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Home यादें

बुलंद वादों-इरादों के साथ विदा हुआ 53वां इफ्फी

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/11/28
in यादें
2
बुलंद वादों-इरादों के साथ विदा हुआ 53वां इफ्फी
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-दीपक दुआ…

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) का नवंबर, 2022 में संपन्न हुआ 53वां संस्करण कई मायनों में खास रहा। एक नए किस्म के जोश, उत्साह और उमंग के साथ नौ दिन चले इस उत्सव ने जहां फिल्म प्रेमियों को नई उम्मीदें दिखाईं वहीं सिनेमा बनाने वालों को भी नई राहें दिखाने में यह पीछे नहीं रहा।

1952 से लेकर अब तक इफ्फी के रूप-रंग में कई किस्म के बदलाव हुए हैं। पहले यह महोत्सव घुमंतू था। हर साल देश के अलग-अलग शहरों में होता था। लेकिन 2004 से यह गोआ में जाकर जम चुका है और अपनी एक अलग पहचान भी हासिल कर चुका है। गोआ में भी यह पहले 23 नवंबर से 3 दिसंबर तक होता था। फिर यह 20 से 30 नवंबर तक होने लगा लेकिन 2016 से इसे 20 से 28 नवंबर तक आयोजित किया जाने लगा है।

रंगारंग शुरूआत

गोआ की राजधानी पणजी के बाहरी इलाके में स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्टेडियम में हजारों लोगों की मौजूदगी में इस बार के इफ्फी की रंगारंग शुरूआत हुई। पारंपरिक और प्रोफेशनल दोनों ही रंग इस कार्यक्रम में देखने को मिले। पहले हिस्से में केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने गोवा के राज्यपाल, मुख्यमंत्री व अन्य गणमान्य लोगों के साथ इफ्फी का उद्घाटन किया जिसके बाद अभिनेता अपारशक्ति खुराना ने शो की कमान संभाली। इस दौरान अजय देवगन, सुनील शैट्टी, परेश रावल, मनोज वाजपेयी, गीतकार प्रसून जोशी, लेखक विजयेंद्र प्रसाद जैसी ढेरों विख्यात फिल्मी हस्तियां मौजूद रहीं और दूसरे हिस्से में सारा अली खान, वरुण धवन, अमृता खानविलकर, कार्तिक आर्यन समेत कई सारे कलाकारों की परफॉर्मेंस हुई। इस ओपनिंग कार्यक्रम के पहले हिस्से को जहां दूरदर्शन ने लाइव दिखाया वहीं दूसरे हिस्से को जल्द ही कलर्स व वूट पर प्रसारित किया जाएगा। हालांकि इस फेर में यह कार्यक्रम चार घंटे से भी ज्यादा लंबा खिंच गया और कुछ एक बार कमजोर भी महसूस हुआ। केंद्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने अपने संबोधन में भरोसा दिलाया कि जल्द ही भारत फिल्मों की शूटिंग, सह-निर्माण, पोस्ट प्रोडक्शन व तकनीकी पार्टनरशिप में दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद बनेगा।

दुनिया भर से आईं फिल्में

इस बार के इफ्फी में 79 देशों की सैंकड़ों फिल्में शामिल हुईं। ऑस्ट्रिया के निर्देशक डिएटर बर्नर की फिल्म ‘एल्मा एंड ऑस्कर’ से समारोह की ओपनिंग हुई। मिड-फेस्ट फिल्म ‘फिक्सेशन’ रही व समारोह की समापन फिल्म होने का सम्मान पौलैंड की ‘परफैक्ट नंबर’ को मिला। अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता खंड में देश-विदेश की 15 फिल्में दिखाई गईं। आखिरी दिन इनमें से कुछ फिल्मों को लाखों रुपए के प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिले। प्रथम पुरस्कार ‘स्वर्ण मयूर’ स्पेनिश फिल्म ‘आई हेव इलैक्ट्रिक ड्रीम्स’ को दिया गया। निर्देशक की पहली फिल्म, यूनेस्को-गांधी मैडल, घूमता आइना, विश्व सिनेमा, एनिमेशन, श्रद्धांजलि जैसे अनेक खंडों में सैंकड़ों की तादाद में दुनिया भर से आई फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। कंट्री फोकस खंड में फ्रांस की आठ फिल्में दिखाई गईं।

भारतीय फिल्मों की धूम

पिछले एक साल में भारत में बनी चुनिंदा उत्कृष्ट फिल्मों को दिखाने वाले भारतीय पैनोरमा खंड में देश के विभिन्न हिस्सों से आईं 25 फीचर फिल्में दिखाई गईं जिन्हें फिल्मकार विनोद गनात्रा की अध्यक्षता और ए. कार्तिक राजा, डॉ. अनुराधा सिंह, शैलेष दवे, फिल्म पत्रकार विष्णु शर्मा जैसे सदस्यों वाली जूरी ने चुना। इन 25 फिल्मों में से कन्नड़ की ‘हदिनेलेंतु’ से पैनोरमा खंड की शुरुआत हुई। तेलुगू की ‘अखंडा, मलयालम की ‘अरियिप्पु’, मराठी की ‘एकदा काय झांल’, तमिल की ‘जय भीम’, तेलुगू की ‘खुदीराम बोस’, मैथिली की ‘लोटस ब्लूम्स’, बांग्ला की ‘महानंदा’, हिन्दी की ‘मेजर’, ओड़िया की ‘प्रतीक्षा’, तेलुगू की ‘आरआरआर-रौद्रम, रानम, रुधिरम, मराठी की ‘शेर शिवराज’, हिन्दी की ‘सिया’, ‘द स्टोरीटेलर’ व ‘द कश्मीर फाइल्स’ व बांग्ला की ‘टॉनिक’ जैसी फिल्मों के प्रति दर्शकों में खासा उत्साह देखा गया। इस खंड की 19 गैर-फीचर फिल्मों का चयन मणिपुरी फिल्मकार ओइनम डोरेन की अध्यक्षता में हरीश भिमानी, गुजराती फिल्मकार मनीष सैनी, राकेश मित्तल, संस्कार देसाई आदि की जूरी ने किया।

इनके अलावा इस साल का दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाली अभिनेत्री आशा पारिख की ‘कटी पतंग’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘दो बदन’ जैसी फिल्में, मणिपुरी सिनेमा के 50 वर्ष होने के उपलक्ष्य में दस फिल्में, पुरानी क्लासिक फिल्मों में से ‘गणशत्रु’, ‘नानक नाम जहाज है’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’ जैसी फिल्में, पिछले एक साल में विदा हुईं बप्पी लाहिड़ी, भपिंदर सिंह, के.के., लता मंगेशकर, पंडित बिरजू महाराज, पंडित शिवकुमार शर्मा, रमेश देव, रवि टंडन, सावन कुमार टाक, टी. रामाराव जैसी फिल्मी हस्तियों को श्रद्धांजलि देती फिल्में भी दिखाई गईं। साथ ही बहुत सारी नई फिल्मों व वेब-सीरिज के यहां प्रीमियर भी आयोजित किए गए।

फिल्म-प्रेमियों का हुजूम

हजारों की तादाद में देश-दुनिया से आए फिल्म-प्रेमियों, फिल्मकारों, कलाकारों, तकनीशियनों, सिनेमा के छात्रों, मीडिया के लोगों ने इस समारोह में ढेरों अनुभव हासिल किए। पंकज त्रिपाठी, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, मणिरत्नम, अनुपम खेर, बॉबी बेदी, वाणी त्रिपाठी, संपादक श्रीकर प्रसाद, कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा, सिनेमैटोग्राफर अनिल मेहता, नाना पाटेकर, फिल्म ‘कुंगफू पांडा’ के निर्माता मार्क ओसबोर्न, आदिल हुसैन, हृषिता भट्ट, यामी गौतम, वरुण शर्मा जैसी कई फिल्मी हस्तियों संग सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चाएं भी हुईं। इनके अलावा भी बड़ी तादाद में हिन्दी के अतिरिक्त विभिन्न भारतीय भाषाओं व विदेशों से आए फिल्मकारों व कलाकारों ने संवाद स्थापित किए।

फिल्म बाजार का आयोजन

इफ्फी के समानांतर राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ‘फिल्म बाजार’ का आयोजन भी करता है जिसमें देसी-विदेशी लोगों को फिल्मों के कारोबार को समझने और उसमें अपनी जगह बनाने-तलाशने को प्रोत्साहित किया जाता है। बहुत सारे लोग तो केवल फिल्म बाजार में शामिल होने के लिए ही हर बरस गोआ आते हैं। अभिनेत्री मीता वशिष्ठ यहां अपनी फिल्म ‘मणि कौल एंड दैट थिंग कॉल्ड द एक्टर’ के साथ यहां नजर आईं तो वहीं नए किस्म के सिनेमा के पैरोकार लेखक-निर्देशक देवाशीष मखीजा अपनी फिल्म ‘जोरम’ को लेकर यहां मौजूद थे। इसके अलावा रोजाना यहां किस्म-किस्म की वर्कशॉप, चर्चाएं, ओपन फोरम, विमोचन वगैरह भी हुए। साथ ही यहां विभिन्न राज्यों के पर्यटन विभागों ने भी अपने स्टाल लगाए ताकि वे फिल्म वालों को अपने यहां शूटिंग करने के लिए आमंत्रित कर सकें। भारतीय चित्र साधना फिल्म समारोह का स्टाल आकर्षण का विशेष केंद्र रहा।

रंगत और रौनकें

गोआ तो अपने-आप में ही बहुत रंगीन जगह है। लेकिन इफ्फी के दौरान यहां का माहौल और ज्यादा खिल-खिल उठता है। इफ्फी के मुख्य परिसर से लेकर कला-केंद्र तक के लगभग एक किलोमीटर के रास्ते में किस्म-किस्म के स्टॉल की रौनक देखते ही बनती थी। पणजी शहर की कई सड़कों पर सजावटों और रोशनियों के लुभावने नजारे देखे गए। इफ्फी में ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और सिनेमा’ विषय पर प्रर्दशनी भी लगाई गई। पिछले साल की तरह इस बार भी देश भर से 75 प्रतिभाओं को चुना गया था व उन्हें 53 घंटे में एक फिल्म बनाने की चुनौती दी गई जिसे उन्होंने वक्त से पहले पूरा भी कर दिखाया। पुणे फिल्म संस्थान के सहयोग से फिल्म तकनीक पर एक प्रदर्शनी लगाई गई।

पुरस्कारों की बौछार

हर बार की तरह इफ्फी में इस बार भी ढेरों पुरस्कार और सम्मान वितरित किए गए। उद्घाटन समारोह में सत्यजित रे लाइफटाइम अचीवमैंट पुरस्कार विख्यात स्पेनिश फिल्मकार कार्लोस सॉरा को दिया गया जिसे उनकी तरफ से उनकी बेटी ने ग्रहण किया। वहीं समापन समारोह में वर्ष की भारतीय फिल्मी शख्सियत का पुरस्कार अभिनेता चिरंजीवी को दिया गया।

Article Date-28 November, 2022

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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Comments 2

  1. Rakesh Om says:
    2 months ago

    सही कहा भाईसाब, पहले ये घुमंतू था, जिसके चलते 97 से 2000 के बीच 1 साल मुझे इस फेस्टिवल को दिल्ली में देखने का मौक़ा मिला था 🙂

    Reply
  2. Rakesh Om says:
    2 months ago

    सही कहा भाईसाब, पहले ये घुमंतू था जिसके चलते सन 97 से 2000 के बीच एक साल ये फेस्टिवल मुझे दिल्ली में देखने का मौक़ा मिला था:)

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