-विनोद कुमार…
गीता दत्त उस आवाज़ का नाम है जिसमें शोखी, खुशी, चुलबुलापन, दर्द और मोहकपन सब कुछ सिमटा हुआ था। एक समय था जब सिनेमा जगत में इस आवाज़ की तूती बोलती थी। जब इस आवाज़ का मेल एक और जादुई आवाज़ से हुआ तब इन दोनों की आवाज़ के मेल से बने गीत लोगों के जीने का सहारा बन गए थे। गीता दत्त की आवाज़ के साथ जिस जादुई आवाज़ का मेल हुआ था वह आवाज़ थी महान गायक मोहम्मद रफी की। इन दोनों के गाए गीतों ने सुनने वालों के दिलो-दिमाग पर जादू सा कर दिया था।
इन दोनों का साथ संगीत के एक जादूगर के प्रयास से हुआ था जिसका नाम था ओ.पी. नैयर। इस तिकड़ी ने एक से बढ़ कर एक गीतों का तोहफा संगीत प्रेमियों को दिया। गीता दत्त ने मोहम्मद रफी की तरह ही इंसानी जज़्बात के हर पहलू को अपने सुर से सजाया। लेकिन हज़ारों-लाखों कद्रदानों को अपनी शोख गायिकी से गुदगुदाने वाली गीता दत्त पर वक्त ने ऐसा सितम किया कि उनकी ज़िंदगी खुद दर्द का साज बन कर रह गई थी।
जब गीता घोष की मुलाकात गुरु दत्त से हुई तब वह गायिकी की दुनिया में एक बड़ा नाम बन चुकी थी। गुरु दत्त से शादी के बाद दोनों की जिंदगी खूबसूरत बीत रही थी। तीन बच्चों के ये माता-पिता बने। लेकिन गुरु दत्त की ज़िंदगी में वहीदा रहमान की एंट्री होने के साथ गीता दत्त अकेली होती गई। वहीदा रहमान के कारण जब गीता दत्त और गुरु दत्त के संबंधों में कड़वाहट बढ़ने लगी तो गीता दत्त गायिकी पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थीं। पत्नी, मां और गायिकी की तिहरी ज़िम्मेदारी के साथ-साथ वैवाहिक जीवन में दूसरी औरत के दखल का तनाव झेलना उन पर जब भारी पडने लगा तब वह शराब का सहारा लेने लगीं।
बताया जाता है कि उन दिनों गीता दत्त समय पर स्टूडियो नहीं पहुंच पाती थीं। दूसरी तरफ ओ.पी. नैयर बहुत ही अनुशासित और समय के पाबंद संगीतकार थे। कई बार ऐसा हो चुका था कि गीता दत्त रिकार्डिंग या रिहर्सल के लिए समय पर नहीं पहुंच पाईं। उन्हीं दिनों फिल्म ‘12 ओ क्लॉक’ के लिए ओ.पी. नैयर के संगीत निर्देशन में गीता दत्त और रफी साहब का एक युगल गीत रिकॉर्ड होना था। गीता दत्त की उन दिनों जो स्थिति थी उसे देखते हुए यह तय हुआ कि रफी साहब जब रिकॉर्डिंग के लिए आएंगे तो वह अपनी गाडी में गीता दत्त को भी पिकअप करते हुए स्टूडियो आ जाएंगे। रफी साहब गीता दत्त को लेने उनके घर पहुंचे तो कुछ देर इंतज़ार के बाद जब गीता दत्त कार में आकर बैठीं तो वह नशे में धुत्त थीं और लडखडा रही थीं। रफी साहब गीता दत्त को संभालते हुए रिकॉर्डिंग रूम पहुंचे लेकिन वहां मौजूद संगीतकार एवं अन्य लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ कि गीता दत्त इस हाल में गाने को सही तरह से गा पाएंगी। मगर सबको आश्चर्य में डालते हुए गीता दत्त ने उस गीत को एक टेक में गाकर सबको हैरत में डाल दिया था।
संगीतकार ओ.पी. नैयर के कैरियर को आगे बढ़ाने में गीता दत्त की ही मुख्य भूमिका थी। जब ओ.पी. नैयर अनजाने और नवोदित संगीतकार थे तब गुरू दत्त ने गीता दत्त के कहने पर ही फिल्म ‘बाज’ में संगीत देने का काम नैयर को दिया था। बाद में गुरू दत्त ने ‘सी आई डी’ फिल्म में भी संगीत देने का काम नैयर को सौंपा और इस फिल्म के बाद तो ओ.पी. नैयर संगीत जगत पर छा गए थे। यह भी सच है कि नैयर ने गीता दत्त की गायिकी को नए आयाम दिए थे। उनके साथ संगत करने से पहले गीता दत्त ‘मेरा सुंदर सपना टूट गया…’ जैसे दुख भरे गीतों और ‘हे री मैं तो प्रेम दीवानी…’ जैसे भजनों के लिए ही चर्चित थीं। लेकिन नैयर ने गीता दत्त की गायिकी को नया आयाम दिया। मादकता और अल्हड़पन से भरे गीतों में गीता दत्त की आवाज़ कितनी नशीली लगती है यह सुन कर लोग आश्चर्यचकित हो जाते थे।
ओ.पी. नैयर के संगीत निर्देशन में ‘आर पार’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ ‘सी आई डी’, ‘उस्ताद’, ‘12 ओ क्लॉक’ में गीता दत्त के गाने आज भी जब कानों में पड़ते हैं तो उन्हें सुन कर मुंह से वाह-वाह ही निकलती है। लेकिन बाद में गीता दत्त के लापरवाह रवैये के कारण धीरे-धीरे उन्हें गाने मिलने कम हो गए। उधर ओ.पी. नैयर भी आशा भोसले के साथ नज़दीकियां बढ़ने के कारण गीता दत्त की अनदेखी करने लगे थे। नैयर पर आशा भोसले के दबाव ने गीता दत्त को पूरी तरह से ओ.पी. नैयर से दूर ही कर दिया।
गुरू दत्त की मौत के बाद तो गीता दत्त का और भी बुरा दौर आ गया। गुरू दत्त के जाने का गम और उपर से बेतहाशा शराब पीने के कारण गीता दत्त को फिल्म इंडस्ट्री ने हाशिए पर ला खडा किया था। अपने मुश्किल दौर में गीता दत्त ने जब नैयर साहब को फोन किया और कहा कि नैयर साहब आप मुझे भूल गए हैं। इतनी भी क्या नाराज़गी है कि आप मुझे रिकार्डिंग के लिए अब कभी याद नहीं करते, कभी बुलाते ही नहीं। गीता दत्त ने नैयर को कैसे सहारा दिया था यह तो उन्हें याद था लेकिन आशा भोसले की मोहब्बत में वह खामोश थे। आत्मग्लानि के चलते नैयर से कुछ कहते नहीं बना और उन्होंने चुपचाप फोन का रिसीवर वापस रख दिया।
बाद में जब ओ.पी. नैयर का कैरियर ढलने लगा तब आशा भोसले उनसे दूरी बढ़ाने लगीं। आशा भोसले की बेवफाई से टूट चुके नैयर ने स्वीकार किया कि लोग प्यार में अंधे बन जाते हैं लेकिन मैं तो प्यार में अंधा और बहरा दोनों बन गया था। ओ.पी. नैयर को ताउम्र इस बात पर अफसोस होता रहा कि उन्होंने गीता दत्त की समय पर मदद नहीं की। गीता दत्त का ज़िक्र होने पर उनकी आंखें नम हो जातीं और अपने को कोसने लगते लेकिन तब क्या हो सकता था जब आशा भोसले चुग गई थी खेत।
ओ पी नैयर के काफी ऐसे गाने हैं जो कि आशा भोसले ने गाए हैं लेकिन उन गानों को सुन कर ऐसा लगता है कि वे गाने तो गीता दत्त को ध्यान में रख कर गढ़े गए थे। फिल्म ‘मंगू’ के गीत ‘मन मोरे गा झूम के…’ को गाते समय आशा भोसले गीता दत्त बनने की असफल कोशिश करती नज़र आती हैं।
(विनोद कुमार तीन दशक से भी अधिक समय से लेखन एवं पत्रकारिता में सक्रिय हैं। वह फिल्म, मीडिया, विज्ञान एवं स्वास्थ्य आदि विषयों पर लेखन करते हैं। उन्होंने गायक मोहम्मद रफी की पहली जीवनी ‘मेरी आवाज़ सुनो’ के अलावा सिनेमा व सिनेमाई हस्तियों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। वह फिल्मों व फिल्मी हस्तियों पर कई यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं।)