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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-नंगे सच का कोलाज दिखाती ‘72 हूरें’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/07/07
in फिल्म/वेब रिव्यू
6
रिव्यू-नंगे सच का कोलाज दिखाती ‘72 हूरें’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘तुम ने जो नेकी का, जिहाद का रास्ता चुना है, वो रास्ता तुम लोगों को सीधा जन्नत में लेकर जाएगा। शहादत का जाम पीकर जब जन्नत में आंखें खोलोगे तो अपने-आप को हूरों की आगोश में पाओगे।’

पाकिस्तान में एक मौलाना साहब नौजवानों को बरगला रहे हैं और अपनी इस तकरीर के दौरान हाल ही में ‘शहीद’ हुए हाकिम और बिलाल की मिसाल दे रहे हैं कि वे दोनों तो इस समय जन्नत में हूरों के संग मौज-मस्ती कर रहे होंगे। और हूरें भी कितनी? एक नहीं, दो नहीं, पूरी 72 हूरें। लेकिन न इस मौलाना को और न ही उससे अपना ब्रेनवॉश करवा रहे उन नौजवानों को यह पता है कि हाकिम और बिलाल की रूहें तो अभी भी भटक रही हैं। उन्हें जन्नत तो छोड़िए, जहन्नुम तक नसीब नहीं हुआ। यहां तक कि इनकी लाशों को भी कोई इज़्ज़त देने को तैयार नहीं है। हाकिम तो पूछता भी है, ‘31 काफिर मारे है मैंने, क्या वह सब ज़ाया हो जाएगा?’

यह बात जगजाहिर है कि किस तरह से कुछ लोग मासूम नौजवानों को मज़हब, अल्लाह, जन्नत और हूरों के नाम पर बरगला कर आतंकवाद के रास्ते पर भेजते हैं। लेकिन क्या सचमुच ये लोग ‘शहीद’ होते हैं? क्या सचमुच किसी बेगुनाह की जान लेने के बाद इनकी रूहें सुकून पाती हैं? क्या सचमुच इन्हें जन्नत और वहां 72 हूरें मिलती हैं? इन सवालों के जवाब कोई नहीं जानता। लेखक अनिल पांडेय और निर्देशक संजय पूरण सिंह चौहान इस फिल्म में इन्हीं सवालों के जवाब दिखाते हैं-थोड़ी कल्पना के साथ, बहुत सारी तल्ख सच्चाई के साथ।

बरसों पहले आई अपनी पहली ही फिल्म ‘लाहौर’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले संजय पूरण सिंह चौहान ने उस फिल्म में किक-बॉक्सिंग के खेल की पृष्ठभूमि में भारत और पाकिस्तान के करीब आने और दोनों देशों के संबंध सुधारने की बात की थी। अब अपनी इस दूसरी फिल्म के लिए फिर से राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके संजय ने सरहद पार से आ रहे आतंकवाद की असली जड़ दिखाने की कोशिश की है। वह जड़ जो मासूम लोगों को मज़हब के नाम पर सपने दिखा कर आतंकवाद को खाद-पानी देती है। हाकिम और बिलाल की भटकती आत्माओं को रूपक के तौर पर दिखाते हुए संजय इस राह पर चलने वालों को उनका हश्र दिखाना चाह रहे हैं। उन्हें बताना चाह रहे हैं कि जिसे तुम जन्नत का रास्ता समझ रहे हो, वह असल में तुम्हें कहीं लेकर नहीं जाएगा।

फिल्म की बुनावट काफी ‘हट के’ किस्म की है। एकदम से तो समझ ही नहीं आता कि चल क्या रहा है। फिर हाकिम और बिलाल की बातों से कहानी खुलने लगती है। एक-एक कर के इनकी सोच सामने आती है कि कैसे इन्हें बहकाया गया होगा। बम विस्फोट के बाद यहां-वहां कटे-जले पड़े इंसानी शरीर विचलित करते हैं। यही इस फिल्म का मकसद भी है। संजय चाहते तो इस फिल्म को रूटीन तरीके से बना सकते थे, इसमें मसालों को छौंक लगा सकते थे। लेकिन उन्होंने इसे बहुत ही कलात्मकता के साथ फिल्माया है। पूरी फिल्म को ब्लैक एंड व्हाइट रखते हुए और छह-सात जगह हल्का-सा रंगीन बनाते हुए वह असल में उस नंगे सच का कोलाज दिखा पाने में कामयाब रहे हैं जिसे जानता तो हर कोई है, मानता कोई-कोई ही है।

पवन मल्होत्रा अपनी अदाकारी से भी विस्फोट करते हैं। आमिर बशीर, रशीद नाज़, अशोक पाठक आदि भी उम्दा काम कर गए। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक इसके असर को बढ़ाता है। कैमरे और रंगों के साथ किए गए प्रयोग फिल्म को असरदार बनाते हैं। इस फिल्म में वह मनोरंजन नहीं है जिसे दर्शक परिवार के साथ बैठ कर या टाइम पास करने की मंशा से देखता है। फिल्म की मेकिंग का स्टाइल, पवन के संवादों में सिर्फ पंजाबी और मीडिया के चित्रण में सिर्फ अंग्रेज़ी इस फिल्म की पहुंच को सीमित करती है। लेकिन डेढ़ घंटे से भी छोटी यह फिल्म खुद नहीं भटकती बल्कि भटके हुओं को सच दिखाती है। 

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-07 July, 2023 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: 72 hoorain72 hoorain reviewaamir bashirashok pathakkiran dagarpavan malhotrapawan malhotrarasheed nazsanjay puransingh chauhan
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Comments 6

  1. Dr. Renu Goel says:
    2 years ago

    Itni bariki se review kia h apne
    Aisa lg rha h jaise mai hall me movie dekh rhi hu
    Bhut hi bdia
    👏👏👏👏

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      धन्यवाद…

      Reply
  2. NAFEESH AHMED says:
    2 years ago

    फ़िल्म बनाने वालों ने लोगों से पैसा निकलवाने के मकसद से (और जिस तरह की फिल्मे आज के राजनितिक माहौल में बनाई जा रही है एक ख़ास मजहब के लोगों को बदनाम करने के लिए बनाई जा रही हैँ) बेहतरीन काम किया है और इसका “टाइटल ” वाकई कमाल का है? जिस सब्जेक्ट पर अगर जानकारी न हो तो फ़िल्म बनाने से पहले कम से कम उस मजहब के जानकारों से तो पूछ लो कि जो हम दिखाने जा रहे हैँ क्या वह सही है..?

    रिव्यु में कोई शक नहीं लेकिन यह फ़िल्म, फ़िल्म बनाने वालों की मानसिकता को दर्शाता कि उनके दिलों में कितनी नफ़रत भारी पड़ो है एक ख़ास मजहब को लेकर और उसी नफरत के भरे बैग लेकर बोझा ढो रहे हैँ..

    आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता.. शायद फ़िल्म बनाने वाले ये नहीं जानते लेकिन वो ये जानते हैँ कि “Abdul” है तो आतंकवादी है और “Shambhu” है तो वह आतंकवादी नहीं बल्कि उग्रवाड़ी है..? वाह रे तुम्हारी सोच…???

    फ़िल्म निर्माताओं को अगली फ़िल्म इस विषय पर भी बनानी चाहिए कि किस तरह से आज के सिप्पसलार खुद अपने देश के रखवालों को मरवा देते हैँ और कुछ चीप मीडिआ के थ्रू ठीकरा माइनॉरिटी लोगों पर फोड़ दिया जाता है कि आतंकवादी ने काम किया है और उस एपिसोड के राजदारां को भी मरवा दिया जाता है पुरे परिवार सहित… फिर आज के माहौल में राजनैतिक ताड़का देने के लिए “72 हूरे” बनवा देते हैँ… असल में ये है जो आज इस देश में जिस तरीके से जो भो किया जा रहा है वह है ब्रेनवाश के साथ – साथ अंधभक्त होना… न कि मनगढंत 72 हूरेन वाली फ़िल्म…

    रिव्यु के लिए रेटिंग 5 Star.

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      धन्यवाद…

      Reply
  3. Amit Patil says:
    2 years ago

    It’s very interesting review and gives prospect to watch movie .

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      Thanks…

      Reply

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