-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
2008 में एक फ्रैंच फिल्म आई थी जिसमें कत्ल के आरोप में पकड़ी गई अपनी बेगुनाह पत्नी को उसका पति कई तिकड़म कर के जेल से बाहर निकलवाता है। इस काम में उसका साथ एक पूर्व अपराधी देता है जिसे जेल तोड़ने का लंबा अनुभव है और जिसने जेल से भागने की तरकीबों पर एक किताब भी लिखी है। जेल से भाग कर ये लोग किसी ऐसे देश को चले जाते हैं जहां इनके देश की पुलिस नहीं पहुंच सकती।
-कहिए सर, कैसी लगी कहानी? बनाएं इसका रीमेक?
-हां, हां क्यों नहीं, लेकिन कहानी में बदलाव भी तो करने होंगे?
-कर लेंगे सर, पत्नी की जगह पति को जेल में भेज देंगे और पत्नी उसे जेल से भगाने का काम करेगी। दोनों को भारतीय, ओह सॉरी इंडियन दिखाएंगे और दुनिया को बताएंगे कि जैसे कभी सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस पा लिए थे वैसे ही यह पत्नी भी अपने पति के लिए जूझ रही है। मॉर्डन दिखाने के लिए उसका नाम सावित्री की बजाय ‘सावी’ रख देंगे।
-वाह, लेकिन जेल कौन-सी दिखाओगे? तिहाड़ या यरवडा दिखाई तो सैंसर बोर्ड अड़ंगा लगाएगा।
-इंडिया की जेल तोड़ना तो मुश्किल है, ऐसा करते हैं यू.के. की कोई जेल दिखा देंगे क्योंकि वहां तो सुना है कि बड़ी आसानी से पुलिस वालों को मूरख बनाया जा सकता है।
-वैरी गुड, और एक्टर कौन-से लेंगे?
-पति के रोल में तो कोई भी सस्ता-सा बंदा ले लेंगे जो ठीक-ठाक एक्टिंग कर लेता हो। वैसे भी उसका कोई खास रोल तो होगा नहीं। और हीरोइन के लिए टी. सीरिज़ की दिव्या खोसला कुमार जी को ले लेंगे। उनका एक्टिंग का शौक भी पूरा हो जाएगा और भूषण जी फिल्म में पैसे भी लगा देंगे। टी. सीरिज़ का साथ रहेगा तो ढेर सारे गाने भी मिल ही जाएंगे।
वाह, तो चलो रीमेक बनाते हैं।
डायरेक्टर अभिनय देव और प्रोड्यूसर मुकेश भट्ट की यह बातचीत भले ही काल्पनिक हो लेकिन इसमें कुछ झूठ होगा, इस फिल्म ‘सावी’ (Savi) को देख कर ऐसा लगता नहीं है। ऊपर से थ्रिलर और अंदर से इमोशनल होने का दिखावा कर रही इस फिल्म को हिन्दी में लिखने वाले लोग न तो कायदे का थ्रिल परोस पाए हैं और न ही सलीके से इमोशन्स जगा पाए हैं। थ्रिलर फिल्म की पहली शर्त होती है कि आप तर्कों से खिलवाड़ नहीं कर सकते। लेकिन यहां तो यू.के. में रहने वाली एक साधारण भारतीय हाऊस वाइफ ऐसा फूलप्रूफ प्लान बनाती है और सिर्फ तीन दिन में उसे इस बारीकी से अंजाम देती है कि कोई सर जी चाहें तो उससे जेल से भागने की क्लास ले सकते हैं। बंदी की हिम्मत देखेंगे तो आप उसके फैन हो जाएंगे। न इफ न बट, सीधे जेल तोड़ने का वट। चलिए, इसका तो पति जेल में था, तरस तो उस अधेड़ लेखक की अक्ल पर आएगा जिसने अपने घर में घुसने के तमाम रास्ते बंद कर रखे हैं लेकिन यह बंदी उसे बिना कुछ कहे ऐसा इम्प्रैस कर के आती है कि वह इसके पीछे दुम हिलाने लगता है। बजाइए ताली…!
चलिए, थोड़ी देर के लिए दिमाग किनारे पर रख देते हैं। (वैसे भी हिन्दी फिल्म वालों ने इतनी अफीम तो हम लोगों को चटा ही दी है कि हम किसी फिल्म को देखते समय दिमाग को किनारे पर क्या, घर पर भी छोड़ कर आ सकते हैं।) अरे, अचानक से यह फिल्म ‘सावी’ (Savi) हमें अच्छी लगने लगी है। भले ही इसमें इमोशन्स अभी भी न हों लेकिन किस्मत इन लोगों का साथ देने लगी है, इनकी कोशिशें कामयाब होने लगी हैं और पर्दे पर कानून तोड़ रहे इन लोगों से हमें हमदर्दी भी होने लगी है। अगर इतना भर काफी है तो फिर इस फिल्म की कहानी पर लगे दाग भी अच्छे हैं।
दिव्या खोसला कुमार कामचलाऊ किस्म की अदाकारा हैं। उनके भीतर नायिका वाला चार्म ही नहीं है। ऊपर से उनका किरदार हमें आकर्षित ही नहीं कर पाता है। हर्षवर्धन राणे को जगह भरने के लिए लिया गया था, वह उन्होंने भर दी। अनिल कपूर जैसे कद का अभिनेता ऐसी फिल्म तभी करता है जब उसे या तो बढ़िया रोल मिले या बढ़िया पैसा। और, बढ़िया रोल तो उनका था नहीं इस फिल्म में, तो…! बाकी के कलाकार ठीक रहे। भट्ट कैंप की फिल्म चाहे टी. सीरिज़ से आए या शिकंजी सीरिज़ से, उनकी फिल्मों के गीत-संगीत का एक अलग टोन रहता है, यहां भी है। भले ही वह कहानी में फिट बैठ रहा हो या नहीं। और हां, इस फिल्म ‘सावी’ (Savi) में ढेरों अंग्रेज़ी संवाद हैं, जिनके सब-टाइटल भी अंग्रेज़ी में ही हैं। वाह…!
‘सावी’ (Savi) फिल्म का अंत इस फिल्म की रही-सही हंसी भी उड़वा देता है। बे-सिर-पैर की पटकथाओं पर फिल्म बनाने की ज़िद से अक्सर ऐसा ही होता है। ऐसे फिल्मकारों को रब दा वास्ता, कुछ हल्का बना लो मित्रों, कम से कम अपना तो बनाओ। क्यों किसी और की फिल्म का घटिया रीमेक बना कर उसका भी नाम खराब करते हो…?
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-31 May, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
मजेदार समीक्षा
धन्यवाद
Kai baar filme … filme na hokar mazaak zyada lagti hai…..Abb wo zamane gye jab… Wo Wali filme chala karti thi jisme… Dharmikta ho ya Bahut Zyada … Raja Harishchhandra jaisi wali filme……
Time aur Paisa…dono waste