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Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-सोच बदलेगी…? ओह माई गॉड…!

Deepak Dua by Deepak Dua
2012/09/28
in फिल्म/वेब रिव्यू
2
ओल्ड रिव्यू-सोच बदलेगी…? ओह माई गॉड…!
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

हिन्दी के मुख्यधारा के सिनेमा की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि यह आमतौर पर अपने लिए तय कर ली गई चंद लीकों को ही पीटता रहता है। कोई विरला ही होता है जो इनसे हटने का साहस कर पाता है। लेकिन ऐसे में भी दिक्कत तब आती है जब उस साहस के साथ मसालों का घालमेल कर लिया जाता है ताकि फिल्म को टिकट-खिड़की पर बेचा जा सके। लेकिन इस फिल्म ‘ओ.एम.जी.-ओह माई गॉड’ के साथ ऐसा नही है। सोनाक्षी सिन्हा और प्रभुदेवा को आइटम के तौर पर जिस गाने में इस्तेमाल किया गया वह भी अखरता नहीं है। इस फिल्म में न तो रोमांस है, न फालतू की कॉमेडी और न ही एक्शन। फिल्म अपनी कहानी को सधे हुए अंदाज़ में कहती है और बड़ी बात यह है कि विषय के प्रति अपनी ईमानदारी नहीं छोड़ती।

एक मशहूर नाटक के इस फिल्मी रूपांतरण का नायक कांजी भाई भगवान को नहीं मानता लेकिन भगवान की मूर्तियों और भक्ति-पूजा से जुड़ी चीज़ों की दुकान चलाता है। भूकंप में गिरी उसकी दुकान का मुआवज़ा देने से बीमा कंपनी यह कह कर इंकार कर देती है कि यह तो ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानी भगवान का किया-धरा है और बीमे की शर्त के मुताबिक ऐसी किसी दुर्घटना का मुआवज़ा नहीं दिया जाएगा। हताश कांजी आखिर भगवान पर ही मुकदमा ठोक देता है और चूंकि भगवान का कोई पता-ठिकाना तो है नहीं सो वह खुद को भगवान का प्रतिनिधि कहने वाले कुछ मशहूर बाबाओं-संतों को अदालत में खींच लेता है। दिलचस्प बात यह है कि कांजी का घर खरीदने वाले युवक के रूप में खुद भगवान उसकी इस काम में मदद करते हैं।

फिल्म की कहानी तो हट कर है ही, इसकी पटकथा की तारीफ इसलिए की जानी चाहिए कि इसमें बहुत ही सहज और संतुलित तरीके से अपनी बात सामने रखी गई है। यह फिल्म कहीं भी न तो भगवान को मानने वालों को ठेस पहुंचाती है और न ही उसे न मानने वालों को मजबूर करती है कि वे अपनी सोच बदलें। यह बात करती है लोगों की उस अंधभक्ति की जो किसी भी बाबा को मसीहा मान कर पूजने लगते हैं, धर्म के नाम पर अपनी आंखें और कान ही नहीं, दिमाग के किवाड़ों को भी बंद कर के बाबाओं के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। धर्म के नाम पर खुली दुकानों और लोगों की आस्थाओं का कारोबार करने वालों पर यह तीखी टिप्पणियां करती है और इसीलिए यह प्रशंसा की हकदार है कि हमारे जैसे धार्मिक रूप से बेहद बेसब्र और असहिष्णु समाज में यह अपनी बात बुलंद आवाज़ में कहती है।

फिल्म के असली हीरो परेश रावल हैं। उनका किरदार जितना शानदार है, उसे अपने प्रभावशाली अभिनय से वह और अधिक ऊंचाई पर ले जाते हैं। अक्षय कुमार के सीन काफी कम हैं लेकिन उन्होंने भी पूरा साथ दिया है। काम गोविंद नामदेव, ओम पुरी समेत बाकी सभी कलाकारों का भी अच्छा है। खासकर मिथुन चक्रवर्ती का। फिल्म का संगीत कुछ खास नहीं है। फिल्म में कोर्ट-रूम ड्रामा भी काफी है। देखा जाए तो यह एक रूखी फिल्म है लेकिन इसे देखते हुए आप बोर नहीं होंगे, यह तय है। बल्कि यह फिल्म आपकी सोच को प्रभावित करने की क्षमता भी रखती है।

इस फिल्म को दो तरह के दर्शकों को ज़रूर देखना चाहिए। एक वे जो भगवान, अल्लाह, ऊपर वाले को मानते हैं और दूसरे वे जो इन्हें नहीं मानते।

अपनी रेटिंग-3.5 स्टार

(नोट-यह एक पुराना रिव्यू है जो इस फिल्म की रिलीज़ के समय किसी पोर्टल पर छपा था)

Release Date-28 September, 2012

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: govind namdeoMahesh Manjrekarmithun chakrabortyoh my godoh my god reviewom puriomgOMG Oh My God reviewparesh rawalpoonam jhawer
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Comments 2

  1. Pramender chauhan says:
    1 year ago

    VERY nice 🙏

    Reply
    • CineYatra says:
      1 year ago

      Thanks

      Reply

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