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Home फिल्म/वेब रिव्यू

डॉक्यू-रिव्यू : सच की परतें उधेड़ती ‘द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/08/12
in फिल्म/वेब रिव्यू
6
डॉक्यू-रिव्यू : सच की परतें उधेड़ती ‘द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

11 मार्च, 2022 को रिलीज़ हुई अपनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में लेखक-निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने 1990 में कश्मीर घाटी से भगा दिए गए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और विस्थापन की मर्मस्पर्शी कहानी दिखाई थी। उस समय विवेक का कहना था कि इस फिल्म के लिए उन्होंने चार साल तक रिसर्च की, किताबें पढ़ीं, इतिहासकारों से, पत्रकारों से मिले, उन कश्मीरी पंडितों से और उनके परिवार वालों से मिले, उन पर बीते खौफनाक हादसे जाने और तब जाकर उन घटनाओं का फिल्मीकरण किया। अब ठीक डेढ़ बरस बाद ज़ी-5 पर आई यह डॉक्यू-सीरिज़ हमें विवेक अग्निहोत्री, पल्लवी जोशी और उनकी टीम की उस चार साल की मेहनत से रूबरू करवाने आई है।

‘द कश्मीर फाइल्स’ के अपने रिव्यू में मैंने लिखा था कि कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और विस्थापन का दौर बहुत ज़्यादा पुराना नहीं है और उससे जुड़े लगभग तमाम तथ्य दस्तावेजों में मौजूद हैं। लेकिन महज 32 साल पुराने ये तथ्य अब तक सामने क्यों नहीं आए? आए तो उन पर बात क्यों नहीं हुई? हुई तो कोई तूफान क्यों नहीं उठा? इस फिल्म ने किसी भी पक्ष को नहीं बख्शा था। राजनेताओं, पुलिस, मीडिया, हर किसी को कटघरे में खड़ा किया था। कश्मीर को ‘जन्नत’ से ‘समस्या’ में बदलने वालों से सवाल पूछ रही थी यह फिल्म। चुभ रही थी यह फिल्म, उस इंजेक्शन की तरह जो किसी की नस में धीरे-धीरे चुभोया जाता है ताकि उसे भरपूर दर्द हो। असल में यह फिल्म मरहम नहीं लगा रही थी, यह उसी दर्द को जगाने आई थी। (रिव्यू-इतिहास के पन्नों से धूल झाड़ती ‘द कश्मीर फाइल्स’)

अब इस सीरिज़ को देखें तो वह दर्द फिर से होता है। दिल में हूक-सी उठती है कि हमारे देश के एक हिस्से में इतना कुछ हो रहा था और न तो हमें मीडिया कुछ बता रहा था, न सरकारें कुछ कर रही थी, न नेताओं के बयान आ रहे थे, न समाज में कोई हलचल हो रही थी। ठीक है कि आज की तरह कोई सोशल मीडिया उस समय नहीं था जहां बात-बात पर और बिना बता पर भी उबाल आ जाता है। लेकिन अपने देश के एक हिस्से से एक साथ लाखों लोगों को उनके घरों से भागने पर मजबूर करना, अपने ही देश के विभिन्न हिस्सों में ‘शरणार्थी’ की तरह रहने को कहना, हज़ारों लोगों को कत्ल करना, महिलाओं पर अत्याचार करना जैसी घटनाएं तब और उसके बाद भी कभी हम लोगों में उबाल लाने का कारण क्यों न बन सकीं? यह सीरिज़ वही उबाल लाने आई है।

विवेक, पल्लवी और उनकी टीम ने इस बार बड़े ही कायदे से एक-एक परत उधेड़ते हुए हमें कश्मीर के इतिहास और वहां पनपे आतंकवाद के कारणों की तह में ले जाने का काम किया है। ऋषि कश्यप की भूमि, विद्या की देवी मां शारदा के निवास कश्मीर का इतिहास दस हज़ार साल पुराना है, यह अब सिद्ध हो चुका है। लेकिन कैसे धीरे-धीरे हमलावरों ने, लुटेरों ने और उसके बाद धर्म-परिवर्तन करने वालों ने आतंक के बल इस धरती को लूटा, यहां वालों को मारा, उन्हें धर्म बदलने को मजबूर किया, कैसे 1990 से पहले छह बार उन्हें यहां से भगाया और कैसे कश्मीरी मूल के पंडित अपने ही घर में एक दिन अल्पसंख्यक बन गए, यह सीरिज़ इन तथ्यों पर प्रकाश डालने आई है।

1947 में विभाजन के समय कुछ नेताओं ने कैसे कश्मीर को एक ‘अनसुलझी समस्या’ में तब्दील कर दिया, कैसे पाकिस्तान की शह पर वहां के लोगों में असंतुष्टि की भावना को बल दिया गया, कैसे कुछ लोगों को आतंक की राह पर धकेला गया, उन्हें ‘आज़ादी’ के सब्ज बाग दिखाए गए, 1987 के चुनावों के बाद कैसे वहां आतंकियों का बोलबाला होने लगा, कैसे वहां के प्रमुख हिन्दुओं को चुन-चुन कर मारा गया, आम लोगों को वहां से चले जाने की सलाहें और धमकियां दी गईं, कैसे 19 जनवरी, 1990 की उस काली रात से ठीक एक दिन पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला इस्तीफा देकर लंदन चले गए, कैसे मीडिया को वहां तक पहुंचने ही नहीं दिया गया, कैसे ये लोग बच कर वहां से निकले, कैसे इन्होंने बरसों तक शरणार्थी कैंपों में नारकीय जीवन गुज़ारा, कैसे इन्होंने कभी भी हिंसा का सहारा न लेकर खुद को और अपने बच्चों को शिक्षित करने व फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने में सक्षम बनाया जैसी ढेरों बातों के साथ-साथ यह सीरिज़ उन कश्मीरी पंडितों के बयानों को भी कैमरे पर दिखाती है जिन्होंने वहां जुल्म-सितम झेले। अगर उस फिल्म को देखते समय आपको वे दृश्य दर्दनाक और खौफनाक लगे थे तो इस बार उनकी आपबीतियां सुनते समय आप एक बार फिर उस दर्द, उस खौफ को महसूस कर पाएंगे। सच तो यह है कि यह सीरिज़ उस दर्द को फिर से जगाने आई है।

हिम्मत हो तो इस सीरिज़ को देखिए क्योंकि यह उस कड़वे सच की परतों को उधेड़ कर सामने रखती है जिससे मुंह मोड़ने का गुनाह हमारे सिर है। देखिए, ताकि फिर किसी जुल्म के खिलाफ हम-आप चुप न रह सकें, सलैक्टिव न हो सकें। मुमकिन है कि यह सीरिज़ हमारे सोए ज़मीर को जगाने आई है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-11 August, 2023 on ZEE5

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

(दीपक दुआ से फेसबुक पर जुड़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें) https://www.facebook.com/DeepakDuaCineYatra/

Tags: kashmirkashmiri panditpallavi joshithe kashmir filesthe kashmir files unreportedthe kashmir files unreported reviewvivek agnihotrivivek ranjan agnihotriZEE5
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Comments 6

  1. NAFEESH AHMED says:
    2 years ago

    बहुत ही लम्बा रिव्यु…किसी धर्म विशेष के अगेंस्ट बनी फ़िल्म पर अपने कमेंट न देना ही अच्छा है… वरना… कब “पड़ोसी ” बना दिया जाय मालूम नहीं…

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      यह ‘फिल्म’ नहीं है… यह ‘बनाई’ नहीं गई है… यह ‘धर्म विशेष के अगेंस्ट’ भी नहीं है… यह डॉक्यूमेंट्री है जिसमें तथ्यों, किताबों और भुक्तभोगियों के इंटरव्यू द्वारा कश्मीर में पनपे आतंकवाद के कारणों और हालातों की पड़ताल की गई है…

      Reply
  2. Sunita Bhat says:
    2 years ago

    इस सीरीज का एक एक शब्द उस मूक समाज, तत्कालीन राज्य और केंद्र की सरकार, व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहा है। जो हमारे exodus का बस मूक दर्शक बना रहा और हमें अपने हाल पर छोड़ दिया । वही सब दूसरो के लिए ज्ञान बांटते फिर रहे हैं।
    वह आज भी हमारी जमीन व जायदाद पर कब्ज़ा किए है।
    शर्म बस इनको आती नहीं।

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      सहमत

      Reply
  3. Monika says:
    2 years ago

    Bilkul sahee baat krte h film.y series uss sahee baat ko prove krte h. Hum sirf Kashmir ko filmo ke jariye ek jannat ki tarah dekhte the. Us jannat me ghul rhe zahar ko kabhi dekha h nahi. Kashmiri immigrant words bahut bar college form par dekha par kabhi socha akhir kyon unhe apne jannat jaisa Ghar kho kr yaha aana pada. Bahut badiya review.

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      Thanks

      Reply

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