-दीपक दुआ…
भारतीय सिनेमा में राज कपूर का कद किसी बरगद सरीखा है। एक ऐसा स्वप्नदृष्टा फिल्मकार जिसने सिनेमा को एक अलग नजर से देखा और उसे अपने नजरिए से दुनिया को दिखाने की कोशिश की। जिसने अपने फिल्मी जीवन में कदम-कदम पर जोखिम उठाए और सिनेमा के इतिहास में एक ऐसी जगह बना पाने में सफलता प्राप्त की जो रहती दुनिया तक कायम रहेगी। ऐसे महान फिल्मकार के करीबी सहायक के तौर पर काम कर चुके और खुद भी कई सफल फिल्मों के निर्देशक रह चुके राहुल रवेल जैसे वरिष्ठ फिल्मकार यदि अपने सिनेमाई गुरु राज कपूर के बारे में कोई किताब लिखें तो सिने-प्रेमियों में उसे लेकर विशेष उत्सुकता हो सकती है। दिल्ली के प्रभात प्रकाशन से आई यह किताब ‘राज कपूर-बॉलीवुड के सबसे बड़े शोमैन’ उन तमाम उत्सुकताओं को शांत करती है और राज कपूर के बारे में करीब से जानने की इच्छा रखने वालों को भरपूर सुकून देती है।
फिल्ममेकिंग में रूचि रखने वाले राहुल रवैल अपने बचपन के मित्र ऋषि कपूर की सिफारिश से किशोरावस्था में ही राज कपूर से जा जुड़े थे। मूल रूप से अंग्रेज़ी में लिखी गई इस किताब में राहुल ने राज साहब से जुड़ने, उनसे काम सीखने, उनके साथ काम करने, उनके मूड को समझने और उनके काम करने के तौर-तरीकों के बारे में विस्तार से बताया है। राज कपूर की विभिन्न आदतों की बात करते हुए राहुल ने इस किताब में उनसे जुड़े कई वाकये, कई किस्से भी साझा किए हैं जिससे यह कई जगह बहुत रोचक बन पड़ी है। लेकिन कुछ एक जगह उन्होंने बेहद गूढ़ तकनीकी बातों का उल्लेख कर के इसे बेवजह उकताहट भरा भी बनाया है।
राहुल ने यह किताब प्रणिता शर्मा के साथ मिल कर लिखी है। इसे पढ़ते हुए साफ लगता है कि राहुल ने जो बोला, प्रणिता ने उसे बिना किसी ना-नुकर के लिख डाला जबकि इस किस्म की किताबों में यदि कोई बाहरी तटस्थ व्यक्ति बातों को संपादित करे तो लेखन में कसावट ही आती है। इससे भी बड़ी दिक्कत इस किताब की भाषा के साथ है और इसे पढ़ते समय हद दर्जे की झल्लाहट पैदा होती है। दरअसल अंग्रेजी से हिन्दी में इसका अनुवाद करने वाले विपिन चौधरी ने मूल किताब की भाषा का बेरहमी से कत्ल किया है। इसे पढ़ते हुए साफ लगता है कि वह अनुवाद के लिए कृत्रिम बुद्धिमता पर अधिक निर्भर रहे हैं जिसके चलते बहुतेरी जगहों पर इस किताब को झेलना मुश्किल हो जाता है। यह भी स्पष्ट होता है कि अनुवादक को न तो पूरी तरह से फिल्मी दुनिया की जानकारी है, न फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं की और न ही मुंबई शहर की। भाषा पर भी अनुवादक की पकड़ ढीली है जिसके चलते यह किताब अपनी बेहतरीन सामग्री के बावजूद बहुत ही कमज़ोर बन कर रह गई है।
(मेरी यह पुस्तक-समीक्षा राष्ट्रीय हिन्दी समाचार पत्र ‘प्रभात खबर’ में 14 अप्रैल, 2024 को प्रकाशित हुई है।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)