-दीपक दुआ…
तीन बरस पहले अभिनेता इरफान असमय चले गए तो लगा जैसे चलते-चलते कोई फिल्म बीच में बंद हो गई हो, पढ़ते-पढ़ते आपके हाथों से कोई किताब छीन ली गई हो। इरफान गए तो उनके प्रशंसकों को तो झटका लगा ही, ऐसे बहुत सारे लोग थे जिन्होंने उनके साथ काम किया था, उनके करीब थे, उनके सफर के साथी रहे थे, उन पर क्या बीती होगी, उन लोगों ने क्या सोचा होगा, यदि यह सब एक पुस्तक में पढ़ने को मिल जाए तो इसे इरफान-प्रेमियों ही नहीं, बल्कि सिने-प्रेमियों के लिए भी एक सौगात कहा जाएगा। यह किताब वही सौगात है जो वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज के लेखक व संपादन से निकल कर आई है।
असल में इरफान के जाने के बाद इरफान के बेहद करीबी रहे अजय ब्रह्मात्मज ने दो ई-बुक्स निकाली थीं जिनमें से एक में उन्होंने इरफान के बारे में अपने लेख, उनसे समय-समय पर हुई अपनी बातचीत व उनकी फिल्मों की समीक्षाएं साझा की थीं और दूसरी पुस्तक में उन्होंने अन्य लोगों से इरफान के बारे में लेख लिखवाए थे। सरस्वती बुक्स से आई 299 रुपए मूल्य वाली यह पुस्तक उन दोनों ई-बुक्स का प्रिंट संस्करण है। इस किताब में पहले तो अजय इरफान से अलग-अलग समय पर लिए गए साक्षात्कारों को देते हैं इरफान ने अपनी बीमारी के दौरान उन्हें जो पत्र लिखा, उसे देते हैं। इरफान और उनकी पत्नी सुतपा के बारे में लिखते हैं और उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्मों-‘द लंच बॉक्स’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘मदारी’, ‘लाइफ ऑफ पाई’ व ‘हिन्दी मीडियम’ की समीक्षा भी देते हैं। इन आलेखों से जहां एक ओर पाठक को इरफान की सोच और विभिन्न विषयों पर उनके विचारों का पता चलता है वहीं एक कलाकार के तौर पर उनकी यात्रा का अहसास भी होता है।
पुस्तक का दूसरा हिस्सा अत्यधिक रोचकता लिए हुए है जिसमें इरफान के बचपन के साथियों से लेकर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के सहपाठियों, वरिष्ठ व साथी कलाकारों, पत्रकारों, लेखकों आदि के 37 लेखों द्वारा इरफान को करीब से जानने का मौका मिलता है। इन लेखों को अनुप्रिया वर्मा, अविनाश दास, इकबाल रिजवी, ईशमधु तलवार, दुष्यंत, निमरत कौर, डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी, मनोज वाजपेयी, महेश भट्ट, यशपाल शर्मा, राकेश चतुर्वेदी ‘ओम’, रामकुमार सिंह, वरुण ग्रोवर, विनीत कुमार, विभा रानी, शैलेश सिंह, संजय चौहान, हैदर अली जैदी आदि ने लिखा है। दो-एक को छोड़ कर अधिकांश लेख काफी गहराई लिए हुए हैं जिनमें इरफान के व्यक्तित्व व कृतित्व के अलग-अलग पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इन आलेखों के जरिए इरफान से जुड़ी ऐसी अनेक बातें सामने आती हैं जो आम फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं या इरफान के साक्षात्कारों में कभी नहीं आ सकीं। इन लेखों से यह भी पता चलता है कि एक कलाकार के तौर पर जहां इरफान ने आसमान छुआ वहीं एक इंसान के तौर पर वह कितने गहरे थे। बहुत सारे लेख ऐसे हैं जिन्हें पढ़ते हुए मन भावुक होने लगता है। सिर्फ एक किताब में एक साथ इतनी सारी सामग्री को होना भी सुखद लगता है। यह भी पता चलता है कि यदि इरफान असमय न जाते तो उन्होंने अभी कला-संसार को और कितना कुछ देना था।
न केवल इरफान के चाहने वालों के लिए बल्कि हर उस इंसान के लिए यह पुस्तक उपयोगी है जो सिनेमा को, कलाकारों को और जीवन को जानना चाहते हैं।
(नोट-मेरी यह समीक्षा राष्ट्रीय हिन्दी समाचार पत्र ‘प्रभात खबर’ में 29 अक्टूबर, 2023 को प्रकाशित हुई है।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)