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जब नेहरू ने जेल भेज दिया था गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को

CineYatra by CineYatra
2023/10/19
in विविध
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जब नेहरू ने जेल भेज दिया था गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को
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-विनोद कुमार…

कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी का झंडा बुलंद करने वाले बहुत सारे लोग शायद यह बात नहीं जानते होंगे कि देश को अंग्रेज़ों से आज़ादी मिलने के फौरन बाद ही शायर-गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को जवाहर लाल नेहरू पर एक कविता लिखने के कारण जेल जाना पड़ा था। जेल में ही उन्होंने एक ऐसे गीत का मुखड़ा लिखा जो बाद में राज कपूर और वहीदा रहमान स्टारर फिल्म ’तीसरी कसम’ का बहुत ही मशहूर गीत बना जिसके बोल हैं-’दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई…।’

प्रसिद्ध कहानीकार और उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ’तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फिल्म ’तीसरी कसम’ का निर्माण कविराज शैलेंद्र ने किया था। इसी फिल्म का यह दार्शनिक गीत है-’दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई…।’ इस गीत को आवाज़ दी थी मुकेश ने। रिकॉर्ड्स के अनुसार इस गीत को गीतकार हसरत जयपुरी ने लिखा था और यह सच भी है लेकिन इस गीत का मुखड़ा मजरूह साहब ने लिखा था और वह भी जेल में रहते हुए।

दरअसल उस समय मजरूह सुल्तानपुरी को एक कविता लिखने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था और वह जेल में बंद थे। यह 1950 के आसपास की बात है जब वामपंथी मिज़ाज वाले मजरूह सुल्तानपुरी ने उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को निशाना बनाते हुए एक कविता लिखी थी। इस कविता की कुछ पंक्तियां थीं-’अमन का झंडा इस धरती पर, किसने कहा लहराने ना पाए। यह भी कोई हिटलर का है चेला, मार ले साथी जाने न पाए। कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू, मार ले साथी जाने न पाए…।’

इस कविता से जवाहर लाल नेहरू नाराज़ हो गए क्योंकि यह कविता सीधे-सीधे उन पर प्रहार करती थी। जब सरकार की तरफ से मजरूह सुल्तानपुरी को माफी मांगने के लिए कहा गया तो स्वाभिमानी मजरूह ने साफ इंकार कर दिया। तब उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। वह जेल में थे तो इधर उनके परिवार के लिए आर्थिक दिक्कतें पैदा हो गईं। मजरूह ऐसे तो किसी का अहसान लेने नहीं वाले थे सो राज कपूर मजरूह की मदद करने के इरादे से उनसे जेल में मिले और उनसे गीत लिखने के लिए कहा। तब मजरूह ने इस गीत का मुखड़ा लिखा-‘दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई, काहे को दुनिया बनाई…।’ इस मुखड़े के लिए राज कपूर ने तब मजरूह को एक हज़ार रुपए दिए थे जो उस समय काफी बड़ी रकम थी।

मजरूह सुल्तानपुरी ने उस गीत का मुखड़ा तो लिख दिया पर राज साहब ने उसे कहीं इस्तेमाल नहीं किया। जब राज कपूर अपने मित्र गीतकार शैलेंद्र की बनाई फिल्म ‘तीसरी कसम’ में काम कर रहे थे तो उन्होंने इस मुखड़े को उन्हें दे दिया। लेकिन जब मजरूह से पूरा गाना लिखने का अनुरोध किया गया तो वह उसे पूरा नहीं कर पाए। फिर हसरत जयपुरी ने इस मुखड़े के आधार पर पूरा गीत तैयार किया जिसमें कहा गया है कि दुनिया में चल रही होड़, हिंसा,अन्याय, अत्याचार , बेईमानी, फरेब और शोषण को देख कर शायद इसे बनाने वाला भी दुखी हुआ होगा, वह भी निराश हुआ होग, उसने भी अपनी आस्था का विसर्जन किया होगा। इस गाने की धुन शंकर-जयकिशन ने तैयार की थी और गाया था मुकेश ने। बताया जाता है कि इस गाने का एक फीमेल वर्ज़न भी रिकार्ड कराया गया था। उस वर्ज़न को सुमन कल्याणपुर ने गाया था लेकिन उस वर्ज़न को फिल्म में शामिल नहीं किया गया।

बासु भट्टाचार्य के निर्देशन में बनी ’तीसरी कसम’ ग्रामीण भारत और ग्रामीण लोगों की सादगी को दिखाती है। यह पूरी फिल्म मध्य प्रदेश के बीना एवं ललितपुर के पास खिमलासा में फिल्मांकित की गई। ’तीसरी कसम’ लंबे समय तक निर्माणाधीन रही। इस फिल्म के निर्माण के दौरान शैलेंद्र को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के व्यवहार से भी वह टूट-से गए थे। विभिन्न कारणों से ’तीसरी कसम’ रुकी रही और आखिर में साल 1966 में रिलीज़ हुई तो बॉक्स-ऑफिस पर फ्लॉप हो गई। इस दौरान शैलेंद्र भी शायद सोचते होंगे कि ’काहे को फिल्म बनाई…?’

(विनोद कुमार तीन दशक से भी अधिक समय से लेखन एवं पत्रकारिता में सक्रिय हैं। वह फिल्म, मीडिया, विज्ञान एवं स्वास्थ्य आदि विषयों पर लेखन करते हैं। उन्होंने गायक मोहम्मद रफी की पहली जीवनी ‘मेरी आवाज़ सुनो’ के अलावा सिनेमा व सिनेमाई हस्तियों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। वह फिल्मों व फिल्मी हस्तियों पर कई यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं।)

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