-अपेक्षा राय… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में खूबसूरती से गढ़ी गई यह शॉर्ट-फिल्म ’घर की मुर्गी’ हमारे आसपास की सबसे कम चर्चित कहानियों की बात करती है। कहानियां-जिनमें एक आम घरेलू औरत के कामों का कोई मोल नहीं आंका जाता।
हालांकि यह फिल्म कोई ऐसी कहानी नहीं कहती, जिससे हम और आप परिचित न हों। यह कोई बड़ा रहस्य भी नहीं खोलती। न यह कोई सस्पेंस थ्रिलर है और न ही कॉमेडी जो आपको हंसा सके। लेकिन निश्चित रूप से यह आपको यह अहसास दिला पाती है कि किसी भी घर की सामान्य महिलाएं कितनी मेहनत करती हैं।
किसी भी आम घर की तरह ही सीमा के परिवार का जीवन भी उसी के इर्द-गिर्द घूमता है। घर में सबसे पहले उठना, सारे सदस्यों की तमाम मांगें पूरी करते हुए खुद पर ज़रा भी ध्यान न दे पाना और सबसे यह सुनने को मिलना कि ये सिर्फ घर का काम ही तो करती हैं, इसमें क्या बड़ी बात है। घर के सारे सदस्यों के कामों को फटाफट निबटाने के सूक्ष्म दृश्यों को एक कोलाज की तरह से पेश करके लेखक-निर्देशक हमें यह बता पाने में सफल होते हैं कि एक सामान्य गृहिणी का जीवन कितना कठिन होता है। उसका मज़ाक उड़ाया जाता है। वह जो करना चाहती है, नहीं कर पाती। यहां तक कि वह अपनी बात तक नहीं रख पाती जबकि वह हर किसी की बात सुनने की कोशिश करती है। आखिर एक दिन वह सब छोड़ कर उड़ जाना चाहती है।
कहानी के हिस्से एक-दूसरे से बहुत अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, फिल्म का ओपनिंग और क्लोज़िंग शॉट समान हैं-सीटी बजाता हुआ एक प्रेशर कूकर जो असल में सीमा के ऊपर पड़ने वाले प्रेशर का प्रतीक है। निर्देशक ने प्रतीकात्मक रूप से सीमा के सिर के ऊपर आकाश में उड़ने वाले पक्षियों के दृश्य का उपयोग इस बात पर ज़ोर देने के लिए किया है कि अब वह उड़ना चाहती है। और जब वह अपने परिवार को अपनी योजना के बारे में बताती है तो उसके बाद के दृश्यों में निर्देशक ने जान-बूझ कर प्रेशर कुकर की सीटी का इस्तेमाल नहीं किया है क्योंकि वे स्पष्ट रूप से उसकी कुंठाओं और तनावों को दर्शाती हैं।
एक निर्देशक के तौर पर अश्विनी अय्यर तिवारी और नितेश तिवारी ने न केवल जी-जान से बल्कि पूरे दिल-दिमाग से यह खूबसूरत फिल्म बनाई है। फिल्म में कई जगह छोटे-छोटे हास्य तत्व हैं जो आपको मुस्कुराने पर मजबूर करते हैं। शॉर्ट-फिल्मों में पार्श्व-ध्वनियों पर अक्सर कम ध्यान दिया जाता है पर इस फिल्म में इनका बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है। पूरे माहौल को स्क्रिप्ट के मुताबिक सटीक गढ़ा गया है और बैकग्राउंड में आती आवाजें फिल्म के माहौल को पूर्णता की तरफ ले जाती हैं। सामान्य साइकिल की घंटी से लेकर सीमा की चूड़ियों की खनक तक, सब की मौजूदगी का अहसास होता है। जब सीमा भावनात्मक उथल-पुथल में होती है तो इन अलग-अलग ध्वनियों के साथ पार्श्व में बजता संगीत भी एक अलग प्रभाव छोड़ता है।
साक्षी तंवर ने सीमा के किरदार को जिस प्रकार से आत्मसात किया है, उसका बयान शब्दों से परे है। अन्य सभी कलाकारों-अनुराग अरोड़ा, संजीव चोपड़ा, अनुराधा कालिया, माही बर्मन, कबीर खन्ना आदि ने भी अपने अभिनय से असर छोड़ा है।
यह भले ही 17 मिनट की एक शॉर्ट-फिल्म हो लेकिन जिस तरह से इसे बुना गया है और इसमें तनाव, हताशा, हास्य के क्षणों आदि को एक डोर में पिरोया गया है, उससे यह एक संपूर्ण फिल्म बन जाती है।
‘घर की मुर्गी’ आमतौर पर ’दाल बराबर’ कही जाती है। पर यह फिल्म इन अंतिम पंक्तियों का खंडन करती है क्योंकि जब इस कहानी की ‘मुर्गी’ दूर चले जाना चाहती है तो सबको अहसास होता है कि वह उनके लिए कितनी महत्वपूर्ण है। संभव है फिल्म के आखिर का एक ट्विस्ट कुछ लोगों को अखरे लेकिन उसे समझने के लिए आपको सीमा की नज़र से सोचना होगा। कुल मिला कर यह एक खूबसूरत फिल्म है, जिसे देखा जाना चाहिए, दिखाया जाना चाहिए, परिवार के साथ और विशेष रूप से आपके अपने ’घर की मुर्गी’ के साथ।
Release Date-08 March, 2020
(अपेक्षा राय दिल्ली विश्वविद्यालय में बी.ए. ऑनर्स-पत्रकारिता की छात्रा हैं। फिल्मों से इनका विशेष लगाव है। अपनी लेखन-क्षमता का उपयोग करते हुए फिल्मों की बारीकियों को उकेरने का प्रयास करना इन्हें पसंद है। लेखन के अलावा इन्हें निर्देशन में भी रूचि है।)
(नोट-अपेक्षा राय का लिखा यह रिव्यू सितंबर, 2021 में दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित इंटर कॉलेज रिव्यू राइटिंग कंपीटिशन में प्रथम स्थान पर पुरस्कृत हुआ था जिसमें निर्णायक ‘सिनेयात्रा’ के फिल्म समीक्षक दीपक दुआ थे। मूल रिव्यू अंग्रेज़ी में है जिसे अपेक्षा ने खासतौर पर ‘सिनेयात्रा’ के लिए हिन्दी में परिवर्तित किया है। सोनी लिव के यू-ट्यूब चैनल पर मौजूद शॉर्ट-फिल्म ‘घर की मुर्गी’ इस लिंक पर क्लिक करके देखी जा सकती है।)
बहुत बढ़िया लिखा है, एक घरेलू महिला की रोजमर्रा जिंदगी में सुबह से ही जिम्मेदारी की उठापटक जो शुरू होती है, उसमें बहुत बार ऐसी ही उड़ान भरने की चाहत करवट बदलती रहती है …
It’s really amazing
She did it in a great way
Very good Apeksha👏👏👏
Excellent 👌👌Apeksha keep it up 👏👏👏
Well done🙌
‘घर की मुर्गी’ short film का रिव्यू हमें जीवन की उस सच्चाई से रूबरू कराता है जिसे प्रायः सभी अनदेखा करते हैं। Women are the best planners of the house. अगर एक दिन भी वह बीमार हो जाए तो पूरा घर बीमार या पंगु हो जाता है। साक्षी बहुत प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं। अपेक्षा की समीक्षा ने फ़िल्म देखने के लिए प्रेरित किया है। बधाई अपेक्षा।
Very well penned review. Congratulations Apeksha