-दीपक दुआ…
भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) का नवंबर, 2023 में संपन्न हुआ 54वां संस्करण कई मायनों में खास रहा। एक नए किस्म के जोश, उत्साह और उमंग के साथ नौ दिन चले इस उत्सव ने जहां फिल्म प्रेमियों को नई उम्मीदें दिखाईं वहीं सिनेमा बनाने वालों को नई राहें दिखाने और सिनेमा की झोली भरने में भी यह पीछे नहीं रहा।
1952 से लेकर अब तक इफ्फी के रूप-रंग में कई किस्म के बदलाव हुए हैं। पहले यह महोत्सव घुमंतू था। हर साल देश के अलग-अलग शहरों में होता था। लेकिन 2004 से यह गोआ में जाकर जम चुका है और अपनी एक अलग पहचान भी हासिल कर चुका है। गोआ में भी यह पहले 23 नवंबर से 3 दिसंबर तक होता था। फिर यह 20 से 30 नवंबर तक होने लगा लेकिन 2016 से इसे 20 से 28 नवंबर तक आयोजित किया जाने लगा है।
भव्य शुरूआत
गोआ की राजधानी पणजी के बाहरी इलाके में स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम में हजारों लोगों की मौजूदगी में इफ्फी की रंगारंग शुरूआत हुई। पारंपरिक और प्रोफेशनल दोनों ही रंग इस कार्यक्रम में देखने को मिले। केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने गोआ के मुख्यमंत्री व अन्य गणमान्य लोगों के साथ इफ्फी का उद्घाटन किया। इस दौरान वहां माधुरी दीक्षित, शाहिद कपूर, श्रिया सरन, नुसरत भरूचा, सुखविंदर सिंह, शांतनु मोइत्रा, श्रेया घोषाल जैसी ढेरों विख्यात फिल्मी हस्तियां मौजूद रहीं जिनमें से कइयों ने इस कार्यक्रम में लाइव परफॉर्मेंस भी दी। केंद्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने अपने संबोधन में कहा कि भारत में विदेशी फिल्मों की शूटिंग के लिए प्रोत्साहन राशि की सीमा को ढाई करोड़ रुपए से बढ़ा कर 30 करोड़ किया जा रहा है। गोआ के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने बताया कि जल्द ही गोआ में एक फिल्म सिटी का निर्माण शुरू कर दिया जाएगा। इस समारोह में अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को सिनेमा में उनके योगदान के लिए एक विशेष सम्मान दिया गया।
दुनिया भर से आईं फिल्में
इस बार के इफ्फी में दुनिया के 105 देशों से 2926 फिल्मों की एंट्री आईं जिनमें से लगभग 270 फिल्मों को समारोह में दिखाने के लिए चुना गया। ब्रिटिश फिल्मकार स्टुअर्ट गैट की फिल्म ‘कैचिंग डस्ट’ को इफ्फी की ओपनिंग फिल्म का गौरव प्राप्त हुआ। मिड-फेस्ट फिल्म फ्रांस की ‘अबाउट ड्राई ग्रासेज’ रही व समारोह की समापन फिल्म होने का सम्मान अमेरिका की ‘द फेदरवैट’ को मिला। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता खंड में 12 विदेशी व तीन भारतीय फिल्मों-‘कांतारा’, ‘सना’ व ‘मीरबेन’ को जगह मिली। आखिरी दिन इनमें से कुछ फिल्मों को लाखों रुपए के प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले। निर्देशक की पहली फिल्म के खंड में पांच विदेशी व दो भारतीय फिल्में-‘ढाई आखर’ व ‘इरट्टा’ शामिल रहीं। यूनेस्को-गांधी मैडल वाले खंड में सात विदेशी व तीन भारतीय फिल्मों-‘रवींद्र काव्य रहस्य’, ‘मल्लिकापुरम’ व राकेश चतुर्वेदी ओम निर्देशित ‘मंडली’ को स्थान मिला। घूमता आइना, विश्व सिनेमा, एनिमेशन जैसे खंडों में दुनिया भर से आई फिल्मों का प्रदर्शन किया गया।
भारतीय फिल्मों की धूम
पिछले एक साल में भारत में बनी चुनिंदा उत्कृष्ट फिल्मों को दिखाने वाले भारतीय पैनोरमा खंड में देश के विभिन्न हिस्सों से आईं 25 फीचर फिल्में दिखाई गईं। प्रख्यात फिल्मकार-अभिनेता डॉ. टी.एस. नागभर्णा की अध्यक्षता वाली 13 सदस्यीय जूरी ने कन्नड़ भाषा की ‘आरारिरारो’, ‘कांतारा’, मलयालम की ‘आत्तम’, ‘इराट्टा’, ‘काधल’, ‘मलिकाप्पुरम’, ‘न्ना थान केस कोडू’ और ‘पूक्कालम’, बांग्ला से ‘अर्द्धांगिनी’, ‘रवींद्र काव्य रहस्य’ ‘डीप फ्रिज’, तमिल से ‘काधल एनबाथु पोथु उडामई’, ‘नीला नीरा सूर्यन’, ‘विधुथलाई पार्ट 1’, कारबी भाषा में बनी ‘मीरबेन’ जैसी फिल्मों के अलावा हिन्दी की प्रवीण अरोड़ा निर्देशित ‘ढाई आखर’, राकेश चतुर्वेदी ओम की हालिया रिलीज व काफी सराही गई फिल्म ‘मंडली’, सुधांशु सारिया की ‘सना’, विवेक रंजन अग्निहोत्री की ‘द वैक्सीन वॉर’, जसपाल सिंह संधू की ‘वध’ जैसी फिल्में दिखाई गईं। इन 20 फिल्मों के अतिरिक्त पांच फिल्में मुख्यधारा सिनेमा से भी ली गई हैं जिनमें मलयालम से ‘2018-एवरीवन इज ए हीरो’, तमिल से ‘पोन्नियिन सेल्वन पार्ट-2’, हिन्दी से ‘गुलमोहर’, ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ और ‘द केरला स्टोरी’ शामिल की गईं। इन फिल्मों में से आनंद एकारशी की मलयालम फिल्म ‘आत्तम’ को इस खंड की ओपनिंग फिल्म का गौरव दिया गया। इस जूरी में फिल्मकार कमलेश मिश्र, ए. कार्तिक राजा, अंजन बोस, के.पी. व्यासन, किरण गंती, मिलिंद लेले, रमा विज, संजय जाधव, विजय पांडेय आदि भी शामिल रहे।
इस खंड की 20 गैर-फीचर फिल्मों को चुनने का काम वरिष्ठ वृत्तचित्र फिल्मकार अरविंद सिन्हा की अगुआई वाली सात सदस्यीय जूरी ने किया। इन बीस फिल्मों में अंग्रेजी से ‘1947-ब्रेक्सिट इंडिया’, ‘बैक टू द फ्यूचर’, मणिपुरी भाषा से ‘आंद्रो ड्रीम्स’, ‘लास्ट मीट’, असमिया भाषा से वरिष्ठ फिल्म समीक्षक-निर्देशक उत्पल बरपुजारी की ‘बरुआर संसार’, ‘कथावर’, ‘लचित’, मराठी से ‘भंगार’, ‘प्रदक्षिणा’, ‘उत्सवमूर्ति’, तमिल से ‘नानसेई नीलम’, डोगरी भाषा में बनी ‘चुपी रोह’, शिल्पिका बरदोलोइ की मिजो भाषा की ‘मऊ-द स्पिरिट ड्रीम्स ऑफ चेराव’, कोंकणी फिल्म ‘सदाबहार’, मलयालम से ‘श्री रुद्रम’, ओड़िया में बनी ‘द सी एंड सैवन विलेज’ के अलावा हिन्दी से ‘बासन’, ‘बहरूपिया’ और कई राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके मनीष सैनी की ‘गिद्ध’ जैसी फिल्मों के साथ-साथ ‘लाइफ इन लूम’ भी थी जो हिन्दी, तमिल, असमिया, बांग्ला और अंग्रेजी में बनी है। इन फिल्मों में से लोंगजम मीना देवी की मणिपुरी भाषा में बनी ‘आंद्रो ड्रीम्स’ को इस खंड की ओपनिंग फिल्म बनाया गया है। खास बात यह रही कि ‘बहरूपिया’ वाले युवा फिल्मकार भास्कर विश्वनाथन पिछले साल इफ्फी में 75 क्रिएटिव माइंड्स में चुने गए थे और साल भर में ही उन्होंने पैनोरमा में जगह बना ली।
इनके अलावा क्लासिक खंड में कई पुरानी फिल्मों-‘विद्यापति’, ‘श्यामची आई’, ‘पाताल भैरवी’, ‘बीस साल बाद’, ‘गाइड’, ‘हकीकत’ आदि का प्रदर्शन भी किया गया। ‘हकीकत’ के निर्देशक स्वर्गीय चेतन आनंद के पुत्र केतन आनंद व ‘गाइड’ के निर्देशक स्वर्गीय विजय आनंद के बेटे अभय आनंद भी इस समारोह में मौजूद थे। ‘गोआ फिल्म पैकेज’ के अंतर्गत गोआ पर आधारित सात फिल्में दिखाई गईं जिनमें से फिल्म क्रिटिक-फिल्मकार ट्रॉय रिबेरो की राजेंद्र गुप्ता-सुष्मिता मुखर्जी वाली ‘द विटनैस’ को खासा पसंद किया गया।
कुछ कहा-बहुत सुना
हजारों की तादाद में देश-दुनिया से आए फिल्म-प्रेमियों, फिल्मकारों, कलाकारों, तकनीशियनों, सिनेमा के छात्रों, मीडिया के लोगों ने इस समारोह में ढेरों अनुभव हासिल किए। पंकज त्रिपाठी, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, बॉबी बेदी, वाणी त्रिपाठी, डॉली आहलूवालिया तिवारी, मनोज वाजपेयी, सनी देओल, अनिल शर्मा, सलमान खान, राजकुमार संतोषी, विजय सेतुपति, खुशबू सुंदरम, जोया अख्तर, ए.आर. रहमान, रसूल पूकुट्टी, मधुर भंडारकर, के.के. मैनन, दिव्येंदु शर्मा, बाबिल, संजय मिश्रा, शेखर कपूर, विद्या बालन, शुजित सरकार, विपिन शर्मा, पूजा भट्ट, रानी मुखर्जी, श्रीलंका के क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरन, गुनीत मोंगा, कार्तिकी गोंजाल्विस, अश्विनी अय्यर तिवारी, सुधीर मिश्रा, किरण कुमार, गुलशन ग्रोवर, रंजीत, रजा मुराद, ऋषभ शैट्टी जैसी कई फिल्मी हस्तियों संग सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चाएं व मास्टर क्लास आदि का आयोजन हुआ। इनके अतिरिक्त बड़ी तादाद में विदेशी फिल्मकारो, कलाकारों व तकनीशियनों के साथ भी मास्टर क्लास का आयोजन किया गया।
फिल्म बाजार का आयोजन
इफ्फी के समानांतर राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ‘फिल्म बाजार’ का आयोजन भी करता है जिसमें देसी-विदेशी लोगों को फिल्मों के कारोबार को समझने और उसमें अपनी जगह बनाने-तलाशने को प्रोत्साहित किया जाता है। बहुत सारे लोग तो केवल फिल्म बाजार में शामिल होने के लिए ही हर बरस गोआ आते हैं। यहां भी ढेरों फिल्मों का प्रर्दशन हुआ। रोजाना यहां किस्म-किस्म की वर्कशॉप, चर्चाएं, ओपन फोरम, विमोचन वगैरह भी हुए। साथ ही यहां विभिन्न राज्यों के पर्यटन विभागों ने भी अपने स्टाल लगाए ताकि वे फिल्म वालों को अपने यहां शूटिंग करने के लिए आमंत्रित कर सकें। भारतीय चित्र साधना फिल्म समारोह, चंडीगढ़ स्थित एच.एल.वी. फिल्म सिटी का स्टाल आकर्षण का विशेष केंद्र रहा। बंटाग्राम वाले सिद्धार्थ भारती ने बताया कि उनकी कंपनी फिल्मों को डब करवाने, बिकवाने, अच्छे मंच दिलवाने में मदद करती है। पिछले साल की तरह इस बार भी देश भर से 75 प्रतिभाओं को चुना गया व उन्हें सिर्फ 48 घंटे में एक-एक फिल्म बनाने की चुनौती दी गई जिसे उन्होंने समय रहते पूरा भी किया। इनमें से ‘ओड’ नामक लघु-फिल्म को अव्वल ठहराया गया। इस परिसर में कई तरह की प्रदर्शनियां भी लगाई गईं।
रंगत और रौनकें
गोआ तो अपने-आप में ही बहुत रंगीन जगह है। लेकिन इफ्फी के दौरान यहां का माहौल और ज्यादा खिल-खिल उठता है। इफ्फी के मुख्य परिसर से लेकर कला-केंद्र तक के लगभग एक किलोमीटर के रास्ते में किस्म-किस्म के स्टॉल की रौनक देखते ही बनती थी। पणजी शहर की कई सड़कों पर सजावटों और रोशनियों के लुभावने नजारे देखे गए। इफ्फी परिसर की साज-सज्जा तो आंखें चुंधिआने वाली रही। यह सारी रौनक अहमदाबाद के नेशनल इंस्टट्यूट ऑफ डिजाइनिंग ने की।
बंटे पुरस्कार बेशुमार
हर बार की तरह इफ्फी में इस बार भी ढेरों पुरस्कार और सम्मान वितरित किए गए। हॉलीवुड के विख्यात निर्माता-अभिनेता माइकल डगलस को समारोह का प्रतिष्ठित सत्यजित रे लाइफटाइम अचीवमैंट पुरस्कार दिया गया। प्रतियोगिता खंड की 15 फिल्मों में से सर्वश्रेष्ठ फिल्म पर्शिया की ‘एंडलैस बॉडर्स’, इसी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पौरिया राहिमी सम, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक बुल्गारिया की ‘ब्लागास लैसन’ के लिए स्टीफन कोमानदारेव, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री मेलानी थियेरे को फ्रेंच फिल्म ‘पार्टी ऑफ फूल्स’ के लिए और स्पेशल जूरी अवार्ड कन्नड़ फिल्म ‘कांतारा’ के लिए ऋषभ शैट्टी को दिया गया। निर्देशक की पहली सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार अरब-कुर्द की संयुक्त फिल्म ‘व्हेन द सीडिंग्स ग्रो’ के लिए रेजर आजाद काया को दिया गया। इस बार से एक नया पुरस्कार ओ.टी.टी. के लिए भी शुरू किया गया जिसके लिए 15 ओ.टी.टी. मंचों से 10 भाषाओं में 32 एंट्री मिलीं। इनमें से ‘पंचायत’ के सीजन-2 को पुरस्कृत किया गया। यूनेस्को-गांधी मैडल फ्रांस-यू.के-ग्रीस की संयुक्त फिल्म ‘ड्रिफ्ट’ को दिया गया।
(नोट-मेरा यह लेख कनाडा से प्रकाशित होने वाले लोकप्रिय हिन्दी साप्ताहिक ‘हिन्दी अब्रोड’ में छप चुका है)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)