-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
किसी कॉमेडी फिल्म से प्रियदर्शन का नाम जुड़ा हो तो उससे अपने-आप बड़ी उम्मीदें लग जाना स्वाभाविक है। फिर इस फिल्म ‘कमाल धमाल मालामाल’ को तो प्रियन की ही कमाल कॉमेडी ‘मालामाल वीकली’ से जोड़ कर प्रचारित किया जा रहा था। ऊपर से इस में प्रियन की फिल्मों में स्थाई तौर पर मौजूद रहने वाले ढेरों कलाकारों के साथ-साथ नाना पाटेकर भी हैं। ऐसे में इस फिल्म को देखने के लिए जाते समय मन में यह उम्मीद थी कि अगले ढाई घंटे हंसते हुए बीतेंगे और उसके बाद इसकी यादें लंबे समय तक गुदगुदाती रहेंगी। लेकिन अफसोस, इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो आपके दिल में जगह बना पाए। ढाई घंटे की यातना देती है यह फिल्म।
ईसाई बहुल आबादी वाले एक गांव में रहने वाले जॉनी को कोई भी पीट कर चला जाता है। डरपोक, आलसी जॉनी अपने गरीब पिता के विरोधी एक अमीर आदमी की बेटी से प्यार करता है। एक दिन गांव में एक अजनबी आता है जो जॉनी को पिटने से बचाता है और जॉनी यह खबर उड़ा देता है कि यह आदमी उसका बड़ा भाई है। इस अजनबी का क्या राज है और कैसे वह जॉनी की मदद करता है, यह इसमें दिखाया गया है।
फिल्म की कहानी तो चलो जैसी है, सही है लेकिन इसकी पटकथा बेहद लचर है और जिस तरह के किरदार इसमें गढ़े गए हैं वे उकताहट पैदा करते हैं। फिल्म के हीरो को ही लीजिए-वह आलसी है, बदतमीज़ है, डरपोक है और कोई भी ऐसा काम नहीं करता जिससे उसका हीरोइज़्म झलके। ऐसे नाकारा बंदे को भला हीरो के तौर पर कोई कैसे सराहेगा। कहने को इसमें ढेरों किरदार हैं लेकिन उनकी कोई विशेषता नहीं है। हैरानी और अफसोस की बात तो यह है कि इस फिल्म को उन नीरज वोरा ने लिखा है जो प्रियन के लिए कई अच्छी कॉमेडी फिल्में लिख चुके हैं। सुनी-सुनाई बातें, आजमाए जा चुके चुटकुले और घटिया संवाद, कुल मिला कर यह फिल्म बेकार लेखन का नमूना ही कही जाएगी। और अगर बात करें प्रियदर्शन के निर्देशन की, तो कहीं से भी यह नहीं लगता कि उन्होंने सचमुच इसे निर्देशित किया है। शक होता है कि क्या वह कभी सैट पर गए भी होंगे।
एक्टिंग हालांकि सभी की अच्छी है। नाना पाटेकर, परेश रावल, श्रेयस तलपड़े, सोना नायर, मधुरिमा, ओम पुरी, असरानी, शक्ति कपूर, रज़्ज़ाक खान, तरीना पटेल…। लेकिन जब किरदारों में ही दम न हो तो सिर्फ एक्टिंग से भी क्या होगा। गीत-संगीत काफी हल्का है। तार्किक रूप से भी फिल्म कमज़ोर है। उत्तर प्रदेश में दक्षिण भारत की लुक वाला ईसाई बहुल गांव, जहां की नदी बहती नहीं बल्कि समुंदर की तरह लहरें मारती है…!
चलिए छोड़िए इस फिल्म को। भूल जाइए कि यह कभी आई भी थी क्योंकि इसमें न तो कोई कमाल है, न धमाल और मालामाल तो यह न होगी और न ही करेगी।
अपनी रेटिंग-1.5 स्टार
(नोट-यह एक पुराना रिव्यू है जो 28 सितंबर, 2012 को इस फिल्म की रिलीज़ के समय किसी पोर्टल पर छपा था)
Release Date-28 September, 2012
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)