-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
एक लड़की है सयानी-सी। एक दिन एक लड़के से वो मिलती है-बिस्तर में। कुछ देर बाद उसका एक्स-पति आता है। वह उससे भी मिल लेती है-बिस्तर में। अगले महीने आती है यह बैड न्यूज़ कि वह मां बनने वाली है और बच्चे का बाप उन दोनों में से कोई एक नहीं बल्कि दोनों ही हैं। मेडिकल साईंस का यह करिश्मा करोड़ों में एक बार होता है, लेकिन असंभव नहीं है। अब दोनों बापों में ठन जाती है कि बच्चा असल में किसके पास रहेगा। इस ठनाठनी में दोनों बार-बार भिड़ते हैं और उनकी हरकतें देख कर दर्शक हंसते हैं।
इस फिल्म की लगभग पूरी कहानी इसके ट्रेलर में खोली जा चुकी है। वैसे भी यह कोई सस्पैंस फिल्म तो है नहीं। सो, ऐसी फिल्मों में कहानी से ज़्यादा कहानी का ट्रीटमैंट देखा जाता है। और चूंकि यह एक अलग किस्म का सब्जैक्ट है-थोड़ा टैबू सा, थोड़ा हटके वाला, तो हमारे फिल्मकार अक्सर ऐसे विषयों पर कॉमेडी का आवरण चढ़ा कर उन्हें परोसते हैं। फिर चाहे वह ‘बधाई हो’ जैसी फिल्म हो या फिर लगभग ऐसी ही ‘गुड न्यूज़’ जिसमें दिखाया गया था कि कृत्रिम गर्भाधान कराने पहुंचे दो जोड़ों में से क्लिनिक वालों की गलती से एक के स्पर्म दूसरे की बीवी को और दूसरे के स्पर्म पहले की बीवी को दे दिए जाते हैं। वह फिल्म हंसते-गुदगुदाते और अंत में इमोशनल करते हुए अपनी बात कह रही थी और इस फिल्म में भी वही तरीका इस्तेमाल किया गया है।
(रिव्यू-मुबारक हो, ‘गुड न्यूज़’ है)
दरअसल इस संकरे और पेचीदा विषय के इर्दगिर्द पटकथा बुनना आसान नहीं रहा होगा। इसीलिए लेखकों ने इस कहानी को दिल्ली के पंजाबियों के बीच सैट किया है। भव्य पंजाबी शादी में कैरियर पर निगाह रखने वाली लड़की, लाउड पंजाबी बिज़नैसमैन लड़का, उनका मिलना, चट मंगनी, पट ब्याह, खट तलाक, नई जगह, नया लड़का और उसके बाद यह नया स्यापा। इस सारी दौड़-भाग को कॉमेडी की चाशनी में लपेटा गया है और रफ्तार ऐसी रखी गई है कि न आपको सोचने का मौका मिलता है, न दिमाग चलाने का और ज़रा-सा आप चूके तो ट्रेलर तक में सुनाई दिया ‘‘टैस्ट क्या कराना है, बच्चे का बाप मैं ही हूं, तुझे बड़ा कोई ऋषि-मुनि खीर खिला गया’’ जैसा आपत्तिजनक हो सकने वाला संवाद तक आपसे मिस हो जाएगा।
पंजाबी वातावरण में पंजाबी किरदारों वाली चटख फिल्म है यह। वैसे भी हिन्दी फिल्में यह स्थापित कर चुकी हैं कि सारी पंजाबी शादियां तड़कीली, भड़कीली ही होती हैं, सारी पंजाबी लड़कियां चमकीली, चटकीली ही होती हैं, सारे पंजाबी लड़के लाउड और दिमाग से थोड़े लुल्ल ही होते हैं जो जेनरेटर की आवाज़ पर भी बल्ले-बल्ले करते हुए भांगड़ा कर सकते हैं। इस फिल्म में भी ऐसा ही है। पंजाबी लोग चाहें तो इस फिल्म को देखने के बाद शुक्र मना सकते हैं कि इसके किरदारों को हर वक्त दारू पीते और मक्के की रोटी के साथ सरसों का साग खाते हुए नहीं दिखाया गया है। अहसान है यह ‘बॉलीवुड’ वालों का।
हालांकि यह फिल्म आज की युवा पीढ़ी के उतावलेपन, फोकस की कमी, रिश्तों में भ्रम जैसी बातें भी सामने रखती है लेकिन फिल्म बनाने वालों का मुख्य फोकस ऐसी बातों पर है ही नहीं। वे तो बस आपको हल्का-फुल्का एंटरटेनमैंट देना चाहते थे। सो, इसे देखते हुए हंसी आती है, मज़ा आता है, मनोरंजन होता है और दिमाग यहां-वहां भटकने की बजाय किरदारों की सिचुएशन्स के संग चलता है। मुख्यधारा की बिग-बजट मसाला फिल्मों के लिए इतना होना भी काफी है। निर्देशक आनंद तिवारी ने फिल्म को जो यूथफुल कलेवर दिया है उसके चलते युवा दर्शक इसे पॉपकॉर्न टूंगते हुए एक-दूसरे की संगत में एन्जॉय कर सकते हैं। पुरानी हिट फिल्मों के गानों, दृश्यों, संदर्भों का ज़िक्र इस फिल्म को ‘बॉलीवुड’ के चाहने वालों के और करीब ले जाता है।
विक्की कौशल अपनी पूरी एनर्जी के साथ यहां मौजूद हैं। कमाल का कलाकार है यह बंदा। जैसा किरदार मिले, उसमें ढल जाने की अद्भुत समझ है इसके पास। एम्मी विर्क ठीक-ठाक रहे। तृप्ति डिमरी भी साधारण ही रहीं। हालांकि उनके पास ‘दिखाने’ को जो था, वह उन्होंने खूब दिखाया। नेहा धूपिया, शीबा चड्ढा, खयाली सहारण व अन्य सभी कलाकारों का काम सराहनीय रहा। अनन्या पांडेय और उनके ट्रैक की ज़रूरत ही नहीं थी। बड़ी बात यह भी रही कि ज़्यादातर हिन्दी फिल्मों में बोली जाने वाली बनावटी पंजाबी से अलग इस फिल्म में बोली गई ढेर सारी पंजाबी एकदम सटीक लगी और गुदगुदाती रही। गाने-वाने भी चटख, चमकीले लगे। खासकर फिल्म खत्म होने के बाद आया विक्की कौशल वाला गाना तो आराम से बैठ कर एन्जॉय करने लायक है।
चटकीली लोकेशन्स, चमकीले चेहरे, भड़कीला मनोरंजन परोसने वाली ऐसी फिल्में टाइम पास के लिए देखी जाती हैं, देख आइए।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-19 July, 2024 on theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Bollywood me kuch naya entertainment to aya
Or apke review ek dam live 👏👏👏
रिव्यु पढ़कर आज फ़िल्म देखी…. काफी अरसे बाद एक कॉमेडी औऱ थोड़ा हटकर सब्जेक्ट पर बनी फ़िल्म देखी… पैसा वसूल रहा…. वैसे मुझे पंजाबी नहीं आती लेकिन बॉलीवुड क़ी फिल्मों में बोली जाने वाली पंजाबी बखूबी समझ लेता हूं…..
नोट बेड मूवी….*** स्टार तो बनते ही हैँ…
Dekhi nahiN Theatre me .. Par Review badhiya lagaa .. to dekhenge Ott pe aaegi tab
धन्यवाद