-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
महेंद्र अग्रवाल यानी माही-क्रिकेटर बनने का सपना सच नहीं कर पाया और पिता के दबाव में दुकान पर जा बैठा। महिमा अग्रवाल यानी माही-क्रिकेट की शौकीन मगर पिता के दबाव में डॉक्टर बन बैठी। माही और माही की शादी हुई तो मिस्टर माही ने मिसेज़ माही को क्रिकेटर बनने का सपना सच करने के लिए प्रेरित किया और खुद उसका कोच बन बैठा। लेकिन सपनों की पिच पर जम कर खेलना इतना भी आसान कहां होता है।
हिन्दी फिल्मों में नए विचारों की कमी की शिकायत करने वाले लोग इस फिल्म को देख कर खुश हो सकते हैं। एक नया विचार, एक नई कहानी उनके सामने है जहां मन मार कर अपना-अपना काम कर रहे दो लोग तय करते हैं कि हर बार पेरेंट्स के सपने ही पूरे क्यों किए जाएं, कुछ खुद के लिए भी किया जाए। फिल्म उन पेरेंट्स को साफ संदेश देती है जो अपने सपने अपने बच्चों पर थोपते हैं, बिना यह जाने कि बच्चे उन सपनों के बोझ तले दब तो नहीं रहे। तो पहला सलाम इसे लिखने वाले निखिल मेहरोत्रा और शरण शर्मा को। वैसे बता दें कि निखिल इसी मिज़ाज की ‘दंगल’, ‘छिछोरे’, जैसी फिल्मों के अलावा शरण की ही बतौर निर्देशक पिछली व पहली फिल्म ‘गुंजन सक्सेना-द कारगिल गर्ल’ के लेखक भी रह चुके हैं जिसमें खुद शरण भी लेखक थे।
(रिव्यू-‘दंगल’ खुद के खुद से संघर्ष की कहानी)
(रिव्यू-जूझना सिखाते हैं ये ‘छिछोरे’)
(रिव्यू-जीना और जीतना सिखाती है ‘गुंजन सक्सेना’)
लेखकों की इस जोड़ी ने लिखाई तो अच्छी कर दी लेकिन उस लिखाई में कुछ कमियां भी रह गईं। साथ ही कुछ एक जगह ऐसा भी महसूस हुआ कि सीन इससे बेहतर भी हो सकते थे। बतौर निर्देशक शरण शर्मा ने हालांकि चीज़ों को साधने की भरसक कोशिश की है मगर कहानी की धीमी रफ्तार, क्रिकेट के रोमांच की कमी, नायक-नायिका के आपसी प्यार की खुशबू का हल्का रह जाना फिल्म की कसावट में कमी लाता रहा। फिल्म का फर्स्ट हॉफ तो कहानी को स्थापित करने में ही निकल गया जबकि यह काम कुछ मिनटों में ही हो जाना चाहिए था। सैकिंड हॉफ में पति-पत्नी के रिश्ते में ईगो वाला एंगल लाने से कहानी अटकी, भटकी और नाहक ही नायक को विलेन बना गई जबकि इस ट्रैक को और अधिक मैच्योरिटी से संभाला जाना चाहिए था। कुछ एक संवाद बहुत अच्छे हैं तो कई जगह चलताऊ भी हैं।
राजकुमार राव हमेशा की तरह अपने अभिनय से असर छोड़ते हैं। बेचारगी, लाचारगी, बेबसी जैसे भाव प्रदर्शित करने में तो वह माहिर हैं। जाह्नवी कपूर ने भी अपना भरपूर दम दिखाया। एक मध्यमवर्गीय परिवार की बहू-बेटी के तौर पर वह जंचती हैं। कुमुद मिश्रा, ज़रीना वहाब, यामिनी दास आदि ने ठीक से सप्पोर्ट किया। गीत-संगीत अच्छा है। गाने कुछ ज़्यादा हैं, लय बिगाड़ते हैं।
अपने माता-पिता के सपनों का बोझ किनारे रख कर अपने सपनों के लिए रास्ता बनाते मिस्टर एंड मिसेज़ माही थोड़ा और खुल कर खेलते तो यह फिल्म बाउंड्री भी पार कर सकती थी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-31 May, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
अब तो देखनी पड़ेगी 😍😍
Not bad….Film theek thaak lagi… Paisa vasool hai.