-दीपक दुआ…
दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से निकलने के बाद हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री का रुख करने वाली अदाकारा सुष्मिता मुखर्जी ने दसियों फिल्मों और टी.वी. धारावाहिकों में काम किया। पुराने लोग उन्हें टी.वी. धारावाहिक ‘करमचंद’ में जासूस करमचंद बने पंकज कपूर की कमअक्ल सेक्रेटरी किटी’ के तौर पर जानते हैं तो नई पीढ़ी ने उन्हें रोहित शैट्टी की ‘गोलमाल’ में अंधी दादी और शाहिद कपूर वाली ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ में देखा होगा। आजकल वह अभिनय में कम और लेखन व सामाजिक कामों में ज्यादा मसरूफ रहती हैं। दो-ढाई साल पहले अपने उपन्यास ‘मी एंड जूही बेबी’ के बाद अब वह अपना एक कहानी-संग्रह ‘बांझ’ लेकर आई हैं। पिछले दिनों अभिनेत्री सुष्मिता मुखर्जी के दिल्ली आने पर मेरा उनसे मिलना हुआ। इस दौरान उन्होंने जो कहा, वह उन्हीं की जुबानी पेश है-
‘मेरी नई किताब ‘बांझ’ असल में 11 लघु कहानियों का संग्रह है जिसमें से एक कहानी का नाम ‘बांझ’ है। आपको जान कर हैरानी होगी कि इन कहानियों को मैं पिछले 40 साल से लिख रही हूं। लिखने का शौक तो मुझे हमेशा से ही रहा है लेकिन एक्टिंग और दूसरे कामों में व्यस्त रहने के चलते नियमित रूप से लिखना नहीं हो पाता था। मेरी पहली किताब 2018 में आई थी जो एक उपन्यास थी लेकिन इस वाली में कहानियां हैं। इनमें से जो पहली कहानी है वह शायद मैंने 40 साल पहले लिखी होगी और जब-जब मेरे जेहन में कहानियां आती गईं, मैं उन्हें लिख कर रखती चली गई। अब जाकर मुझे यह लगा कि मुझे इनका एक कलैक्शन लाना चाहिए।’
‘इन कहानियों के जरिए मैंने स्त्री-मन की बात सामने लाने की कोशिश की है। लगभग सभी कहानियां स्त्री केंद्रित हैं और इनके जरिए मैं यह कहने की कोशिश कर रही हूं कि औरतों के बारे में हमारी सोच एकतरफा है जिसे बदलने की जरूरत है।’
‘अभी तक इस किताब का जो रिस्पांस मिला है उससे मैं बहुत आशान्वित हूं कि मैं जो कहना चाह रही थी वह कह पाई हूं और मुझे लगता है कि एक सार्थक मैसेज इस किताब से निकल कर आ रहा है। मुझे यह भी महसूस होता है कि रचनात्मकता के जितने भी माध्यम हैं चाहे वह लेखन हो, कला हो, अभिनय हो, वह कहीं न कहीं हमारे जीवन पर और हमारी सोच पर असर डालते हैं और शायद यही वजह है कि इन कहानियों को पढ़ने के बाद मुझे बहुत लोगों से सराहना मिल रही है।
‘मैं चूंकि सिर्फ अंग्रेजी में लिखती हूं इसलिए यह किताब अभी अंग्रेजी में ही है लेकिन मुझे लगता है कि इस किताब को दूसरी भाषाओं में भी लाया जा सकता है। अगर कोई इसका दूसरी भाषाओं में अनुवाद करे तो मुझे बहुत खुशी होगी और मैं चाहूंगी कि इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके।’
(नोट-मेरा यह आलेख ‘राजस्थान पत्रिका’ समाचार-पत्र में 17 फरवरी, 2021 को प्रकाशित हो चुका है)
(नोट-इस इंटरव्यू के दौरान ही सुष्मिता मुखर्जी ने मुझे ही इस किताब का हिन्दी अनुवाद करने का ऑफर दिया जिसके बाद बात आई-गई हो गई। लेकिन संयोग देखिए कि मैंने इस ऑफर को चुनौती समझ कर स्वीकारा और आखिर मई, 2022 में इस किताब का हिन्दी अनुवाद बाज़ार में आ ही गया। उपरोक्त लेख में उस हिन्दी अनुवाद की एक जगह छपी समीक्षा भी दी गई है।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)