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Home फिल्म/वेब रिव्यू

वेब-रिव्यू : छोटी-सी कहानी से सारी ‘पंचायत’ भर गई

Deepak Dua by Deepak Dua
2024/05/28
in फिल्म/वेब रिव्यू
5
वेब-रिव्यू : छोटी-सी कहानी से सारी ‘पंचायत’ भर गई
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

अमेज़न प्राइम वीडियो पर आने वाली चर्चित, सफल और लोकप्रिय वेब-सीरिज़ ‘पंचायत’ (Panchayat) के इस तीसरे सीज़न का ट्रेलर बताता है कि पिछले सीज़न में विधायक से भिड़ कर फुलेरा गांव से ट्रांस्फर करवा बैठे सचिव जी लौट आए हैं। रिंकी से उनकी नज़दीकियां और बढ़ चुकी हैं और सचिव जी ने तय किया है कि अब पढ़ाई पर फोकस करते हुए फालतू के लोकल पॉलिटिक्स से दूर रहना है। लेकिन यह सब इतना आसान कहां है? पंचायत चुनाव सिर पर हैं, प्रधान जी का विरोधी भूषण नित नई चालें चल रहा है, विधायक जी का उस पर हाथ है और सचिव जी न-न करते हुए भी इस सब में उलझते जा रहे हैं।

ट्रेलर से आगे बढ़ कर कहानी खोलना सही नहीं होगा। वैसे भी अपने पिछले दोनों रिव्यूज़ में मैं कहता आया हूं कि ‘पंचायत’ (Panchayat) में कहानी से ज़्यादा किस्से हैं। हां, दूसरे सीज़न से इतना ज़रूर हुआ है कि इन किस्सों के सिरे एक-दूसरे से जुड़ने लगे हैं और इन्हें देखते हुए झटके नहीं लगते हैं। इसीलिए इन आठों एपिसोड में बहुत ज़्यादा कसावट न होते हुए भी आपको बांधे रखने का दम है। तुलना करने बैठें तो तीसरा सीज़न दूसरे के मुकाबले थोड़ा हल्का रहा है। कहानी में नए मोड़ों की कमी से ऐसा हुआ है।

(वेब-रिव्यू : किस्सों से जम गई ‘पंचायत’)

इस बार के ‘पंचायत’ (Panchayat) की लिखाई का फोकस फुलेरा की राजनीति पर है। इलैक्शन आने वाले हैं और गांव का माहौल धीरे-धीरे बदल रहा है। बनराकस यानी भूषण को लगता है कि प्रधान जी अपनी तरफ वाले गांव के पश्चिमी हिस्से पर ज़्यादा ध्यान देते हैं। उधर पिछली बार गांव से बेइज़्ज़त कर के भगाए गए विधायक जी अलग ही खुन्नस खाए बैठे हैं। भूषण उनकी गोद में जा बैठा है जिसके चलते गांव में गुटबाजी उभर कर दिखने लगी है। इन सब के बीच में हर किसी की ज़िंदगी अपनी-अपनी सुस्त रफ्तार से चल रही है।

असल में रफ्तार की यह सुस्ती ही ‘पंचायत’ (Panchayat) की विशेषता है। जहां बाकी वेब-सीरिज़ में पटकथा को सरपट दौड़ाने का दबाव रहता है वहीं इस सीरिज़ में कहानी को धीमी आंच पर उबालते हुए पका कर गाढ़ा किया जाता है। ‘पंचायत’ की यह विशेषता जहां इसके चाहने वालों को भाती है वहीं कुछ लोगों को खटक भी सकती है कि भई, थोड़ी तो स्पीड बढ़ाओ। इस बार की ‘पंचायत’ देखते हुए एक बार फिर साफ होता है कि इसे बनाने वाले लोग आगे चल कर कई सारे सीज़न बनाने का लालच अपनी मुट्ठी में लिए बैठे हैं ताकि इसे लंबे वक्त तक खींच पाएं। लेकिन यह लालच इस सीरिज़ को हल्का और तरल बनाता है, यह भी उन्हें समझना होगा।

(वेब-रिव्यू : यह जो है ज़िंदगी की रंगीन ‘पंचायत’)

‘पंचायत’ (Panchayat) के ज़मीनी किरदार और उनमें लिए गए कलाकार ही इसकी सबसे बड़ी पूंजी हैं। हर किरदार का चित्रण एक खास टोन में किया गया है और वह उसे लगातार पकड़े भी रहता है। इस बार एक नई बात यह हुई कि बिनोद, माधव, जगमोहन, बम बहादुर जैसे उन किरदारों को भी बड़ी भूमिकाएं मिलीं जो अभी तक किनारे पर थे। वहीं विकास, प्रह्लाद चा, प्रधान जी, रिंकी और सचिव जी के किरदार पिछली बार वाले खांचे में ही बंधे हुए दिखाई दिए। इन्हें निभाने वाले तमाम कलाकारों ने हमेशा की तरह दम लगा कर काम किया। रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, जितेंद्र कुमार, फैज़ल मलिक, चंदन राय, संविका, अशोक पाठक, दुर्गेश कुमार, सुनीता राजवर, पंकज झा, तृप्ति साहू, गौरव सिंह, आसिफ खान, अमित कुमार मौर्य, विशाल यादव, बुल्लू कुमार आदि खूब जंचे। प्रह्लाद चा बने फैज़ल मलिक आंखें नम करते रहे और बिनोद बने अशोक पाठक अपनी विशिष्ट संवाद शैली से लुभाते रहे।

छोटे से गांव के छोटे लोगों की छोटी-छोटी समस्याएं, उनके छोटे-छोटे हल। उनकी छोटी-छोटी ईगो, छोटे-छोटे झगड़े, छोटी-छोटी खुशियां मिल कर ‘पंचायत’ (Panchayat) को दर्शनीय बनाते हैं। चंदन कुमार के लिखे छोटे-छोटे संवाद कई जगह लाजवाब हैं। दीपक कुमार मिश्रा का निर्देशन हर बार की तरह सधा हुआ है। हां, कहीं-कहीं मारक तत्व की कमी झलकती है।

कहीं मुस्कान बिखेरती, कहीं आंखें नम करती, कहीं गुदगुदाती तो कहीं खौफ जगाती ‘पंचायत’ (Panchayat) के इस तीसरे सीज़न को इसकी सुस्ती के बावजूद इसके चाहने वाले पसंद कर लेंगे। अगले सीज़न में थोड़ी और कसावट, गति व पैनापन आ जाए तो यह सीरिज़ उठान पा सकती है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-28 May, 2024 on Amazon Prime

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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Comments 5

  1. Kumar Sambhav says:
    12 months ago

    बहुत अच्छी पकड़ है आप की भाषा पर अरसे बाद अच्छा लगा पढ़ कर

    Reply
    • CineYatra says:
      12 months ago

      धन्यवाद, स्नेह बना रहे…

      Reply
  2. Deepak Kumar says:
    12 months ago

    आपने बिल्कुल सटीक विश्लेषण किया हैं पंचायत का और इनके सारे किरदारों का।☺️☺️😍❤️

    Reply
    • CineYatra says:
      12 months ago

      धन्यवाद

      Reply
  3. NAFEES AHMED says:
    12 months ago

    कहीं मुस्कान बिखेरती, कहीं आंखें नम करती, कहीं गुदगुदाती तो कहीं खौफ जगाती ‘पंचायत’ (Panchayat) — Bass yahi vaktavy ne saare review mei jaan daal di… Panchayat-3 Chahe sust beshaq hai lekin Ek thodi zameeni haqiqat ko darshati zarur hai….

    Dekhni chahiye sabhi ko

    Reply

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