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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-गर्व कीजिए ‘सरदार उधम’ पर

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/10/16
in फिल्म/वेब रिव्यू
9
रिव्यू-गर्व कीजिए ‘सरदार उधम’ पर
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘उधम सिंह ने लंदन जा के ऊधम खूब मचाया था…!’ बचपन में कहीं सुने किसी गीत की इस एक पंक्ति के अलावा क्रांतिकारी शहीद सरदार उधम सिह काम्बोज के बारे में आज तक भला हमने और क्या पढ़ा है? या इस सवाल को इस तरह से पूछें कि उनके बारे में भला हमें और क्या पढ़ाया गया सिवाय इसके कि उन्होंने 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार के दोषी माइकल डायर को लंदन जाकर 1940 में मार डाला था। कौन थे उधम सिंह? उनकी जीवन यात्रा, उनके विचार, उनके कारनामे, उनका दुस्साहस, उनकी शहादत, इस सबके बारे में इस देश को पढ़ाने-बताने का ज़िम्मा किन लोगों का है? क्या फिल्म वालों का? यदि हां, तो गर्व कीजिए इस फिल्म पर जिसने यह ज़िम्मेदारी बड़ी ही खूबसूरती और ईमानदारी के साथ निभाई है।

फिल्म दिखाती है कि 1919 में उधम सिंह बीस साल के एक अल्हड़ नौजवान थे जिन्हें उस समय चल रहे स्वाधीनता संग्राम में कोई खास रूचि नहीं थी। लेकिन 13 अप्रैल को जब पंजाब प्रांत के गवर्नर माइकल डायर के बुलावे पर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने जलियांवाला बाग में निहत्थे लोगों की भीड़ पर गोलियां बरसा कर वहां मौत का तांडव किया तो उधम की आत्मा हिल गई। जनरल डायर तो लंदन लौट कर 1927 में अपनी मौत मर गया लेकिन गर्वनर माइकल डायर लंदन आकर भी अपने भाषणों में लगातार यह कहता रहा कि हिन्दुस्तान पर हुकूमत करना ब्रिटेन का हक है और फर्ज़ भी। उसी माइकल डायर को उधम सिंह ने मार्च, 1940 में मार डाला जिसके बाद बिना उनका पक्ष सुने 31 जुलाई, 1940 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

कहने को यह उधम सिंह की बायोपिक है और कायदन इस फिल्म में उनके बचपन, उनके अंदर देशभक्ति की भावना का संचार होने, उनके जोश, डायर को मारने और फिर खुद फांसी पर चढ़ने की ऐसी सिलसिलेवार कहानी होनी चाहिए थी जिसे देख कर हम दर्शकों की मुठ्ठियां भिंच जाएं, बाजुएं फड़कने लगें, आंखें नम हो जाएं और कोई हमसे पूछे कि हाउ इज़ द जोश? तो हम कहें-हाई सर…! लेकिन इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है और इसीलिए यह फिल्म खुद को परंपरागत बायोपिक के दायरे से कहीं अलग और कहीं बहुत ऊपर जाकर स्थापित करती है। इतनी ऊपर कि इसे देख कर आप स्तब्ध रह जाते है और निःशब्द भी।

शुभेंदु भट्टाचार्य और रितेश शाह अपनी कलम से इस कहानी को एक अलग ही विस्तार देते हैं। वे आपको न सिर्फ उधम के अंतस में ले जाते हैं बल्कि उस दौर के ब्रिटिश अधिकारियों की भारत व भारतीयों के बारे में सोच से भी अवगत कराते हैं। साथ ही हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के भगतसिंह जैसे उन क्रांतिकारियों के विचारों को भी यह फिल्म तफ्सील से बताती है जो असल में समानता का संघर्ष कर रहे थे।

शुजित सरकार अपनी फिल्मों के ज़रिए हमें एक नए किस्म के रचना संसार में ले जाते रहे हैं। अपनी इस फिल्म में वह किसी जल्दबाज़ी में नज़र नहीं आते और बहुत आराम से, कहानी को आगे-पीछे ले जाते हुए वह उधम सिंह के जीवन में झांकते हैं। वैचारिक स्तर पर फिल्म उन्नत है तो वहीं अपने दृश्य-संयोजन से शुजित कमाल करते हैं। एक ऐसा कमाल जो इस फिल्म को रचनात्मकता के शिखर पर ले जाता है। इस फिल्म को पुरस्कारों से लादा जाना चाहिए। इसे भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए भी भेजा जाना चाहिए।

जलियांवाला बाग नरसंहार और उसके बाद उधम सिंह का घायलों-मृतकों के बीच भटकने का बेहद लंबा दृश्य विचलित करने वाला है। कई बार तो लगता है कि शायद एडिटर से चूक हो गई जो यह सीन इतना लंबा चला गया लेकिन फिर महसूस होता है कि नहीं, यह तो इरादतन है। दुनिया के सबसे जघन्य नरसंहार के बाद के हालात देख कर मन में घृणा होती है, टीस उठती है और यहीं शुजित व उनकी टीम सफल हो जाती है। रिचर्ड एटनबरों की ‘गांधी’ में दिखाए गए जलियांवाला बाग के दृश्यों से भी कहीं अधिक प्रभावशाली दृश्य हैं इस फिल्म में। उधम सिंह को लंदन की जेल में यातनाएं दिए जाने के दृश्य भी दहलाते हैं जिन्हें देख कर प्रियदर्शन की ‘सज़ा-ए-कालापानी’ याद आती है।

फिल्म की लोकेशंस, सैट डिजाइनिंग, कॉस्ट्यूम, कैमरा आदि सब अद्भुत हैं। 1940 के वक्त का लंदन कैसे रचा गया होगा, कितनी मेहनत लगी होगी, यह देखना दिलचस्प है। फिल्म में गीत नहीं हैं लेकिन बेहद प्रभावशाली पार्श्व-संगीत इसे समृद्ध करता है। और कलाकार तो सारे के सारे ऐसे, जैसे अपने किरदारों में गोते लगा रहे हों। उधम सिंह बने विक्की कौशल कितनी बार हमें चकित करेंगे? राष्ट्रीय पुरस्कार लायक काम है उनका।

अमेज़न प्राइम पर आई यह फिल्म देख कर जोश नहीं चढ़ता, आंखें नम नहीं होतीं, भुजाएं नहीं फड़कतीं, मज़ा नहीं आता। सच तो यह है कि इस फिल्म को देख कर आप कोई प्रतिक्रिया देने लायक ही नहीं बचते। आपकी यही चुप्पी इस फिल्म को महान बनाती है, इसे उस जगह पर ले जाती है जहां आप इस पर गर्व कर सकें।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-16 October, 2021

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: amazon primeamol parasharbanita sandhusardar udham reviewshoojit sircarudham singhvicky kaushal
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Comments 9

  1. दिलीप कुमार says:
    4 years ago

    इंतजार था इस फ़िल्म का

    Reply
  2. राणा says:
    4 years ago

    सहनशीलता :
    जब उधम सिंह जी, “ओ डायर” से पूछते है की आपको कोई पश्चताप है जालियां वाला बाग नरसंहार के लिए,और वो कहता है नही!
    तब अन्य कोई भारतीय होता तो वही उसे खत्म कर देता
    पर तब नही मारे उसको क्योंकि सब कहते नौकर ने मालिक को मारा।

    रात को देखा और रात नींद गायब थी, आंखो के सामने वही दृश्य घूम रहा था।

    *कोई जिंदा है*

    Reply
    • CineYatra says:
      4 years ago

      सचमुच, बहुत ही उम्दा लिखी गई फिल्म है यह… धन्यवाद… जुड़े रहें, पढ़ते रहें…

      Reply
  3. सचिन गुप्ता says:
    4 years ago

    गर्व है हमें उधम सिंह पर।फ़िल्म को शांत के साथ देखा जाए तो आखै नम हो ही जायगी उस नरसंहार जलिया वाला बाग का।फ़िल्म वाकाई ऑस्कर के लिये भेजी जानी चाहिये।

    Reply
    • CineYatra says:
      4 years ago

      धन्यवाद…

      Reply
  4. Nirmal says:
    4 years ago

    विक्की कौशल ने तो उरी में भी हमारे रौंगटे खड़े कर दिए थे। आपकी कलम से कम ही तारीफ निकलती है। बहुत सख्त हैं आप इस मामले में 😀 यदि इसकी तारीफ की है तो वाकई गज़ब ही होगी। 👌

    Reply
    • CineYatra says:
      4 years ago

      धन्यवाद…

      Reply
  5. अविनाश says:
    4 years ago

    इस फ़िल्म ने भारतीय सिनेमा को एक नई ऊंचाई दी है, उम्मीद है आगे भी इस तरह का सिनेमा देखने को मिलेगा। विक्की कौशल का दमदार अभिनय और लाज़वाब पटकथा लेखन सभी बधाई के पात्र।

    Reply
    • CineYatra says:
      4 years ago

      धन्यवाद…

      Reply

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