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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-कांटों में राह बनाने को ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/05/23
in फिल्म/वेब रिव्यू
6
रिव्यू-कांटों में राह बनाने को ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘मैं रावण को माफ कर देता अगर उसने रावण बन कर सीता का अपहरण किया होता लेकिन उसने साधु का भेस धारण किया था जिसका प्रभाव पूरे संसार के साधुत्व और सनातन पर सदियों तक रहेगा, जिसकी कोई माफी नहीं है।’

एक ‘बाबा’ के खिलाफ कोर्ट में पांच साल तक चले केस के अंतिम दिन एक 16 साल की बच्ची का वकील पी.सी. सोलंकी अपनी बात रखते हुए जब शिव-पार्वती की आपसी बातचीत का यह हिस्सा सुना कर उस बाबा के लिए फांसी की सज़ा की मांग करता है तो अदालत में मौजूद हर शख्स की आंखें नम होती हैं। आप यह फिल्म देखेंगे तो पाएंगे कि अचानक आपको भी अपने मोबाइल या टेलीविज़न की स्क्रीन धुंधली दिखने लगी है। पनियाई आंखों से आप इस फिल्म के बनाने वालों की तारीफ करते हैं और यह भी पाते हैं कि कैसे मनोज वाजपेयी इस एक सीन में फिल्म को उसके चरम पर ले जा चुके हैं। इस जिरह के फौरन बाद उनकी कांपती उंगलियां, उनकी भर्राई आवाज़ और निढाल होकर उनका अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ना बता देता है कि इस दुबले-पतले अभिनेता के भीतर अभिनय का असीम सागर उमड़ता है।

अपने अनुयाइयों की आस्था का नाजायज़ फायदा उठाने वाले कथित ‘बाबाओं’ की कहानियों से हमारा समाज अनजान नहीं है। ऐसा ही एक ‘बाबा’ अपने कुकृत्य के लिए आजीवन कारावास भोग रहा है। उसी को आधार बना कर रची-बुनी गई यह फिल्म उस बाबा के चमत्कार या आभामंडल को नहीं बल्कि उस बच्ची व उसके परिवार के पुलिस में जाने और फैसला आने तक डटे रहने की कहानी दिखाती है। साथ ही यह जोधपुर के उस वकील के संघर्ष को भी दिखाती है जिसने तमाम दबावों, लालच, धमकियों और हमलों के बावजूद पूरे दम के साथ यह केस लड़ा और जीता।

लेखक दीपक किंगरानी ‘स्पेशल ऑप्स’ (वेब-रिव्यू : रोमांच की पूरी खुराक ‘स्पेशल ऑप्स’ में) और ‘स्पेशल ऑप्स 1.5’ (वेब-रिव्यू : रोमांच डेढ़ गुना ‘स्पेशल ऑप्स 1.5’ में) जैसी थ्रिलर वेब-सीरिज़ में अपनी लेखनी से हमें खासे प्रभावित कर चुके हैं। लेकिन इस फिल्म में वह हमें किसी किस्म का थ्रिल नहीं परोसते। बल्कि यहां तो वह थ्रिल की भरपूर गुंजाइश होने के बावजूद इस केस के दोनों पक्षों की अपने-अपने मुवक्किल के पक्ष में की गई कोशिशों पर टिके रहते हैं। हाल के वक्त का बैस्ट कोर्टरूम ड्रामा परोसती इस फिल्म में दीपक हमें जहां उस वकील की पारिवारिक ज़िंदगी में ले जाते हैं वहीं पीड़िता बच्ची और उसके परिवार की सोच से मिलवाना भी नहीं भूलते। सटीक लिखी गई पटकथा का उत्तम उदाहरण पेश करती है यह फिल्म। फिल्म में ऐसे अनेक दृश्य हैं जो बेहद प्रभावशाली हैं और याद रह जाते हैं। संवाद कई जगह बहुत असरदार हैं और अंत आते-आते वे आपके दिल में उतर कर उसे पिघलाने लगते हैं।

निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की ‘एस्पिरेंट्स’ (वेब-रिव्यू : उड़ने और जुड़ने की बातें ‘एस्पिरेंट्स’ में) में प्रभावित करने के बाद हालांकि ‘सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड’ (वेब-रिव्यू : कम तेल-मसाले वाला सास-बहू का अचार) में लड़खड़ाए थे लेकिन इस फिल्म के निर्देशक के तौर पर तो उन्होंने खुद अपने लिए भी एक ऊंची रस्सी बांध ली है जिसे लांघने में खुद उन्हें भी मुश्किल होगी। एक-एक सीन उन्होंने कायदे से रचा है। जहां, जैसा और जितना ज़रूरी हुआ, उतना तनाव, भय, उत्तेजना, कौतुक उपजा पाने में वह कामयाब रहे हैं। बेशक इस काम में उन्हें प्रोडक्शन, कैमरा, संपादन, कॉस्ट्यूम आदि का भी भरपूर साथ मिला है। और इससे भी बढ़ कर साथ मिला है कलाकारों का।

इस फिल्म के लिए कलाकार चुनने वाले कास्टिंग डायरेक्टर की भी सराहना होनी चाहिए। पर्दे पर एक भी किरदार ऐसा नहीं दिखा जिसमें उन्होंने कोई मिसफिट कलाकार लिया हो। बाबा बने सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ से लेकर पीड़िता के रोल में अदिति सिन्हा अद्रिजा तक ने वास्तविकता से अपने चरित्रों को जिया है। वकील सोलंकी के किरदार में मनोज वाजपेयी अपने अभिनय से चकित करते हैं। एक-एक भाव, एक-एक भंगिमा से वह मनोज नहीं सोलंकी हुए जाते हैं।

गाने ठीक-ठाक हैं, बैकग्राउंड में आते हैं सो अखरते नहीं हैं। तारीफ इस फिल्म के निर्माताओं की भी ज़रूरी है। अपने इर्दगिर्द से उठी कहानियों पर बनी फिल्मों को मंच देने के लिए ज़ी-5 भी सराहना का हकदार है। देख डालिए इस फिल्म को। यह किसी कांटे की तरह चुभेगी। यही इसका मकसद भी है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-23 May, 2023 on Zee5

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: abhijit lahiriaditi sinha adrijaApoorv Singh Karkideepak kingraniManoj BajpaiSirf Ek Bandaa Kaafi HaiSirf Ek Bandaa Kaafi Hai reviewSurya Mohan KulshreshthaZEE5
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Comments 6

  1. CHETAN CHAWLA says:
    4 months ago

    फिल्म कसी हुई हो या ढीली, आपकी समीक्षा को हमेशा टू द प्वाइंट ही पाया है। इस फिल्म का और इस पर आपके रिव्यू का इंतजार था। आपने फिल्म देखने की इच्छा को और प्रबल कर दिया है। धन्यवाद।

    Reply
    • CineYatra says:
      4 months ago

      धन्यवाद मित्र

      Reply
  2. Bhupendra Khurana says:
    4 months ago

    बहुत खूब। एक बार तो देखना बनता ही है

    Reply
  3. दिलीप कुमार says:
    4 months ago

    मनोज बाबू कमाल ही हैं इस वक्त

    Reply
  4. NAFEESH AHMED says:
    4 months ago

    फ़िल्म का रिव्यु एकदम सटीक है और एक सामाज में प्रचलित आड़बरों को आधार बनाकर यह फ़िल्म बनाई गयो है…कलाकारों का चयन निर्दशक की सूझ -बूझ का उदाहरण है..

    देखना तो लाजमी बनता है.

    Reply
  5. Dr. Renu Goel says:
    4 months ago

    आपके रिव्यु के बाद ही फिल्म देखते हैं
    आप कहते हैं तो मनोज वाजपेयी जी का अभिनय ज़रूर देखेगे

    Reply

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