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Home फ़िल्म रिव्यू

रिव्यू-‘रेस 3’-छी… छी… छी…!

Deepak Dua by Deepak Dua
2018/06/15
in फ़िल्म रिव्यू
0
रिव्यू-‘रेस 3’-छी… छी… छी…!

Original Cinema Quad Poster; Movie Poster; Film Poster

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–दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘रेस’ के नाम से याद आती हैं अब्बास-मस्तान के कसे हुए डायरेक्शन में बनीं वो दो जबर्दस्त थ्रिलर फिल्में जो एक-दूजे का सीक्वेल थीं। लेकिन इस वाली फिल्म की कहानी और किरदारों का उनसे कोई नाता नहीं है। अच्छा ही है। वरना उन फिल्मों का भी नाम खराब होता। नाम तो ‘रेस’ ब्रांड का अब भी डूबा ही है और ऐसा डूबा है कि शायद ही कभी उबर सके। खैर…!

किसी विलायती मुल्क में आलीशान जिंदगी जीते हुए गलत धंधे कर रहे एक परिवार के सदस्यों के रिश्ते जैसे दिखते हैं, वैसे हैं नहीं। ये सब एक-दूजे को पछाड़ने में लगे हुए हैं। वजह वही पुरानी है-बिजनेस, पैसे और पॉवर पर कब्जा। ऊपर से प्यार और अंदर से तकरार टाइप की ये कहानियां कई बार देखी-दिखाई जा चुकी हैं। इनमें जो किरदार जितना भोला और विश्वासपात्र दिखता है, वह असल में उतना ही कमीना और कमज़र्फ निकलता है। आप भले यह सोच कर हैरान होते रहें कि स्सालों, इतनी ऐश से रह रहे हो, फिर यह मारामारी क्यों? खैर…!

इस किस्म की फिल्म को वैसी वाली थ्रिलर होना चाहिए जिसमें भरपूर एक्शन हो, रिश्तों का इमोशन हो और रोमांस का लोशन हो। यहां भी ये सब कुछ है। लेकिन इन सबके मिश्रण से जो चू…रण बन कर आया है वो आपको लूज़ मोशन लगवा सकता है। वजह-फिल्म में कहानी के नाम पर जो है उसे आप सीधी-सरल भाषा में चूं-चूं का मुरब्बा (और वो भी फफूंदी लगा हुआ) कह सकते हैं। हथियारों का धंधा कर रहे शमशेर का दोस्त बिरजू (जिसका नाम फोन-स्क्रीन पर बरिजू आता है), अगर हिन्दुस्तान के नेताओं के कारनामों की हार्ड-डिस्क की खबर नहीं लाता तो क्या शमशेर के पास रेस जीतने का कोई और प्लान था…? स्क्रिप्ट सिरे से पैदल है। थ्रिलर फिल्म और इतने सारे छेद…? आपने कहीं जरा-सा भी दिमाग एप्लाई किया तो मुमकिन है कि आपका दिमाग इस बात पर नाराज होकर हड़ताल कर दे कि टिकट खरीदते समय मुझ से पूछा था क्या…? एक्शन है, लेकिन वह आपको दहलाता नहीं है। एक लॉकर से हार्ड-डिस्क चुराने का सीन भी है, लेकिन इस कदर घटिया और बेअसर कि आप चाहें तो अपने बाल नोच सकते हैं। डेढ़ दर्जन लोगों ने मिल कर जो ढेर सारे गाने बनाए हैं उनमें से एक ‘हीरीए…’ को छोड़ कर बाकी सब अझेल हैं। जबरन ठुंसे हुए तो ये सारे ही हैं। और रही बात डायलॉग्स की, तो वो ट्रेलर में सुन कर आप समझ ही गए होंगे कि इस फिल्म को बनाने वाले असल में आप ही से कह रहे थे कि-हमारी फिल्म हमारी फिल्म है, आपकी फिल्म नहीं। खैर…!

एक्टर्स के नाम पर नॉन-एक्टर्स की जमात खड़ी की गई है इस फिल्म में। वैसे भी इस किस्म की फिल्म, जिसमें सलमान खान हों, दूसरे लोगों को अपने चेहरे दिखाने को ही मिल जाएं तो क्या कम है। एक अनिल कपूर ही हैं जो कुछ प्रभावित करते हैं। खुद सलमान तक पूरी फिल्म में फ्लैट रहे हैं। हालांकि रेमो डिसूज़ा ने फिल्म को ‘दर्शनीय’ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। शानदार लोकेशंस, आलीशान इमारतें, भव्य सैट्स, चिकने चेहरे, जम कर मारधाड़, रोहित शैट्टी की फिल्मों से ज्यादा उड़तीं महंगी-महंगी गाड़ियां, सलमान का सीना, जैक्लिन की टांगें… क्या कुछ नहीं है इस फिल्म में। हां, एक डायरेक्टर की छाप नहीं है। एक राईटर का प्रभाव नहीं है। कलाकारों की मौजूदगी का असर नहीं है। अब नहीं है तो नहीं है। लेकिन आपको इससे क्या? आप सलमान के फैन हैं तो जाइए, फूंकिए अपना पैसा ताकि इसका सीक्वेल बन सके। आपका पैसा आपका पैसा है, हमारा पैसा नहीं। खैर…!

अपनी रेटिंग-डेढ़ स्टार

Release Date-15 June, 2018

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: abbas-mustanAnil Kapoorbobby deolJacqueline Fernandezrace 3race 3 reviewRemo DsouzaSalman Khanरेस 3
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