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Home फ़िल्म रिव्यू

रिव्यू-‘अकीरा’ ऊंट के मुंह में जीरा

Deepak Dua by Deepak Dua
2016/09/03
in फ़िल्म रिव्यू
2
रिव्यू-‘अकीरा’ ऊंट के मुंह में जीरा
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दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

एक आम आदमी जो अपने आसपास हो रहे अन्याय को नहीं सह सकता। इस अन्याय से लड़ने के लिए वह ताकतवर बनता है। खुद किसी से पंगा नहीं लेता मगर उस पर कोई उंगली उठाए तो वह उस उंगली को तोड़ कर रख देता है।

हिन्दी फिल्मों में ऐसी कहानियां बहुतेरी आई हैं। अस्सी-नब्बे का दशक तो ऐसी फिल्मों से भरा पड़ा है। फर्क यह है कि इस फिल्म में वह आम आदमी एक लड़की है जो अनजाने में एक ऐसे दुश्चक्र में फंस गई है कि उसकी जान पर बन आई है। पर हार मानना न तो उसने सीखा और न ही उसके आदर्शवादी पिता ने उसे सिखाया।

हिन्दी में ‘गजिनी’ और ‘हॉलीडे’ जैसी फिल्में दे चुके निर्देशक ए. मुरुगादोस से बड़ी उम्मीदें लगाना स्वाभाविक है। लेकिन इस बार वह इन उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए हैं तो इसका कसूर इसकी कहानी के सूखेपन और स्क्रिप्ट के कच्चेपन का है। इस किस्म की फिल्म में कहानी की तेज रफ्तार, घटनाओं का फटाफट घटना, हर दूसरे मोड़ पर चौंकाने वाले पलों की मौजूदगी और स्क्रिप्ट में तार्किकता का होना जरूरी होता है और यह फिल्म इन तमाम मोर्चों पर अधपकी-सी लगती है। डायरेक्टर ने अपनी तरफ से सीन बनाने और जमाने की काफी कोशिशें की हैं लेकिन कमजोर पटकथा उनकी कोशिशों को नाकाम करती नजर आती है।

फिल्म इंटरवल तक कहानी का पुख्ता ढांचा खड़ा करती है और बांधे भी रखती है। लेकिन उसके बाद यह एक रुटीन किस्म की फिल्म बन कर रह जाती है जहां नायक (यहां पर नायिका) का मकसद किसी दूसरे को न्याय दिलवाना या व्यवस्था को सुधारना नहीं बल्कि अपनी निजी लड़ाई को लड़ना भर रह जाता है और खलनायक का मकसद बिना आगे-पीछे की सोचे बस उसे खत्म करना।

फिल्म में कुछ अच्छी बातें भी हैं। एक गूंगे-बहरे पिता का अपनी बेटी को अन्याय के खिलाफ खड़े होने की सीख देना, उसे मार्शल-आर्ट सिखलाना, एसिड-अटैक से पीड़िता लड़कियों का हिम्मत न हारना जैसी बातें प्रेरित करती हैं मगर इन्हें सिर्फ हल्के से छुआ भर गया है। फिल्म यह भी बताती है कि पुलिस के लिए किसी भी केस को सुलझाना या दबाना नामुमकिन नहीं है।

सोनाक्षी सिन्हा अपनी हृष्ट-पुष्ट काया के बावजूद कुछ एक जगह खासा प्रभावित करती हैं। लेकिन उनका हर समय बुझे-बुझे रहना खलता भी है। अनुराग कश्यप विश्वसनीय लगते हैं। पर्दे पर उन्हें देख कर यकीन होने लगता है कि यह कलाकार असल में भी इस किरदार जैसा ही होगा। हालांकि इंटरवल के बाद उनका किरदार एकदम सपाट हो जाता है। कोंकणा सेन शर्मा को और दमदार सीन मिलने चाहिएं थे। फिल्म में गाने नहीं हैं।

फिल्म में मनोरंजक तत्वों की कमी है। इसमें से निकल कर आने वाला मैसेज भी हल्का है। फिल्म में जो है वह कम है, चाहे वह एक्शन हो, इमोशन या थ्रिल। सब कुछ थोड़ा-थोड़ा और होता तो बेहतर था। पर यह बोर भी नहीं करती है। कभी-कभार कोई फिल्म देखने वाले इससे निराश नहीं होंगे। लेकिन फिल्मों के दीवानों और हर हफ्ते मुंह उठा कर थिएटर में पहुंच जाने वाले हम जैसे शैदाइयों के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा ही है।

अपनी रेटिंग-दो स्टार

Release Date-2 September, 2016

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Akiraamit sadhAnurag Kashyapatul kulkarnikonkona sen sharmakrishna bhattmurugadossreview of akirasmita jaykarsonakshi sinha
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Comments 2

  1. Sagar says:
    9 months ago

    Well written review

    Reply
    • CineYatra says:
      7 months ago

      thanks a lot…

      Reply

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