-दीपक दुआ…
सुशील मजूमदार को केवल बांग्ला ही नहीं बल्कि भारतीय सिनेमा के भी दिग्गजों में गिना जा सकता है। लेकिन अफसोस की बात यही है कि सिनेप्रेमियों की मौजूदा पीढ़ी उनके नाम और काम तक से अनजान है। सुशील मजूमदार के नाती पत्रकार संजय मिश्रा के संकलन व संपादन में अंग्रेजी में आई पुस्तक ‘एक्शन सुशील मजूमदार’ उनके काम के बारे में ढेरों जानकारी उपलब्ध कराती है। 1906 में बंगाल के कोमिल्ला (अब बांग्लादेश) में जन्मे सुशील मजूमदार ने 1932 से लेकर 1982 तक के अपने 50 वर्ष लंबे फिल्मी सफर में 34 फिल्मों का निर्देशन करने के अलावा 17 फिल्मों में अभिनय भी किया था। उनकी बनाई फिल्मों में जहां बांग्ला फिल्में अधिक थीं वहीं लीला चिटणीस, जयराज अभिनीत ‘चार आंखें’ (1946), राज कुमार, हेमा मालिनी, राखी गुलजार अभिनीत ‘लाल पत्थर’ (1971) जैसी फिल्में भी शामिल थीं।
इस पुस्तक में संजय मिश्रा ने सुशील मजूमदार पर लिखने की बजाय उनकी तमाम फिल्मों से जुड़े काम को संकलित करने पर फोकस किया है। पुस्तक के पहले खंड में उनकी पहली निर्देशित फिल्म ‘एकदा’ से लेकर अंतिम फिल्म ‘लाल पत्थर’ की बुकलेट को स्कैन करके प्रकाशित किया गया है। आज की पीढ़ी तो शायद इस बात से परिचित भी न हो कि कुछ समय पहले तक हर एक फिल्म की एक छोटी-सी बुकलेट निर्माता स्वयं प्रकाशित करवाया करते थे जो फिल्म के प्रचार के लिए पत्रकारों, फिल्मी पत्र-पत्रिकाओं व फिल्मी दुनिया के लोगों को बांटी जाती थी। इसके अलावा फिल्मों के आने के बाद निजी तौर पर भी फिल्म की कहानी, संवादों, गीतों आदि को समेटे छोटी-छोटी बुकलेट का प्रकाशन होता था जिन्हें सिनेप्रेमी चाव से खरीदा व पढ़ा करते थे। इस पुस्तक में उन्हीं बुकलेट को ही संकलित किया गया है।
पुस्तक के दूसरे खंड में सुशील मजूमदार की चार ऐसी फिल्मों के पोस्टर हैं जो पूरी न हो सकीं। तीसरे खंड में उनकी उन फिल्मों का जिक्र है जिनमें उन्होंने बतौर अभिनेता काम किया। अंत में उनके लिखे कुछ पत्र व बहुत सारी ऐसी तस्वीरों को भी पुस्तक में स्थान दिया गया है जो उनके फिल्मी सफर के विभिन्न पड़ावों पर खींची गई होंगी।
देखा जाए तो एक आम पाठक के लिए इस पुस्तक में कुछ खास नहीं है। उन्हें लुभाने का प्रयास किया गया होता तो यह किताब बेहतर हो सकती थी। संकलक इस किताब में सुशील मजूमदार के बारे में कुछ आलेख, उनके साथ काम कर चुके लोगों के उनके बारे में विचार, संस्मरण आदि डालते तो बेशक इस किताब का फलक और अधिक विस्तृत हो सकता था। फिलहाल तो यह पुस्तक केवल उन लोगों के मतलब की ही होकर रह गई है जो एक सिनेमाई लीजेंड की फिल्मी यात्रा को करीब से जानने के शौकीन हैं। लेकिन साथ ही यह किताब एक दस्तावेज भी है जो इस लीजेंड की तमाम फिल्मों को एक जगह सूचीबद्ध करती है। कोलकाता स्थित सिमिका प्रकाशन की इस किताब का मूल्य 799 रुपए है।
(मेरी यह पुस्तक समीक्षा ‘प्रभात खबर’ समाचार पत्र में 24 सितंबर, 2023 को प्रकाशित हुई है।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)