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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू: प्रेरणा देती-‘घूमर’-देती प्रेरणा

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/08/18
in फिल्म/वेब रिव्यू
2
रिव्यू: प्रेरणा देती-‘घूमर’-देती प्रेरणा
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

इस रिव्यू की हैडिंग पढ़ कर अगर आप सोच रहे हैं कि यह क्या है? तो बता दूं कि लैफ्ट से पढ़ें या राइट से, पढ़ना तो रिव्यू है न। दरअसल यही बात इस फिल्म के ज़रिए समझाने की कोशिश की गई है।

अनीना कमाल की क्रिकेटर है। राइट-हैंड बैटर। बचपन से ही देश के लिए खेलना चाहती थी। टीम में उसका सलैक्शन हो भी जाता है। लेकिन एक हादसे में वह अपना दायां हाथ गंवा बैठती है। अब क्रिकेट तो दूर उसके लिए अपने खुद के काम करना तक मुहाल है। लेकिन एक रिटायर्ड शराबी क्रिकेटर उसे समझाता है कि राइट हो या लैफ्ट, बैट हो या बाॅल, खेलना तो क्रिकेट है न। ठीक उसके नाम के स्पेलिंग्स ANINA की तरह-जहां से पढ़ो, एक जैसे ही हैं। इसके बाद अनीना संभलती है, आगे बढ़ती है और जीत के पड़ाव तक भी पहुंचती है।

अपने मूल में यह फिल्म कोई नई कहानी नहीं परोसती। एक कमज़ोर, अंडरडाॅग किस्म की खिलाड़ी या टीम को एक हाशिये पर बैठे कोच द्वारा ट्रेंड करके जीत के मुकाम तक पहुंचाने की कहानियां दुनिया भर के सिनेमा का हिस्सा बन चुकी हैं। वहीं, कुछ खो देने के बाद हिम्मत करके फिर से पा लेने की कहानियां भी हमने खूब देखी हैं। खट से याद करें तो ‘चक दे इंडिया’, ‘सूरमा’, ‘जर्सी’, ‘झुंड’, ‘दंगल’, ‘साला खड़ूस’ जैसी कई फिल्में याद आ जाएंगी। लेकिन इस फिल्म के पात्र अलग हैं, उन पात्रों के हालात अलग हैं। अनीना क्रिकेट के खेल के लिए पागल है और उसके इस पागलपन को उसके पूरे परिवार का साथ हासिल है, खासतौर से उसकी दादी का। कभी तो लगता है कि जैसे वह अपनी दादी के सपने को ही जी रही है। यह भी लगता है कि ऐसी दादियां हों तो जीवन में कितना कुछ आसान हो जाए। इस किरदार में शबाना आज़मी कमाल का अभिनय भी करती हैं।

अनीना को गम के अंधेरे से बाहर निकाल कर उसमें फिर से आत्मविश्वास भरने वाला पूर्व क्रिकेटर पद्म सिंह सोढ़ी (जिसे फिल्म में सोधी कहा गया है) का तरीका उन पुराने क्रूर प्रशिक्षकों जैसा है जो अपने शिष्यों को हद दर्जे तक निचोड़ लेते हैं। एक अपंग लड़की जो कभी राइट-हैंड बैटर थी, सोढ़ी की छाया में उसके लैफ्ट हैंड बाॅलर बनाने का सिलसिला प्रेरणादायक है। अभिषेक बच्चन इस किरदार में कमाल करते हैं। दरअसल वह इस किस्म के किरदारों में ही जंचते हैं। नाहक ही खुद को ‘हीरो’ बनाने में उन्होंने कई फिल्में बर्बाद कीं।

फिल्म के अंत का काफी बड़ा हिस्सा क्रिकेट मैच के तौर पर दिखाया गया है जिसमें अनीना को आगे बढ़ते देखना रोमांचित करता है, जिस्म में सिहरन पैदा करता है और आंखों में नमी। अनीना की यह जीत दर्शकों को अपनी जीत मालूम होने लगती है। आर. बाल्की को सिनेमा कहना आता है। अपनी कहानियों से दर्शकों को छूने का हुनर उन्हें मालूम है। इस फिल्म में वह अपने इस हुनर का बखूबी इस्तेमाल करते दिखे हैं। यही कारण है कि बहुत कुछ ‘फिल्मी’ और ‘अविश्वसनीय’ होने के बावजूद यह फिल्म ‘अपनी-सी’ लगती है। यही इसकी सफलता है।

सैयामी खेर उम्दा अभिनय की बानगी पेश करती हैं। वह क्रिकेटर रह चुकी हैं इसलिए उन्हें अपने किरदार की मनोदशा का अंदाज़ा रहा होगा। बाकी का काम उन्होंने अपने भावों से संभाला है। फिल्म वालों को उन्हें अब और अधिक गहरे किरदार देने चाहिएं। अंगद बेदी, इवांका दास व बाकी के कलाकार अच्छा सहयोग दे गए। हालांकि बहुत सारे किरदारों को और विस्तार मिलता तो अच्छा होता। कुछ एक जगह सीन भारी भी हुए और कहीं रफ्तार धीमी भी। अमिताभ बच्चन का आना सुखद लगा। ‘घूमर…’ वाले गाने को छोड़ बाकी गीत-संगीत साधारण रहा। इस किस्म की फिल्में जो मैजिक पैदा करती हैं, उसे इन्हें देख कर ही महसूस किया जा सकता है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-18 August, 2023 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: abhishek bachchanamitabh bachchanAngad Bedibalkighoomerghoomer reviewivanka dasr. balkisaiyami khershabana azmi
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Comments 2

  1. NAFEESH AHMED says:
    2 years ago

    रिव्यु के शीर्षक को पहले तो स्तब्ध हो गया कि ये कैसा सब्जेक्ट है…. लेकिन जब रिव्यु पढ़ा तो वाकई लगा कि दुआ जी के हर एक रिव्यु अनूठा और लाजवाब होता है और ये ऐसे फ़िल्म क्रिटिक हैँ कि शायद ही इस लेवल का रिव्यु कोई लिख पाए…. सलाम…

    रही बात फ़िल्म कि तो वाकई ये एक ऐसी प्रेरणा देती है जिसकि कि इस देश में ख़ास ज़रूरत है… हुनर तो हुनर ही होता है बस उसको परखने और तरासने की ज़रूरत होती है…

    जूनियर बच्चन के बारे में जो लिखा है वह अगर उस पर अमल करेंगे तो बॉलीवुड में एक बड़े मक़ाम पर पहुंचने में वक़्त नहीं लगेगा….

    रही बात शबाना आज़मी जी कि तो चाहे “छोटा चेतन ” हो यव ये “घूमर” उनकी अदाकारी का कोई शानी नहीं…

    रही बात संगीत कि तो अगर फ़िल्म ऐसी है तो वह सेकेंडरी बन जाता है…. और यही इस फ़िल्म कि क़ामयाबी का राज़ है…

    इस फ़िल्म के लिए मेरी तरफ से ***** है… पाँचतारे

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      धन्यवाद

      Reply

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