-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
2015 में आई अनुष्का शर्मा वाली फिल्म ‘एन एच 10’ सिखा गई कि किसी को इतना मत डराओ कि उसके अंदर से डर का खौफ ही खत्म हो जाए। जब किसी इंसान या जानवर तक को भी यह लगता है कि अब लड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा तो वह अपने से ताकतवर प्राणी से भी भिड़ जाता है। डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई ‘अपूर्वा’ ऐसी ही एक लड़की अपूर्वा का जीवट दिखाती है।
ग्वालियर-आगरा के बीच कहीं बीहड़ इलाके में चार गैंग्स्टर एक बस की सवारियों को लूट कर अपूर्वा को उठा ले जाते हैं जो अपने मंगेतर से मिलने जा रही है। सुनसान इलाका, दूर-दूर तक कोई नहीं, बलात्कार पर उतारू गुंडे और अकेली लड़की। बर्बादी करीब जान कर अपूर्वा उन सबसे भिड़ जाती है।
अपने कलेवर में यह फिल्म ‘एन एच 10’ सरीखी ही है। एक अकेली लड़की का गुंडों के बीच फंसना, मदद के लिए किसी का न होना और फिर उसी लड़की का हिम्मत करके भिड़ जाना। यह फिल्म अपने इस कलेवर के मुताबिक ज़रूरी तनाव रचती है, उन गुंडों की बेरहम हरकतों और पलक झपकते ही किसी को भी मार देने की प्रवृति दिखा कर इंसान के भीतर की पशुता दिखाती है। साथ ही उस लड़की की हिम्मत दिखा कर फिल्म यह संदेश देने में भी सफल रहती है कि आड़ा वक्त आए तो होश में रह कर जोश दिखाने वाले लोग मुसीबतों से निबट ही लेते हैं।
लेकिन इस फिल्म के साथ दिक्कत यह है कि यह इसके अलावा कुछ खास ‘कह’ नहीं पाती। ‘एन एच 10’ जहां मर्दवादी और सामंती सोच को सामने ला रही थी, उन पर प्रहार कर रही थी, समाज के खोखलेपन में झांक रही थी वहीं यह फिल्म बस एक साधारण कहानी दिखा रही है। हालांकि अपनी तेज़ रफ्तार और मात्र डेढ़ घंटे की लंबाई के चलते यह अखरती नहीं है और लगातार उत्सुकता भी बनाए रखती है लेकिन इसके किरदारों की बैक-स्टोरी डाल कर, उनके कद को और ऊंचा बना कर, घटनाओं को मार्मिक बना कर इसे अधिक प्रभावी बनाया जा सकता था। स्क्रिप्ट में कुछ एक जगह तार्किक गलतियां भी हैं, हालांकि वे आसानी से पकड़ में नहीं आ पातीं।
लेखक-निर्देशक निखिल नागेश भाट के काम को अनदेखा और दरकिनार नहीं किया जा सकता। चारों गुंडों को उन्होंने जो तेवर दिए, वे रोचक हैं। अभी तक पर्दे पर खूबसूरत दिखने का ही काम करती रहीं तारा सुतारिया ने इस बार अपना दम भी दिखाया है। उनके मंगेतर बने धैर्य करवा हल्के रहे। गुंडों के किरदार में राजपाल यादव, अभिषेक बैनर्जी, सुमित गुलाटी और आदित्य गुप्ता प्रभावी रहे। राजपाल यादव को बार-बार हास्य-भूमिकाओं में ज़ाया कर रहे फिल्मकारों को उन्हें इस फिल्म में देखना चाहिए। नवनी परिहार, राजेश जायस व पंडित ताराचंद बने राकेश चतुर्वेदी ओम जंचे। राकेश के किरदार को और विस्तार मिलना चाहिए था, कुछ थ्रिल और बढ़ता। गाने प्यारे हैं। जैसलमेर के आसपास की लोकेशन असरदार रही हैं।
थोड़ा और रंग, थोड़ी और गहराई, थोड़ा और पैनापन इस फिल्म की धार को बढ़ा सकता था। मैंने अक्सर लिखा है कि फिल्म का नाम उसके किसी किरदार के नाम पर अक्सर तभी रखा जाता है जब लेखक-निर्देशक को अपनी कहानी के लिए कोई और उपयुक्त शब्द न मिल रहा हो। यह कहानी कुछ और भी ‘कह’ पाती जब शायद इसका नाम भी कुछ और होता। फिलहाल आप इसे टाइम पास के लिए देख सकते हैं।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-15 November, 2023 on Disney+Hotstar
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Detailed and good review comprising all the facts about this movie.
thanks…