-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
जुलाई, 1960 में पंजाब के एक गरीब दलित सिक्ख परिवार में जन्मा धन्नी राम गाने-बजाने के प्रति अपनी दीवानगी के चलते एक दिन अमर सिंह चमकीला बन कर ऐसा चमका कि उन तमाम लोगों से आगे निकल गया जिन्होंने कभी उसे मौके दिए थे। वे लोग उससे जलने लगे। अश्लील शब्दों वाले उसके गाने इतने पॉपुलर हुए कि पंजाब के अलावा विदेशों में भी उसके चर्चे होने लगे। वह पंजाब में आतंकवाद का दौर था। कुछ लोगों ने उसे धमकियां दीं तो उसने धार्मिक गाने भी गाए मगर सुनने वालों की मांग पर पुराने रास्ते पर लौट आया। आखिर मार्च 1988 में उसे और उसकी गायिका बीवी अमरजीत को गोली मार दी गई। 28 साल की उम्र से पहले चल बसे चमकीला के गीतों की चमक आज भी पंजाब की फिज़ाओं में है। नेटफ्लिक्स पर आई इम्तियाज़ अली की यह फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ उसी चमकीले के फटाफट चमकने और बुझने की कहानी दिखाती है।
कह सकते हैं कि आखिर चमकीले जैसे बंदे की बायोपिक की ज़रूरत ही क्यों है? क्यों एक ऐसे इंसान पर फिल्म बनाई जाए जो मशहूर ही इसलिए हुआ क्योंकि वह ‘गंदे’ गाने गाता था? लेकिन यह कौन तय करेगा कि जो वह गाता था वह ‘गंदा’ ही था? फिल्म के अंदर भी जब एक पत्रकार चमकीला से सवाल पूछती है तो वह यही जवाब देता है कि अगर सारे लोग मेरे गाने सुनना चाहते हैं तो क्या पूरा समाज गंदा है? फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ (Amar Singh Chamkila) इस बहस को भी शुरू करती है।
दरअसल यह फिल्म चमकीले की कहानी के बहाने से हमारे समाज के दोगलेपन को उभार कर दिखाने का काम ज़्यादा करती है। एक सीन लाजवाब है-चमकीले को धमकी देने आए कुछ लोग आते ही उसके आगे बिछ-से जाते हैं। ‘हम तो आपके मुरीद हैं जी’ कहने के बाद वे उसे धमकी देते हैं, पैसे वसूलते हैं और फिर ‘हम तो आपके मुरीद हैं जी’ कह कर चले जाते हैं।
चमकीला की कहानी के बहाने से लेखक इम्तियाज़ अली और साजिद अली हमें उस दौर के पंजाब, पंजाब के गायकों और पंजाब के श्रोताओं के अंतस में भी ले चलते हैं। बहुत ही कसी हुई और तरतीब से लिखी गई इस फिल्म की स्क्रिप्ट शुरू-शुरू में लड़खड़ाती हुई-सी लगती है। लेकिन फिर लगने लगता है कि यह लड़खड़ाहट नहीं, बल्कि संभल कर चलने से पहले की सर्तकता थी क्योंकि इसके बाद जब यह फिल्म चलना शुरू करती है तो न उंगलियां पॉज़ के बटन पर जाती हैं और न ही नज़रें स्क्रीन से हटती हैं।
बतौर निर्देशक इम्तियाज़ अली इस फिल्म (Amar Singh Chamkila) से एक बार फिर आकाश छूते हैं। बीच-बीच में रंग बदलते दृश्यों, कोलॉज, एनिमेशन और असली अमर सिंह चमकीला की तस्वीरों का इस्तेमाल इस फिल्म की यात्रा को एक अलग किस्म की चमक देता है। इरशाद कामिल के गीत और ए.आर. रहमान का संगीत फिल्म की आत्मा है। फिल्म के विज़ुअल्स के साथ तालमेल बिठाता इसका ऑडियो इस फिल्म को ऊंचाई पर ले जाता है। इन गीतों को गाने वालों ने भी अपने तईं कोई कसर नहीं छोड़ी है। हां, यह ज़रूर है कि इन गीतों में ज़्यादातर जगहों पर ऐसी कैड़ी वाली पंजाबी है जो गैर-पंजाबियों के तो पल्ले ही नहीं पड़ेगी, पंजाबियों को भी इसे समझने के लिए ज़ोर लगाना पड़ेगा। हालांकि स्क्रीन पर आने वाले सब-टाईटिल इस काम को कुछ हद तक आसान बनाते हैं।
फिल्म और इसके किरदारों की लुक-डिज़ाईनिंग पर की गई मेहनत दिखाई देती है। सच तो यह है कि इस पूरी फिल्म को लेकर जो रिसर्च की गई होगी, वह काफी गहरी रही होगी और इसीलिए यह फिल्म भी खूब गहराई लिए हुए है।
दिलजीत दोसांझ ने चमकीला की रूह को छुआ है। परिणीति चोपड़ा खूब जंची हैं और प्रभावी रही हैं। अन्य सभी कलाकारों का काम भी प्रशंसनीय रहा है। डी.सी.पी. बने अनुराग अरोड़ा बेहद असरदार रहे। लेकिन जो एक कलाकार दिल-दिमाग पर छाया वह थे टिक्की पा’जी बने अंजुम बत्रा। बेहद असरदार, बेहद गहरा अभिनय रहा उनका।
फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ अपनी मेकिंग में कुछ अलग तरह की है। ठीक वैसी जैसी चमकीला खुद था-कुछ अल्लड़, कुछ झल्लड़, कुछ फक्कड़। इसे मिस नहीं किया जाना चाहिए।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-12 April, 2024 on Netflix
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
रिव्यु इतना सटीक है की फ़िल्म को बिना देखे रहा ही नहीं जा सकता…..*गंदे* गाने किस तरह क़े हैँ इसके लियर भी फ़िल्म को देखना तो बनता ही है…. जैसे कि किसी के लिए खाना का लीजिये एक तहज़ीब भरा वाक्य हो सकता है और किसी क़े लिए *रोटी खा ले * भी तहज़ीब भरा हो सकता है……बस देखना ये है कि हम किस वाक्य को गन्दा और किसको नार्मल मानते हैँ…. डिपेंड करता है पर्सन टू पर्सन..
Zabardast review likha h
Or aap khte h to hum miss nhi krege
वाह वाह दीपक भाई बहुत शानदार विश्लेषण किया है आपने इस फिल्म का और खास कर आपका फिल्म के किरदारों का दिलचस्प वर्णन बहुत पसंद आया 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
धन्यवाद
Aap svayam hi laajwaab hain deepak ji,aapki lekhni ko pranaam hai…aap bahut hi sunder tareekh se operation karte hain…main zarur dekhunga..love you brother.
धन्यवाद, आभार… स्नेह बनाए रखें…