• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-सन्नाटे का सीक्वेल है ‘साइलेंस 2’

Deepak Dua by Deepak Dua
2024/04/16
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-सन्नाटे का सीक्वेल है ‘साइलेंस 2’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

मुंबई के ‘नाइट आउल बार’ में एक शूटआउट हुआ है। एक वी.आई.पी. को मारा गया है। लेकिन कातिल ने वहां मौजूद एक कॉलगर्ल को भी मारा। क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि कातिल उसी को मारने आया था? और भी कई लाशें गिर रही हैं। क्या इन सबका आपस में कोई नाता है? कौन है इनका कातिल? क्यों कर रहा है वह ये कत्ल? इस गुत्थी को सुलझाने का जिम्मा एक बार फिर ए.सी.पी. अविनाश और उनकी टीम पर है।

कोई तीन बरस पहले ज़ी-5 पर आई फिल्म ‘साइलेंस’ (Silence) में अविनाश और उनकी टीम ने एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन पर मिली लड़की की लाश वाला केस सुलझाया था। ये लोग क्रिमिनोलॉजी यानी अपराध विज्ञान के दिशा-निर्देशों के सहारे कड़ी दर कड़ी जोड़ते हुए कातिल तक पहुंचे थे। अब ज़ी-5 पर आई ‘साइलेंस 2’ (Silence 2) में भी इन्होंने यही तरीका अपनाया है। राइटर-डायरेक्टर अबान भरूचा देवहंस अपनी एक फ्रेंचाइज़ी खड़ी कर रही हैं जिसमें वह लड़कियों से जुड़े कत्ल इस टीम से सॉल्व करवा कर दर्शकों को मनोरंजन परोसना चाहती हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि उनकी लिखाई कसी हुई नहीं है और उन्हें अपने रचे किरदारों को ठीक से खड़ा करना भी नहीं आता। ऐसे में दर्शक बेचारा उनके लिए वाहवाही करे तो कैसे?

(रिव्यू-मनोरंजन का सन्नाटा है ‘साइलेंस’ में)

पिछली वाली ‘साइलेंस’ में ढेरों कमियां थीं जिनका ज़िक्र मैंने अपने रिव्यू में खुल कर किया था। सबसे पहले तो फिल्म के नाम ‘साइलेंस’ का ही इसकी कहानी से कोई खास वास्ता नहीं था। हालांकि पिछली वाली फिल्म में एक किरदार था जो बोल नहीं पा रहा था, साइलैंट था। इस बार तो वैसा भी कोई नहीं है। तो फिर? यह वाली फिल्म भी ढेरों कमियों से लबरेज़ है। ऐसे में यह सोच कर भी हैरानी होती है कि आखिर एक कमज़ोर फिल्म का सीक्वेल बनाने की ज़रूरत ही क्यों पड़ी? ज़रूर इस फिल्म की डायरेक्टर की कोई सैटिंग है ज़ी-5 में।

‘साइलेंस 2’ (Silence 2) का कथानक इस कदर उलझा हुआ है कि आप सोचते रह जाते हैं और फिल्म चलती चली जाती है। लेकिन ज़रा-सा भी दिमाग लगाएं तो इस उलझे हुए कथानक के धागे खुल जाते हैं और आप पूछ बैठते हैं कि ऐसा हुआ तो हुआ क्यों? क्यों कोई कातिल अपने लैपटॉप में अपने किए पिछले कत्ल की फोटो न सिर्फ रखेगा बल्कि उसे खुला भी छोड़ेगा कि कोई भी उसके राज़ जान ले…! और यह तो तब है जब अपराध विज्ञान की पढ़ाई कर चुका यह कातिल इतना शातिर है कि पुलिस को लगातार उलझाए रखता है। और अगर ए.सी.पी. की पुरानी परिचित इंस्पैक्टर उसे जयपुर शहर में एक लड़की की लाश मिलने की खबर न देती तो…!

ए.सी.पी. की टीम के तीनों लोग इस बार भी सिवाय उसका आदेश मानने के कुछ खास करते नज़र नहीं आ रहे हैं। और अपने को तो आज तक यह समझ नहीं आया कि हमारी फिल्मों में पुलिस का बड़ा अफसर छोटे अफसर को यह धमकी क्यों देता है कि अगर अगले तीन दिन में तुम ने केस सॉल्व नहीं किया तो मुझे मजबूरन यह केस किसी और को देना होगा…? अरे आई.पी.एस. सर, इतना तो आप को भी पता होगा कि यह बंदा पिछले कई दिन से इस केस पर जान लगाए बैठा है और नया आने वाला फिर ज़ीरो से शुरू करेगा तब आप क्या कर लेंगे?

मनोज वाजपेयी सिद्धहस्त अभिनेता हैं, जंचते हैं, जंचे हैं। लेकिन उनसे कुछ उम्दा करवाइए भी तो। उनके स्तर से बहुत नीचे की भूमिका और फिल्म है यह। वकार शेख, प्राची देसाई और साहिल वैद से सिर्फ संवाद बुलवाए गए, एक्टिंग नहीं करवाई गई, सो उनका कोई कसूर नहीं है। इनसे बेहतर रोल तो रिज़वान बने चेतन शर्मा को मिला और उन्होंने उसका फायदा भी उठाया। जयपुर वाली इंस्पैक्टर बनीं श्रुति बापना व बाकी लोग साधारण रहे। साधारण तो खैर, यह पूरी फिल्म ही है जिसमें लड़कियों की सप्लाई का एंगल होने के बावजूद इमोशन्स या रोमांच का कोई खास उतार-चढ़ाव नहीं दिखता। ऊपर से फिल्म में गालियां डाल कर डायरेक्टर ने इसकी पहुंच को सीमित ही किया है। राइटर-डायरेक्टर साहिबा, रोमांचक कहानी लिखना और कहानी में रोमांच पैदा करना दो अलग बातें हैं, ज़रा मांजिए खुद को। बार-बार सन्नाटा ही परोसेंगी क्या?

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-16 April, 2024 on ZEE5

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

 

Tags: Aban Bharucha Deohanschetan sharmadinker sharmaManoj Bajpaineena kulkarniparul gulatiprachi desaisahil vaidshruti bapnasilencesilence 2silence 2 reviewsilence 2 the night owl bar shootoutsilence reviewvaquar sheikhZEE5
ADVERTISEMENT
Previous Post

बुक-रिव्यू : लचर अनुवाद में शो मैन ‘राज कपूर’ की यादें

Next Post

वेब-रिव्यू : रोमांचित करती ‘रणनीति’

Related Posts

रिव्यू : मस्त पवन-सी है ‘मैट्रो… इन दिनों’
CineYatra

रिव्यू : मस्त पवन-सी है ‘मैट्रो… इन दिनों’

रिव्यू-‘कालीधर’ के साथ मनोरंजन ‘लापता’
CineYatra

रिव्यू-‘कालीधर’ के साथ मनोरंजन ‘लापता’

रिव्यू-’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत
CineYatra

रिव्यू-’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत

वेब-रिव्यू : रंगीले परजातंतर की रंग-बिरंगी ‘पंचायत’
CineYatra

वेब-रिव्यू : रंगीले परजातंतर की रंग-बिरंगी ‘पंचायत’

रिव्यू-मन में उजाला करते ‘सितारे ज़मीन पर’
CineYatra

रिव्यू-मन में उजाला करते ‘सितारे ज़मीन पर’

रिव्यू-खोदा पहाड़ निकला ‘डिटेक्टिव शेरदिल’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-खोदा पहाड़ निकला ‘डिटेक्टिव शेरदिल’

Next Post
वेब-रिव्यू : रोमांचित करती ‘रणनीति’

वेब-रिव्यू : रोमांचित करती ‘रणनीति’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment