-दीपक दुआ…
हिन्दी सिनेमा के प्रख्यात गीतकार राजेंद्र क्रिशन के बारे में पढ़ने बैठिए तो बहुत कम सामग्री मिलती है। लेकिन आश्चर्यजनक तौर पर यह जरूर पता चलता है कि जिन सदाबहार गीतों को हम में से हर कोई अपने जीवन में कभी न कभी सुनता, गुनगुनाता है, उनमें से अधिकांश राजेंद्र क्रिशन की कलम से ही निकले थे। हैरानी होती है कि हमें उन गीतों की फिल्मों या गायक-गायिकाओं के नाम पता होते हैं, कई बार संगीतकारों के भी, लेकिन उन्हें लिखने वाले शख्स राजेंद्र क्रिशन थे, यह नहीं पता होता। यह किताब उस कमी को पूरा करती है। इसे पढ़ने के बाद यह पछतावा भी होता है कि राजेंद्र क्रिशन जैसे गीतकार के बारे में अभी तक कोई पुस्तक क्यों नहीं आई। क्यों हम लोग कलम के धनी लोगों के बारे में लिखने, पढ़ने, सहेजने के मामले में इतने पिछड़े हुए हैं। देर से आई मगर बहुत खूब जानकारियां अपने भीतर समेट कर आई इस पुस्तक का सिने-रसिकों और संगीत-रसिकों द्वारा स्वागत होना चाहिए।
पत्रकार-लेखिका गीताश्री के संपादन में आई इस किताब में राजेंद्र क्रिशन के जीवन, उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर फिल्म पत्रकारों, लेखकों आदि के लेख हैं जो उनके बारे में पाठकों को विस्तार से बताने का काम करते हैं। सिनेमा व सिने-संगीत पर नियमित लिखने वाले शरद दत्त, पंकज राग, ईशमधु तलवार, गणेश नंदन तिवारी, राजीव कुमार, यूनुस खान, ममता सिंह, प्रवीण कुमार झा, ‘लता सुर गाथा’ लिख चुके यतींद्र मिश्र आदि के लेखों से राजेंद्र क्रिशन के जीवन के बारे में तो बहुत सारी जानकारियां सामने आती ही हैं, उनके लिखे गीतों के बारे में भी विस्तार से पता चलता है। उनकी कलम से छलके विभिन्न रंगों के बारे में जान कर सुखद आश्चर्य भी होता है कि कैसे एक ही गीतकार ने एक ही समय में कृष्ण-भक्ति के अनेक गीत, देश-समाज की बातें, रोमांटिक गीत, उदासी-विरह के गीत, देश-समाज के सरोकारों से जुड़े गीत लिखने के साथ-साथ कई चुटीले-चटपटे गाने भी लिखे। साथ ही उनके गीतों में समाज के हाशिये पर मौजूद लोगों की आवाजें भी झलकीं और उन्होंने कई लोरियां भी लिखीं।
इस किताब से राजेंद्र क्रिशन के बारे में यह दिलचस्प बात भी पता चलती है कि वह घुड़दौड़ पर पैसे लगाने के खासे शौकीन थे और उस जमाने में 45 लाख रुपए का जैकपॉट उनके नाम पर लगा था जिसके बाद उन्होंने जोश-जोश में एक लाख रुपए प्रधानमंत्री राहत कोष में दान कर दिए थे और जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह बात पता चली कि घुड़दौड़ में जीते गए पैसों पर टैक्स नहीं लगता है तो उन्होंने इस आमदनी पर टैक्स लगवा दिया था जिससे काफी लोग राजेंद्र क्रिशन से खफा भी हो गए थे। किताब यह भी बताती है कि वह राजेंद्र जी अपने नाम के एक हिस्से ‘कृष्ण’ को ‘क्रिशन’ ही लिखना-लिखवाना पसंद करते थे। पुस्तक में राजेंद्र क्रिशन का एक पुराना इंटरव्यू भी है और उन पर जयंती रंगनाथन, पंकज मित्र, उषाकिरण खान, निवेदिता, राजकुमार सोनी, इकबाल रिजवी जैसे लेखकों की टिप्पणियां भी। काफी सारी जानकारियां राजेंद्र क्रिशन के पुत्र राजेश दुग्गल से बातचीत के आधार पर भी दी गई हैं। फिल्म इंडस्ट्री में उनके आने की बातें, यहां आकर उनके छाने की बातें, उनकी जिंदादिली, कुछ गीतों के बनने के किस्से, उनके फिल्मी, गैरफिल्मी गीतों आदि की जानकारी से लबरेज है प्रलेक प्रकाशन से आई यह पुस्तक जो किसी भी सिने-संगीत-रसिक को अवश्य पसंद आएगी।
(नोट-इस किताब में एक लेख मेरा भी है)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)