-दीपक दुआ…
करीब चार साल पहले यानी 2012 की बात है। ‘आई एम कलाम’ बना चुके मेरे मित्र निर्देशक नीला माधव पांडा की दूसरी फिल्म ‘जलपरी’ का प्रैस शो दिल्ली के फिल्म्स डिवीजन ऑडिटोरियम में था। इस फिल्म की बाल-अदाकारा का काम मुझे इतना ज्यादा प्रभावी लगा कि इंटरवल में मैं खोजता हुआ 13 साल की लहर खान तक जा पहुंचा। फिल्म की रिलीज के दिन भी मेरी उनसे मुलाकात हुई। अब लहर ‘शब्द’ और ‘तीन पत्ती’ बना चुकीं डायरेक्टर लीना यादव की फिल्म ‘पार्च्ड’ में आ रही हैं। दुनिया भर के करीब दो दर्जन फिल्म महोत्सवों में जाकर तारीफें और पुरस्कार बटोर चुकी है यह फिल्म। लहर भी अब दिल्ली छोड़ कर मुंबई जा बसी हैं। पिछले दिनों लहर से फोन पर काफी बातें हुईं-
-‘पार्च्ड’ के बारे में बताएं?
-यह फिल्म गुजरात के कच्छ इलाके की कहानी है। वहां की चार औरतों की कहानी है। हालांकि इन चारों की जिंदगी अलग-अलग है, इनके दुख अलग-अलग हैं लेकिन कहीं न कहीं ये एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और फिल्म दिखाती है कि कैसे ये अपनी तकलीफों को झेलती हैं और उनसे जूझती हैं।
-इन चारों औरतों के किरदार क्या-क्या हैं और आप इसमें क्या कर रही हैं?
-इन चारों में से एक सुरवीन चावला हैं जो गांव में लगने वाले मेले में नाचती है। वह इस दुश्चक्र से निकलना चाहती है मगर फंसी हुई है। राधिका आप्टे का किरदार एक ऐसी औरत का है जो मां नहीं बन पा रही है और उसका पति शराब पीकर उसे रोजाना पीटता है। वहीं तनिष्ठा मुखर्जी एक जवान विधवा है जिसका 17-18 साल का बेटा उसके हाथ से निकला जा रहा है और वह उसकी शादी 15-16 साल की एक लड़की से कर देती है। मेरा किरदार इसी लड़की का है लेकिन यह शादी नहीं करना चाहती थी, यह आगे पढ़ना चाहती है और एक दिन ये चारों औरतें अपनी इस झुलसी हुई जिंदगी को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ जाती हैं।
-इस रोल के लिए आपने कैसे तैयारी की?
-पहले तो हमारी कुछ वर्कशॉप हुईं और फिर जहां हम लोग शूटिंग कर रहे थे वहां के गांव वालों के साथ हमने काफी वक्त बिताया जिससे हम उनके रहन-सहन को करीब से देख कर समझ सकें। फिर हमारी डायरेक्टर लीना मैम और उनकी टीम ने काफी सारा होमवर्क किया हुआ था जिससे हमें बहुत मदद मिली।
–‘जलपरी’ के बाद आपने कोई फिल्म क्यों नहीं की?
-मुझे कुछ फिल्मों के ऑफर्स तो आए थे लेकिन मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहती थी। जब मैंने ‘जलपरी’ की थी तब मैं दिल्ली में सातवीं क्लास में पढ़ रही थी और अब हम लोग मुंबई आ गए हैं और मैं बारहवीं की पढ़ाई कर रही हूं। मुझे पहले अपनी पढ़ाई पूरी करनी है इसलिए मैंने कुछ एक विज्ञापनों में तो काम किया लेकिन फिल्म कोई नहीं ली।
-फिर ‘पार्च्ड’ में कैसे काम मिला?
-असल में फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा जी ने मुझे इस रोल के लिए चुना। पहले उन्होंने आमिर खान वाली ‘दंगल’ के लिए भी मेरा आॅडिशन लिया था और लेकिन जिस रोल में मुझे लिया जाना था उससे मेरी उम्र दो साल बड़ी है। जब उन्होंने ‘पार्च्ड’ के लिए कहा और मेरे मम्मी-पापा को इसकी कहानी सुनाई तो हमें लगा कि यह फिल्म की जा सकती है क्योंकि यह एक ऐसी फिल्म है जिसमें मुझे पूरी दुनिया में नोटिस किया जा सकेगा।
-और ऐसा हुआ भी?
-जी हां। ‘पार्च्ड’ दुनिया के 24 फिल्म फेस्टिवल्स में जाकर आ चुकी है। टोरंटो फिल्म फेस्टिवल, मेलबोर्न, फ्रांस, लॉस एंजिलिस और लंदन में हुए इंडियन फिल्म फेस्टिवल जैसी तमाम जगहों पर इसे काफी पसंद किया गया। लॉस एंजिलिस और फ्रांस में हम चारों को बैस्ट एक्ट्रैस अवार्ड भी मिला क्योंकि उन लोगों का कहना था कि ये चारों ही किरदार बराबर हैं और हम किसी एक को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
-सुरवीन, राधिका और तनिष्ठा, तीनों ही काफी काबिल अभिनेत्रियां हैं। उनके साथ काम करते हुए आपने क्या सीखा?
-मुझे इन तीनों से बहुत कुछ सीखने को मिला। सबसे बड़ी बात तो इनमें यह है कि इन तीनों के ही पांव जमीन पर हैं। इतना कुछ इन्होंने हासिल किया है लेकिन इनमें किसी भी तरह की कोई अकड़ या घमंड नहीं है और यह मेरे लिए काफी बड़ी सीख है।
-क्या आपको लगता है कि ‘पार्च्ड’ जैसी फिल्में कोई जागरूकता ला सकती हैं?
-बिल्कुल। यहां शहरों में हम लोगों को भले ही लगता हो कि आज की औरतें आजाद हैं लेकिन अभी भी पूरी दुनिया में बहुत सारी ऐसी जगह हैं जहां पर औरतों की जिंदगी काफी बदतर है। हमारे देश में भी कई जगह ऐसे हालात हैं और मुझे लगता है कि जिस तरह के कड़वे सच इस फिल्म में हैं, उन्हें देखने के बाद जरूर लोग जागरूक होंगे और समझेंगे कि सही क्या है और गलत क्या है।
-आपको नहीं लगता कि इस फिल्म के बोल्ड दृश्यों के कारण लोग परिवार सहित इसे नहीं देख पाएंगे?
-यह सही है लेकिन वे सभी सीन बहुत महत्वपूर्ण हैं और उन सीन में जो गहराई है, उनके पीछे का जो मकसद है वह दर्शकों को आकर्षित करना नहीं था बल्कि कहानी में उनकी जरूरत थी।
-भविष्य के लिए आपने क्या सोचा हुआ है, क्या करना है?
-यह तो तय है कि मुझे एक्ट्रैस ही बनना है लेकिन साथ ही साथ मैं अपनी पढ़ाई भी पूरी करना चाहती हूं। स्कूल के बाद मैं साइक्लॉजी में ग्रेजुएशन करना चाहती हूं और इसीलिए अभी मैं फिल्मों की तरफ ध्यान नहीं दे रही हूं।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)