक्त जीते। यही तो होता आया है ‘बॉलीवुड’ की फिल्मों में।

आप चाहें तो पूछ सकते हैं कि जिम ने तीन साल का इंतज़ार क्यों किया? क्योंकि इन तीन सालों में उसने कोई तीर मारा हो, फिल्म यह नहीं दिखाती। और जो तीर उसने तीन साल बाद भी मारा उसका जुगाड़ भी उसने नहीं किसी और ने किया। आप चाहें तो यह भी पूछ सकते हैं कि हिन्दी फिल्मों में भारत के खुफिया एजेंट हमेशा गायब और रिटायर क्यों रहते हैं? यह सवाल तो खैर आप पूछ ही लीजिए कि भारत का हीरो और पाकिस्तान की हीरोइन तो हम ‘टाईगर’ सीरिज़ की फिल्मों में भी देख चुके हैं, तो इस फिल्म में नया क्या है? इनके अलावा भी आप कई सारे सवाल पूछ सकते हैं, लेकिन यह फिल्म आपके किसी सवाल का कोई जवाब नहीं देती है, तो भला हम क्यों दें।

तलाशने बैठेंगे तो सिद्धार्थ आनंद की लिखी इस फिल्म की बहुत ही साधारण कहानी और उस पर लिखी श्रीधर राघवन की एक साधारण पटकथा में से ढेरों छेद आप और हम मिल कर निकाल देंगे। लेकिन इस फिल्म का मकसद आपको कोई महान कहानी या कोई बहुत ही जानदार पटकथा दिखाना था भी नहीं। इस फिल्म का मकसद है आपको उन रंगीन मसालों की बारिश में भिगोना जिसके लिए ‘बॉलीवुड’ जाना जाता है। चिकने-चुपड़े चेहरे, कसरती जिस्म, ज़बर्दस्त एक्शन, तेज़ रफ्तार, रोमांच, मनभावन विदेशी लोकेशंस, रंग-बिरंगा माहौल… एक आम दर्शक को भला और क्या चाहिए?

पठान लावारिस है। कहता है कि भारत ने उसे पाला है। हालांकि ट्रेलर में वह जिसे अपना ‘घर’ बताता है वह जगह अफगानिस्तान में है। उधर रुबीना का किरदार कहता है कि उसके देश पाकिस्तान या वहां की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. की भारत से कोई दुश्मनी नहीं है बल्कि वहां का एक सनकी जनरल हिन्दुस्तान को तबाह करना चाहता है। आपका मन करे तो रुबीना पर यकीन कर लीजिए। सच तो यह है कि इस फिल्म में दिखाया गया एक भी… जी हां, एक भी किरदार ऐसा नहीं है जैसा असल में होता है या होना चाहिए। जिम पहले भारत का ही एजेंट था जो बागी हो गया। अब भारत का एक वैज्ञानिक उससे डर कर उसका साथ दे रहा है।

फिल्म हमारे खुफिया तंत्र को जिन बेहद आधुनिक तकनीकों से लैस दिखाती है, उस पर हैरान हुआ जा सकता है। हर थोड़ी देर के बाद जो धुआंधार एक्शन यह परोसती है, उस पर भी हैरान हुआ जा सकता है जिसमें फिज़िक्स, कैमिस्ट्री और बायोलॉजी के तमाम सिद्धांतों की धज्जियां उड़ती दिखती हैं। असल में इस फिल्म का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट इसका एक्शन ही है-बेहद रोमांचक और इतना तेज़ कि न सोचने का मौका मिले, न समझने का। ऊपर से एक सीक्वेंस में टाईगर यानी सलमान खान की एंट्री तो कोला में नमक का काम करती है। वैसे, सवाल यह भी उठता है कि टाईगर एक ही बार क्यों आया, पहले और बाद में भी तो वह आ सकता था, पठान का काम आसान ही होता न? अरे भई, ‘पठान’ बन रही है, आप बीच में ‘करण अर्जुन’ मत घुसाइए।

शाहरुख खान ने मेहनत की है-काफी सारी अपने जिस्म पर, बाकी अपनी अदाओं पर। जंचे हैं वह। दीपिका पादुकोण… उफ्फ…! जॉन अब्राहम कहीं ज़्यादा विश्वसनीय लगे। डिंपल कपाड़िया और आशुतोष राणा काफी असरदार रहे। लोकेशंस, सैट्स, वी.एफ.एक्स., कैमरा जैसे तकनीकी मामलों में फिल्म सुपर कही जा सकती है। गाने रंग-बिरंगे हैं-सुनने में भी, देखने में भी। निर्देशक सिद्धार्थ आनंद की मेहनत इसी काम में ज़्यादा लगती दिखाई दी कि कुछ नया न परोसने के बावजूद कैसे वह दर्शकों को हर मसाला थोड़ा-थोड़ा चटाते रहें ताकि बीच-बीच में उबासियां लेने के बावजूद वे जगे रहें। अब्बास टायरवाला के संवाद हल्के हैं। ढेर सारी तकनीकी व अंग्रेज़ी भाषा फिल्म की पकड़ को कम करती है।

अगर आपने ‘बैंग बैंग’, ‘धूम’, ‘रेस’, (रिव्यू-‘रेस 3’-छी… छी… छी…!) ‘एक था टाईगर’, ‘टाईगर ज़िंदा है’,  (रिव्यू-टाईगर ‘ज़िदाबाद’ है…)  ‘वॉर’ (रिव्यू-यह ‘वॉर’ है मज़ेदार) जैसी फिल्में देखी हैं तो इस फिल्म में आपके लिए कुछ भी नया नहीं है। लेकिन अगर आप इस किस्म की और ‘मिशन इम्पॉसिबल’ जैसी फिल्मों के दीवाने हैं तो यह फिल्म आपको मज़ा देगी। वही मज़ा, जो ‘बॉलीवुड’ हमेशा से देता आया है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-25 January, 2023 in theatres

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: aditya chopraashutosh ranadeepika padudonedimple kapadiaJohn Abrahammanish wadhwapathaanpathaan reviewpathanpathan reviewSalman KhanShahrukh Khanshridhar raghvansiddharth anandsrkyashrajyashraj filmsyrf
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Comments 7

  1. Dilip Kumar says:
    6 days ago

    शाहरुख साहब ज़िंदाबाद 💐

    Reply
  2. Dr. Renu Goel says:
    6 days ago

    Apke reviews hamesha hi bhut bdia hote h

    Reply
    • CineYatra says:
      6 days ago

      धन्यवाद

      Reply
  3. Shiv Om Gupta says:
    6 days ago

    जैसी उम्मीद थी, वही हुआ। बॉलीवुड नहीं सुधारने वाला। कही का ईट और कहीं का रोड़ा, बना दिया मसालेदार बासी पकौड़ा

    Reply
  4. Mohit Kumar says:
    5 days ago

    इसी रिव्यू का इंतजार था
    थैंक यू सर

    Reply
    • CineYatra says:
      5 days ago

      धन्यवाद…

      Reply
  5. Nafees Ahmed says:
    4 days ago

    सत्यवचन।

    दुआ जी के रिव्यु हमेशा ही सटीक होते हैं और इनको पढ़कर फ़िल्म की पटकथा और कलाकारों द्वारा की गई ऐक्टिंग आदि के बारे में भी पता चल जाता है।

    जी मैंने आपका रिव्यु पढ़कर सिनेमा जाने की सोची लेकिन टिकट अपेक्षित समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रहा है और आलम ये है कि इस फ़िल्म ने दो दिनों के भीतर ही 112 करोड़ रुपये का कारोबार किया जोकि अविश्वसनीय है ।

    मैंने अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर बहुतवस्व साथियों के स्टेटस देखें जिसमे की उन्होने “पठान” के थीम सांग का स्टेटस लगाया जा है और फ़िल्म देखने वाले लोगों का हुज्जम उस गाने पर डांस कर रहा है।

    जिस तरह से एक खास ग्रुप जिसको को अभिसार शर्मा जी (,भूतपूर्व NDTV) ‘बॉयकॉट मण्डली’ कहते हैं, इतने कलेक्शन पर तो उनकी नींदे ही उड़ गई हैं।

    इसलिए कहा जाता है कि किसी की इतनी बुराई और विरोध मत करो कि वह खुद के लिए ही नासूर बन जाये।

    लेकिन जिस तय समय पर मुझे टिकट मिलती है तो अवश्य ही ये एक्शन फिल्म देखने ज़रूर जाना है और जैसा कि दुआ जी ने बताया है कि इस फ़िल्म के एक्शन “फ़ीकीज़स, केमिस्ट्री आदि” से मेल नहीं खाते हैं लेकिन हमें इनसे क्या…एक्शन तो एक्शन है।

    धन्यवाद दुआ जी।

    Reply

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