• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-खुद से लड़ती ज़िद पे अड़ती ‘रश्मि रॉकेट’

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/10/15
in फिल्म/वेब रिव्यू
8
रिव्यू-खुद से लड़ती ज़िद पे अड़ती ‘रश्मि रॉकेट’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

गुजरात के कच्छ में रहने वाली रश्मि वीरा। दौड़ने में इतनी तेज़ कि लोग उसे ‘रॉकेट’ कहते हैं। बड़ी हुई तो देश के लिए दौड़ने जा पहुंची और सबको पीछे छोड़ डाला। देश ने, देशवासियों ने सिर-आंखों पर बिठा लिया। लेकिन एक ब्लड-टैस्ट में पता चला कि उसके अंदर लड़कों वाले हार्मोन कुछ ज्यादा हैं। तो क्या वह लड़की नहीं, लड़का है? या फिर कुछ और? मीडिया ने बवाल मचा दिया। एसोसिएशन ने बैन लगा दिया। देश की नाक कट गई। लेकिन रश्मि कोर्ट में गई और जीती। बस, उसी लड़ाई की कहानी है ज़ी-5 पर आई यह फिल्म ‘रश्मि रॉकेट’।

फिल्म बताती है कि टेस्टोस्टेरोन नाम का एक हॉर्मोन लड़कियों के खून में 3-4 प्वाइंट तक और लड़कों में 11-12 प्वाइंट तक होता है। लेकिन कुछ लड़कियों में यह कुदरती तौर पर ज़्यादा होता है। तो क्या करें? इन लड़कियों को लड़की मानना बंद कर दें? इन्हें अपमानित करें? इनसे इनका हक, सम्मान, शोहरत, पहचान छीन लें और इन्हें घुट-घुट कर जीने दें? या मर ही क्यों न जाने दें?

दुनिया भर में बहुत सारी महिला खिलाड़ियों को इस अनोखे, अजीबोगरीब टैस्ट के चलते अपना सम्मान, शोहरत, पैसा, मैडल गंवाने पड़े हैं। अपने यहां कुछ बरस पहले एथलीट दुती चंद के साथ भी यही सब हुआ था। लेकिन उन्होंने हार मानने की बजाय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़ाई लड़ कर जीत हासिल की थी। इस फिल्म की नायिका रश्मि भी हार मानने वालों में से नहीं है। बचपन से ही वह जुझारू प्रवृत्ति की रही है। माता-पिता ने भी हरदम यही समझाया कि हार-जीत तो परिणाम है, कोशिश हमारा काम है।

फिल्म बताती है कि यह सिर्फ रश्मि की ही लड़ाई नहीं है बल्कि यह उन तमाम लड़कियों की लड़ाई है जिन्हें ऐसे किसी मोड़ पर उनके अपने, उनकी एसोसिएशन और देशवासी तक अकेले छोड़ देते हैं जबकि ऐसे मौके पर तो उनका साथ देना चाहिए। फिल्म खेलों की दुनिया में राजनीति और षड्यंत्रों की मौजूदगी पर भी सवाल उठाती है। साथ ही यह इस तरफ भी इशारा करती है कि गलत को सहने की बजाय उसका मुकाबला करने वाले लोग जीतते तो हैं ही, दूसरों के लिए मिसाल भी बनते हैं।

फिल्म का पहला हिस्सा रश्मि के ‘रॉकेट’ बनने तक के सफर को दिखाता है और दूसरा कोर्ट-रूम ड्रामा को। नंदा पेरियासामी की कहानी में दम है, नयापन है और अनिरुद्ध गुहा व कनिका ढिल्लों ने इसे सलीके से पटकथा के तौर पर विस्तार दिया है। फिल्म के कई संवाद प्रभावी हैं। कौसर मुनीर के लिखे गीतों के बोल भी फिल्म के मिज़ाज को समझते हुए लिखे गए हैं और असर छोड़ते हैं। अमित त्रिवेदी का संगीत कहानी को सहारा दे पाता है। लोकेशंस प्रभावी हैं और आर्ट डिपार्टमैंट का काम बढ़िया। आकर्ष खुराना ने बतौर निर्देशक फिल्म को बेहद सलीके से अंजाम तक पहुंचाया है। उन्हें कहानी के तारों को दिलचस्प व प्रभावी ढंग से जोड़ने का हुनर बखूबी आता है। हालांकि कई बार लगता है कि फिल्म में थोड़ा और ड्रामा होता तो यह ज़्यादा असरदार बन पाती।

तापसी पन्नू अपने किरदार के साथ भरपूर न्याय करती हैं। उनकी बॉडी लेंग्युएज भी काफी प्रभावी रही है। यह भी दिखता है कि एक एथलीट का रोल करने के लिए उन्होंने शारीरिक तौर पर भी बहुत मेहनत की होगी। प्रियांशु पेन्यूली ने उनका उम्दा साथ निभाया। प्रियांशु को देख कर सुशांत सिंह राजपूत की याद आती है। सुप्रिया पाठक बेहद दमदार रहीं। अभिषेक बैनर्जी ने असमंजस में रहने वाले वकील की भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाया। श्वेता त्रिपाठी, मनोज जोशी, आकाश खुराना, क्षिति जोग, मंत्रा आदि जंचे। वहीं वरुण वडोला को खल-किरदार में देख कर अलग ही आनंद आया। उन्हें ऐसे किरदार मिलते रहने चाहिएं। जज बनीं सुप्रिया पिलगांवकर का काम उम्दा रहा।

इस किस्म की फिल्में हर किसी के लिए नहीं होतीं क्योंकि इनमें मसाला मनोरंजन का अभाव होता है। लेकिन सिनेमा में कुछ नया, कुछ दमदार देखने की चाह रखने वालों को ऐसी फिल्में ज़रूर देखनी चाहिएं जो असल में खुद से लड़ कर बनाई जाती हैं, ज़िद पर अड़ कर बनाई जाती हैं। ऐसी फिल्में उड़ान भरेंगी तो सिनेमा ऊपर उठेगा। और अगर फिल्म के अंत में आपकी आंखें नम हों, भर आएं, छलकें तो समझ जाइएगा कि आप इस किस्म के सिनेमा के साथ खड़ें हैं।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-15 October, 2021

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम ’(www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी. वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Akarsh khuranaaniruddha guhakanika dhillonLisha BajajNandha Periyasamypriyanshu painyuliRashmi Rocket reviewshweta tripathisupriya pathak kapursupriya pilgaonkartaapsee pannuvarun badolaZEE5
ADVERTISEMENT
Previous Post

पुरस्कृत रिव्यू-उड़ान भरती ‘घर की मुर्गी’

Next Post

रिव्यू-गर्व कीजिए ‘सरदार उधम’ पर

Related Posts

वेब-रिव्यू : मार्निंग शो वाले सिनेमा का सेलिब्रेशन ‘मरते दम तक’
CineYatra

वेब-रिव्यू : मार्निंग शो वाले सिनेमा का सेलिब्रेशन ‘मरते दम तक’

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’
CineYatra

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’
CineYatra

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’
CineYatra

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’
CineYatra

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं

Next Post
रिव्यू-गर्व कीजिए ‘सरदार उधम’ पर

रिव्यू-गर्व कीजिए ‘सरदार उधम’ पर

Comments 8

  1. Dr. Renu Goel says:
    1 year ago

    Aise social change movies ani chahiye or aapke reviews to masha allah h ji

    Reply
    • CineYatra says:
      1 year ago

      जी सहमत हूँ… धन्यवाद…

      Reply
  2. Manish Kumar says:
    1 year ago

    आपने बिलकुल सही लिखा है सर कि ऐसी फिल्में उड़ान भरेंगी तो सिनेमा ऊपर उठेगा। उम्दा रिव्यू बहुत खूब।

    Reply
    • CineYatra says:
      1 year ago

      शुक्रिया… आभार…

      Reply
  3. Puja Burnwal says:
    1 year ago

    कितना सुंदर और विस्तृत रिव्यू। इसी से स्पष्ट है कि फिल्म आपको कितनी पसन्द आई। कई कलाकार छोटे पर्दे से हैं और बड़े प्रभावशाली हैं। उन्हें बड़े पर्दे पर यथार्थपरक किरदार करते देखना सुखद होगा।
    जरूर देखना चाहूँगी।

    Reply
    • CineYatra says:
      1 year ago

      धन्यवाद… आपके कमेन्ट से भी स्पष्ट है कि आपने बहुत ध्यान से रिव्यू पढ़ा… आभार…

      Reply
  4. B S Bhardwaj says:
    1 year ago

    बहुत सही रिव्यू दिया है आपने। वाकई इस फिल्म की कहानी काफी अलग मिजाज के साथ गढ़ी गई है और आपके रिव्यू को पढ़ कर इसे पर्दे पर देखने की इच्छा जागृत हो गई है।

    Reply
    • CineYatra says:
      1 year ago

      धन्यवाद भाई साहब…

      Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.