-दीपक दुआ…
हर बरस गोआ में होने वाले भारत के सबसे बड़े फिल्मी मेले ‘भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह’ यानी इफ्फी के ‘भारतीय पैनोरमा’ खंड पर फिल्म प्रेमियों की निगाहें उत्सुकता से लगी रहती हैं। 1952 में आरंभ हुए इफ्फी में 1978 में यह खंड सिनेमाई कला की मदद से भारतीय संस्कृति और विरासत के साथ-साथ भारतीय फिल्मों को देश-विदेश के प्रमुख मंचों पर बढ़ावा देने के लिए जोड़ा गया था। इस खंड में बीते एक साल की सर्वश्रेष्ठ भारतीय फीचर व गैर-फीचर फिल्मों को चुन कर उन्हें देसी-विदेशी फिल्म प्रेमियों व फिल्मकारों को दिखाया जाता है। यही कारण है कि इस खंड को ‘भारतीय सिनेमा का आइना’ भी कहा जाता है।
भारतीय पैनोरमा के लिए पहले 21 फीचर व इतनी ही गैर-फीचर फिल्मों की सीमा होती थी लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ कि जूरी को पूरे साल भर की फिल्मों में से कायदे की 21 फिल्में भी नहीं मिल पाती थीं। लेकिन अब यह सीमा 26 फीचर फिल्मों व 21 गैर-फीचर फिल्मों की है और बड़ी बात यह है कि इधर कुछ सालों से यह खंड भरा-पूरा दिख रहा है। इस साल प्रख्यात फिल्मकार-अभिनेता डॉ. टी.एस. नागभर्णा की अध्यक्षता वाली 13 सदस्यीय जूरी ने जिन 25 फीचर फिल्मों का चयन किया है उनकी विविधता भारतीय सिनेमा के विस्तृत फलक का चमकता उदाहरण प्रस्तुत करती है। इन फिल्मों में कन्नड़ भाषा से संदीप कुमार की ‘आरारिरारो’, ऋषभ शैट्टी की बेहद पसंद की गई ‘कांतारा’, मलयालम के अतिसमृद्ध सिने-संसार में से आनंद एकारशी की ‘आत्तम’, रोहित एम.जी. कृष्णन की ‘इराट्टा’, जियो बेबी की ‘काधल’, विष्णु शशि शंकर की ‘मलिकाप्पुरम’, राथीश बालकृष्णा की ‘न्ना थान केस कोडू’, और गणेश राज की ‘पूक्कालम’, बांग्ला से कौशिक गांगुली के निर्देशन में बनी ‘अर्द्धांगिनी’, सांयतन घोषाल की ‘रवींद्र काव्य रहस्य’ व अर्जुन दत्ता की ‘डीप फ्रिज’, तमिल से जयाप्रकाश राधाकृष्णन की ‘काधल एनबाथु पोथु उडामई’, संयुक्ता विजयन की ‘नीला नीरा सूर्यन’, वेती मारण की ‘विधुथलाई पार्ट 1’, मृदुल गुप्ता की कारबी भाषा में बनी ‘मीरबेन’ जैसी फिल्मों के अलावा हिन्दी की प्रवीण अरोड़ा निर्देशित ‘ढाई आखर’, राकेश चतुर्वेदी ओम की हालिया रिलीज व काफी सराही गई फिल्म ‘मंडली’ (रिव्यू-विश्वास जगाने आई ‘मंडली’) , सुधांशु सारिया की ‘सना’, विवेक रंजन अग्निहोत्री की ‘द वैक्सीन वॉर’, जसपाल सिंह संधू की ‘वध’ जैसी फिल्में शामिल हैं। इन 20 फिल्मों के अतिरिक्त पांच फिल्में मुख्यधारा सिनेमा से भी ली गई हैं जिनमें मलयालम से एंथोनी जोसेफ की बेहद प्रशंसनीय रही फिल्म ‘2018-एवरीवन इज ए हीरो’, तमिल से मणिरत्नम की ‘पोन्नियिन सेल्वन पार्ट-2’, हिन्दी से राहुल वी. चिट्टेल्ला की ‘गुलमोहर’, अपूर्व सिंह करकी की ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ और सुदीप्तो सेन की ‘द केरला स्टोरी’ शामिल की गईं। इन फिल्मों में से आनंद एकारशी की मलयालम फिल्म ‘आत्तम’ को इस खंड की ओपनिंग फिल्म का गौरव भी दिया गया है।
पैनोरमा में शामिल 20 गैर-फीचर फिल्मों को चुनने का काम वरिष्ठ वृत्तचित्र फिल्मकार अरविंद सिन्हा की अगुआई वाली सात सदस्यीय जूरी ने किया। इन बीस फिल्मों में अंग्रेजी से संजीवन लाल की ‘1947-ब्रेक्सिट इंडिया’, एम.एस. बिष्ट की ‘बैक टू द फ्यूचर’, मणिपुरी भाषा से लोंगजम मीना देवी की ‘आंद्रो ड्रीम्स’, वरिबम दोरेंद्र सिंह की ‘लास्ट मीट’, असमिया भाषा से वरिष्ठ फिल्म समीक्षक-निर्देशक उत्पल बरपुजारी की ‘बरुआर संसार’, केसर ज्योति दास की ‘कथावर’, पार्थसारथी महंत की ‘लचित’, मराठी से सुमिरा रॉय की ‘भंगार’, प्रथमेश महाले की ‘प्रदक्षिणा’, अभिजीत अरविंद दलवी की ‘उत्सवमूर्ति’, तमिल से प्रवीण सेल्वम की ‘नानसेई नीलम’, दिशा भारद्वाज की डोगरी भाषा में बनी ‘चुपी रोह’, शिल्पिका बोरदोलोइ की मिजो भाषा की ‘मऊ-द स्पिरिट ड्रीम्स ऑफ चेराव’, सुयश कामत की कोंकणी फिल्म ‘सदाबहार’, मलयालम से आनंद ज्योति की ‘श्री रुद्रम’, हिमांश शेखर की ओड़िया में बनी ‘द सी एंड सैवन विलेज’ के अलावा हिन्दी से जितांक सिंह गुर्जर की ‘बासन’, युवा फिल्मकार भास्कर विश्वनाथन की ‘बहरूपिया-द इम्पर्सोनेटर’ और कई राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके मनीष सैनी की ‘गिद्ध’ जैसी फिल्मों के साथ-साथ एडमंड रेन्सन की ‘लाइफ इन लूम’ भी है जो हिन्दी, तमिल, असमिया, बांग्ला और अंग्रेजी में बनी है। इन फिल्मों में से लोंगजम मीना देवी की मणिपुरी भाषा में बनी ‘आंद्रो ड्रीम्स’ को इस खंड की ओपनिंग फिल्म बनाया गया है।
गोआ में 20 से 28 नवंबर तक इन फिल्मों के जरिए बड़ी संख्या में फिल्म प्रेमी भारतीय सिनेमा के चमकते आइने से रूबरू होंगे।
(नोट-मेरा यह लेख कनाडा से प्रकाशित होने वाले लोकप्रिय हिन्दी साप्ताहिक ‘हिन्दी अब्रोड’ में व भारत के राष्ट्रीय दैनिक ‘प्रभात खबर’ में छप चुका है)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)