-दीपक दुआ…
टेलीविजन के छोटे पर्दे से आकर फिल्मों में छाने की चंद मिसालों में से एक हैं श्रेयस तलपड़े। ‘इकबाल’, ‘डोर’, ‘ओम शांति ओम’, ‘वैलकम टू सज्जनपुर’, ‘गोलमाल 3’, ‘जोकर’, ‘कमाल धमाल मालामाल’, ‘हाऊसफुल 2’ जैसी ढेरों हिन्दी फिल्में करने के अलावा श्रेयस मराठी सिनेमा में भी लगातार सक्रिय हैं। अब वह हिन्दी की ‘वाह ताज’ में आ रहे हैं। पिछले दिनों उनसे आगरा में हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
-तो क्या करने जा रहे हैं आप ‘वाह ताज’ में?
-मैं इसमें महाराष्ट्र का एक किसान बना हूं जो एक दिन उठता है, अपनी बीवी और छोटी बच्ची को ट्रैक्टर में बिठाता है और आगरा पहुंच कर ताजमहल के बाहर खड़े होकर यह ऐलान कर देता है कि ताजमहल जिस जमीन पर बना है, वह उसके पुरखों की है और वह उसे वापस चाहिए। जाहिर सी बात है कि लोग उसे पागल कहते हैं। लेकिन वह डटा रहता है और लोग उसके साथ जुड़ने लगते हैं क्योंकि वह सबूत पेश करने लगता है। वे सबूत जब अदालत में जाकर चैक होते हैं तो पता चलता है कि वह तो सच बोल रहा है। फिर खोजबीन शुरू होती है कि आखिर माजरा क्या है और जब सच सामने आता है तो पता चलता है कि मामला तो कुछ और ही है।
-फिल्म की किस बात से आकर्षित होकर आपने इसके लिए हां की?
-कहानी। जब हमारे लेखक सलीम साहब ने मुझे एक लाइन में यह कहानी सुनाई तभी मैंने इसके लिए हां बोल दिया था। मुझे बहुत खुशी हुई कि कोई इस किस्म की कहानी सामने आई है। असल में यह एक पॉलिटिकल सेटायर है जिसमें हमारे किसानों की, हमारे सिस्टम की बात की गई है। हमारी फिल्मों से गांव और किसान गायब हो रहे हैं तो ऐसे में इस किस्म की कहानी का आना भी बड़ी बात है।
-यह फिल्म सैंसर बोर्ड में काफी समय तक अटकने के बाद पास हुई। क्या आपको नहीं लगता कि इधर सैंसर बोर्ड ऐसी फिल्मों को लेकर कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गया है जो सिस्टम की खामियों की बात करती हैं?
-सही कह रहे हैं आप। हाल के समय में जितनी फिल्मों पर सैंसर ने उंगली उठाई है और उन्हें अटकाया है तो कह सकते हैं कि हां, सैंसर ने यह रवैया अपना लिया है। और मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए भी है कि कल को कोई हम पर उंगली उठा दे, इससे पहले उस फिल्म को अटका दो कि देखो भाई, हमने तो मना ही किया था। यह जो अतिसंवेदनशीलता है, मेरे ख्याल से यह गैर-जरूरी है। पहले भी ऐसा सिनेमा बन रहा था और आगे भी बनेगा। अब अचानक से कोई दुनिया बदलने की बात नहीं हो रही है। तो मैं सैंसर को कहना चाहूंगा कि, थोड़ा ठंड रखो और चीजों को उसी नजरिए से देखो जिससे उन्हें देखा जाना चाहिए।
-लेकिन सैंसर की तो टिप्पणी थी कि अगर यह फिल्म रिलीज हुई तो देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो सकते हैं?
-वही तो सबसे हैरान करने वाली बात है। जब यह कमैंट हमें मिला तो हम सब हैरान हो गए कि इस फिल्म में ऐसा है क्या? फिर हमें पता चला कि उन्होंने ‘पीके’ और ‘प्रेम रतन धन पायो’ को भी मना किया था जबकि आप देखिए कि उन फिल्मों में भी ऐसा कुछ नहीं था।
-इधर कुछ समय से आपके कैरियर की जो दशा और रफ्तार है, उससे आप कितने संतुष्ट या रुष्ट हैं?
-रुष्ट तो बिल्कुल नहीं हूं। हां, मैं मानता हूं कि इधर कुछ समय से मैं उतनी फिल्मों में नहीं आ रहा हूं जैसे पहले आता था और इसके कई कारण हैं। एक तो मैं अपना प्रोडक्शन हाऊस खड़ा करना चाहता था जिसके लिए हम मराठी फिल्में बना रहे हैं। दूसरी और सबसे बड़ी वजह यह थी कि जिस किस्म की फिल्में मेरे पास आनी चाहिए थीं, वे नहीं आ रही थीं। तो बेकार की चीजें करने से अच्छा मुझे यह लगा कि मैं अपने प्रोडक्शन पर ध्यान दूं ताकि मुझे संतुष्टि मिले।
-कभी सोचा कि गलती कहां हो गई?
-देखिए, होता क्या है कि जब आप कुछ करते हो तो तभी करते हो जब वह आपको सही लगता है। यह तो बाद में जब रिजल्ट सामने आता है तो पता चलता है कि जिसे आपने सही समझ कर किया वह गलत हो गया। तो यह हमेशा होता है और सबके साथ होता है। आगे भी होगा। लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं है।
-‘ग्रेट ग्रैंड मस्ती’ जैसी फिल्म क्या सोच कर करते हैं?
-कभी-कभी दोस्ती भी निभानी पड़ती है।
-हिन्दी में भी कोई फिल्म बना रहे हैं?
-जी हां। मैं अपनी ही मराठी फिल्म ‘पोस्टर बॉयज’ को हिन्दी में बना रहा हूं और खास बात यह भी है कि उसे मैं ही डायरेक्ट कर रहा हूं। इसमें मेरे साथ सनी (देओल) पा जी और बॉबी देओल होंगे।
-डायरेक्टर बनने का फैसला कैसे कर लिया?
-असल में हम जिन लोगों को लेना चाह रहे थे वे सारे के सारे अगले लंबे समय तक बिजी हैं तो यह तय हुआ कि मैं ही इस फिल्म को डायरेक्ट करूं।
-इधर मराठी सिनेमा में एक उफान-सा आया हुआ है। हर हफ्ते दो-तीन मराठी फिल्में रिलीज हो रही हैं। इस उफान की क्या वजह लगती है आपको?
-वही जो हिन्दी फिल्मों में होता है जिसे हम भेड़चाल कहते हैं। एक फिल्म चल गई तो लोग लाइन लगा देते हैं जबकि वहां भी यही हो रहा है कि एक फिल्म चलती है और फिर कई फ्लॉप होती हैं। अब जैसे ‘सैराट’ चली है तो लोग वैसी ही फिल्में बनाए जा रहे हैं। वे यह नहीं सोचते कि जरूरत से ज्यादा सप्लाई नुकसान पहुंचाएगी।
-और किस फिल्म में दिखाई देंगे?
-अगले साल रोहित शैट्टी की ‘गोलमाल अगेन’ आनी है। करीब छह साल बाद ‘गोलमाल’ सीरिज की कोई फिल्म आ रही है। इसका मुझे बेसब्री से इंतजार है। फिर अपनी ‘पोस्टर बॉयज’ तो है ही।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)