-दीपक दुआ…
1952 में शुरू हुए भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) ने इस बरस अपने 50वें संस्करण में कदम रखा। इस सुनहरे मौके पर इफ्फी की रंगत कुछ अलग ही रही। 20 नवंबर की शाम करण जौहर के संचालन और अमिताभ बच्चन व रजनीकांत जैसे दो महानायकों की उपस्थिति में इस समारोह की रंगारंग शुरूआत हुई। देश-विदेश की ढेरों उत्कृष्ट फिल्मों के प्रदर्शन के साथ-साथ सिनेमा से जुड़ी बहुतेरी गतिविधियां से यह उत्सव लबरेज रहा।
बदला रंग बदला रूप
1952 से लेकर अब तक इफ्फी के रूप-रंग में कई किस्म के बदलाव हुए हैं। पहले यह महोत्सव घुमंतू था। हर साल देश के अलग-अलग शहरों में होता था। लेकिन 2004 से यह गोआ में जाकर जम चुका है और अपनी एक अलग पहचान भी हासिल कर चुका है। गोआ में भी यह पहले 23 नवंबर से 3 दिसंबर तक होता था। फिर यह 20 से 30 नवंबर तक होने लगा और 2016 से इसे 20 से 28 नवंबर तक आयोजित किया जाने लगा।
दुनिया भर से आईं फिल्में
इस बार के इफ्फी में 76 देशों की सैंकड़ों फिल्में शामिल हुईं। फिल्मकार कमलेश मिश्रा, नयन प्रसाद, रेखा गुप्ता आदि की सदस्यता और रमेश सिप्पी की अध्यक्षता वाली एक समिति ने दुनिया भर से आईं फिल्मों में से इफ्फी के लिए फिल्मों का चुनाव किया। यूरोपियन फिल्मकार गोरान पास्कलजेविक्स की फिल्म ‘डिस्पाइट द फॉग’ को इफ्फी की ओपनिंग फिल्म का दर्जा मिला। जापानी फिल्मकार तकाशी मिके की फिल्मों के एक खंड के अलावा फोकस-कंट्री के तहत रूस की कुछ फिल्में, ऑस्कर जीत चुकीं ‘गोन विद् द विंड’, ‘कासाब्लांका’, ‘बेन-हुर’, ‘द गॉड फादर’, ‘फॉरेस्ट गंप’ जैसी फिल्मों के एक खंड, यूनेस्को गांधी मैडल पा चुकीं फिल्में, मास्टर फ्रेम्स में दिग्गज फिल्मकारों की फिल्में, प्रतियोगिता खंड में 15 फिल्में, क्लाइडोस्कोप में पहले आ चुकी फिल्में जैसे अनेक वर्गों में यहां फिल्में दिखाई गईं। जर्मनी की ‘ट्रॉमफेब्रिक’ को समारोह की मध्य फिल्म और इटली की ‘मार्घे एंड हर मदर’ को समापन फिल्म का दर्जा हासिल हुआ।
भारतीय फिल्मों की धूम
पिछले एक साल में भारत में बनी चुनिंदा उत्कृष्ट फिल्मों को दिखाने वाले भारतीय पैनोरमा खंड में देश के विभिन्न हिस्सों से आईं 26 फीचर फिल्में दिखाई गईं जिन्हें फिल्मकार प्रिर्यदर्शन की अध्यक्षता और अहातियान, हरीश भिमानी, कुक्कू कोहली, श्रीलेखा मुखर्जी जैसे सदस्यों वाली जूरी ने चुना। इनमें से मलयालम की ‘जल्लीकट्टू’ और उषा जाधव अभिनीत मराठी फिल्म ‘माई घाट’ को बेहद सराहा गया। इस खंड की 15 गैर-फीचर फिल्मों का चयन निर्देशक राजेंद्र जांगले की अध्यक्षता में अशोक शरण, पार्वती मैनन, प्रमोद कलिता आदि की जूरी ने किया। इनमें से अभिनेत्री बिदिता बाग वाली बांग्ला फिल्म ‘बोउमा’ को काफी पसंद किया गया। इनके अलावा इस साल का दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाले अमिताभ बच्चन की ‘पा’, ‘शोले’, ‘दीवार’ जैसी फिल्में, 1969 में बनीं और इस साल 50 वर्ष पूरे करने वाली ‘सत्यकाम’, ‘गूपी गायन बाघा बायन’, ‘नानक नाम जहाज है’ जैसी फिल्में, गोआ की कोंकणी भाषा की फिल्में, पिछले एक साल में विदा हुईं गिरीश कर्नाड, मृणाल सेन, विद्या सिन्हा, वीरू देवगन, खय्याम, कादर खान जैसी फिल्मी हस्तियों को श्रद्धांजलि देती फिल्में, ‘भुवन शोम’, ‘भूमिका’, ‘दुविधा’, ‘मेघे ढका तारा’ जैसी नव-सिनेमा की फिल्मों के पुनरावलोकन जैसे अनेक खंड भी यहां प्रदर्शित किए गए।
फिल्म-प्रेमियों का हुजूम
लगभग नौ हजार से ज्यादा प्रतिनिधियों की शिरकत वाले इस समारोह में देश-दुनिया से आए फिल्म-प्रेमियों, फिल्मकारों, कलाकारों, तकनीशियनों, सिनेमा के छात्रों, मीडिया के लोगों ने ढेरों अनुभव हासिल किए। गोआ आर्ट कॉलेज के दो सौ छात्रों की बनाई कलाकृतियां जगह-जगह प्रदर्शित की गईं। फिल्मकारों, कलाकारों ने विभिन्न विषयों पर हुई चर्चाओं में भाग लिया और कई तरह की मास्टर क्लास व वर्कशॉप्स भी आयोजित की गईं। फिल्म-क्विज आदि भी आयोजित की गईं।
फिल्म बाजार का आयोजन
इफ्फी के समानांतर राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम चार दिन के ‘फिल्म बाजार’ का आयोजन करता है जिसमें देसी-विदेशी लोगों को फिल्मों के कारोबार को समझने और उसमें अपनी जगह बनाने-तलाशने को प्रोत्साहित किया जाता है। इसके अलावा रोजाना यहां किस्म-किस्म की वर्कशॉप, चर्चाएं, ओपन फोरम, विमोचन वगैरह भी हुए। साथ ही यहां विभिन्न राज्यों के पर्यटन विभागों ने भी अपने स्टाल लगाए ताकि वे फिल्म वालों को अपने यहां शूटिंग करने के लिए आमंत्रित कर सकें। भारतीय चित्र साधना फिल्म समारोह और सिनेमा की जानकारी देने वाले फिल्म कंपेनियन के स्टाल आकर्षण का केंद्र रहे।
सुविधाएं और सहूलियतें
फिल्म समारोह परिसर में साफ-सफाई, खाने-पीने, सुरक्षा, एंबुलैंस आदि की मूलभूत सुविधाओं के अलावा पेपरलेस टिकट-व्यवस्था भी लागू की गई। ऑनलाइन टिकट बुक कराने, वरिष्ट नागरिकों आदि के लिए अलग से काउंटर, समारोह के अन्य स्थलों तक आने-जाने के लिए मुफ्त परिवहन, बैठने-बतियाने के लिए नाव के आकार के ठिकाने आदि भी बनाए गए।
रंगत और रौनकें
गोआ तो अपने-आप में ही बहुत रंगीन जगह है। लेकिन इफ्फी के दौरान यहां का माहौल और ज्यादा खिल-खिल उठता है। इफ्फी के मुख्य परिसर से लेकर कला-केंद्र तक के लगभग एक किलोमीटर के रास्ते में किस्म-किस्म के स्टॉल की रौनक देखते ही बनती थी। पणजी शहर की कई सड़कों पर सजावटों और रोशनियों के लुभावने नजारे देखे गए। मांडवी नदी के किनारे पुरानी फिल्मों के पोस्टरों को देखने लोग जुटते थे। एक चिल्ड्रन-विलेज भी बनाया गया जिसमें रंगारंग कार्यक्रमों के अलावा ‘पिक्चर टाइम’ के लगाए शानदार टेंपरेरी थिएटर में रोजाना बच्चों की फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। अनिल कपूर समेत कई फिल्मी हस्तियों ने इस थिएटर का दौरा किया और इसे सराहा।
पुरस्कारों की बौछार
हर बार की तरह इफ्फी में इस बार भी ढेरों पुरस्कार और सम्मान वितरित किए गए। शुरूआत अभिनेता रजनीकांत को आइकॉन ऑफ द गोल्डन जुबली अवार्ड देने से हुई। लाइफटाइम अचीवमैंट पुरस्कार फ्रेंच अदाकारा इसाबेला हपर्ट को मिला। फिल्मकारों को मिनी मूवी मेनिया-लघु फिल्म प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर भी दिया गया जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर 10 और स्थानीय स्तर पर 20 पुरस्कार दिए गए। समारोह के अंत में प्रतियोगिता खंड की फिल्मों को लाखों रुपए के पुरस्कार भी बांटे गए। फ्रेंच फिल्म ‘पार्टिकल्स’ को बैस्ट फिल्म, मलयालम फिल्म ‘जल्लीकट्टू’ के लिए लिजो जोस को बैस्ट डायरेक्टर, ब्राजीलियन फिल्म ‘मरिघेला’ के लिए सियू जोर्ज को बैस्ट अभिनेता और मराठी फिल्म ‘माई घाट’ के लिए उषा जाधव को बैस्ट अभिनेत्री के पुरस्कार दिए गए। कुछ बरस पहले अपनी पहली फिल्म ‘लाहौर’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके फिल्मकार संजय पूरणसिंह चौहान की फिल्म ‘72 हूरें’ को यूनेस्को-गांधी मैडल पुरस्कार में विशेष उल्लेख सम्मान से नवाज़ा गया।
(नोट-इस लेख का संपादित संस्करण 1 दिसंबर, 2019 के समाचार-पत्र ‘हरिभूमि’ में प्रकाशित हुआ है)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)