-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
तीन लड़कियां। तीनों एयर होस्टेस। एक ऐसी एयरलाइंस में, जो डूबने के कगार पर है। स्टाफ की सैलेरी महीनों से रुकी हुई है मगर मालिक ऐश कर रहा है। एक दिन इन तीनों को पता चलता है कि उनके प्लेन का पायलट छाती पर सोने के बिस्किट बांध कर स्मगलिंग करता है। पैसे से लाचार ये तीनों भी इस रास्ते पर चल पड़ती हैं। लेकिन बुरे काम का बुरा नतीजा-यह कहावत तो काफी पुरानी है न। मगर अंत भला तो सब भला-यह कहावत भी कोई नई नहीं है।
‘क्रू’ (Crew) को एकता कपूर और अनिल कपूर की कंपनियों ने मिल कर बनाया है। इन्होंने ‘वीरे दी वेडिंग’ भी बनाई थी। ‘क्रू’ को ‘वीरे दी वेडिंग’ वाले मेहुल सूरी और निधि मेहरा ने ही लिखा है। इसीलिए ‘क्रू’ में आपको वही चमक-दमक, वही ‘खुलापन’, वही रंगीनियत दिखाई देगी जो ‘वीरे दी वेडिंग’ में थी। यहां भी आपको उस फिल्म की तरह ऐसी नायिकाएं दिखेंगी जो अल्ट्रा मॉर्डन हैं। जिनके लिए शराब-सिगरेट पीना, अतरंगी दिखना, अश्लील संदर्भों के साथ बात करना, अपने जिस्म का ‘सामान दुकान से बाहर रखना’ आम है। भले ही आपके घर या आस-पड़ोस में ऐसी लड़कियां न दिखती हों लेकिन इस किस्म की फिल्में आपको ये सब बार-बार दिखा कर यकीन दिलाती हैं कि ऐसी लड़कियां होती हैं, बहुतायत में होती हैं और असल में लड़कियों को ऐसा ही होना चाहिए। खैर…!
(रिव्यू-‘चरमसुख’ नहीं दे पाती ‘वीरे दी वेडिंग’)
‘क्रू’ (Crew) की कहानी बेदम नहीं है। पैसों की तंगी से जूझ रहीं तीन एयरहोस्टेस थोड़ा रिस्क उठा कर एक्स्ट्रा पैसे कमाने की राह पर पड़ती हैं। लेकिन आगे चल कर उनकी राहें उलझ जाती हैं और कैसे ये तीनों उसे सुलझाती हैं-यह सब रोचक अंदाज़ में दिखाया गया है। यही कारण है कि पूरी फिल्म में एक हल्का-सा कॉमिक-फ्लेवर बना रहता है। दिक्कत यह है कि यह फ्लेवर हल्का ही रहता है, गाढ़ा नहीं हो पाता। फिल्म में गाढ़े इमोशन्स भी होते तो यह मैच्योर ही होती। और जैसा कि इस किस्म की लूट-खसोट वाली फिल्मों में होता है, तर्क-वितर्क की यहां भी कोई जगह नहीं है। ऐसा कैसे हो गया? ऐसे थोड़े ही होता है? जैसे मन में उठते सवालों को दबा कर इस फिल्म को देखेंगे तो यह ‘नैनसुख’ और ‘टाइमपास सुख’ अवश्य देगी।
‘क्रू’ (Crew) को डायरेक्ट करने वाले राजेश कृष्णन इससे पहले कुणाल खेमू वाली ‘लूटकेस’ बना चुके हैं। उस फिल्म में भी दस करोड़ रुपए से भरा एक गैंग्स्टर का सूटकेस एक आम आदमी के हाथ लग गया था जिसके बाद मारधाड़, भागमभाग शुरू हो गई थी। ‘क्रू’ में भी आम लोग अपराध, अपराधियों और ब्लैक मनी के पचड़े में पड़े हुए हैं। राजेश ने इस कहानी को भी जम कर साधने की कोशिश की है लेकिन इस बार कमज़ोर स्क्रिप्ट के चलते वह बंधे रहे। ‘क्रू’ का विमान कभी टेक ऑफ करते-करते लैंड करने लगा तो कभी लैंडिंग के दौरान डगमगाने लगा। पटकथा को कस कर और संवादों को और ज़्यादा तीखा-मसालेदार बना कर इस फिल्म को ज़्यादा एंटरटेंनिंग बनाया जा सकता था।
(रिव्यू-मनोरंजन की दौलत है इस ‘लूटकेस’ में)
‘क्रू’ (Crew) में तब्बू, करीना कपूर और कृति सैनन को उनकी असल उम्र के आसपास के किरदार मिले हैं और तीनों ने ही उन्हें कायदे से जीने की कोशिश भी की है। करीना को अपने किरदार की ऊंच-नीच का ज़्यादा फायदा मिला। थोड़ी-थोड़ी देर को आए कपिल शर्मा, राजेश शर्मा, दिलजीत दोसांझ, शास्वत चटर्जी, कुलभूषण खरबंदा आदि जंचे। कस्टम अफसर बनीं तृप्ति खामकर प्रभावी रहीं। गीत-संगीत के नाम पर पुराने गानों का जैसा रीमिक्सीकरण किया गया है वह माफी के काबिल नहीं है। बाकी तो लोकेशन, कैमरा, रंगीनियत, चमक-दमक, अश्लील संदर्भ वगैरह सब कुछ यह ‘क्रू’ आपको परोस ही रहा है।
हवाई जहाज में यात्रा करते समय अगर आप केबिन क्रू यानी एयर होस्टेस आदि को गौर से देखें तो वे चमकते कपड़ों, चहकते चेहरों और लंबी मुस्कान के साथ आपका पूरा ख्याल रखती हैं। लेकिन समझदार लोग जानते हैं कि यह चमक, यह दमक परमानेंट नहीं होती, आप प्लेन से उतरे तो सब फुर्र। बस, कुछ वैसा ही इस फिल्म के साथ भी है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-29 March, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
सटीक और सम्पूर्ण….रिव्यु…. ना इधर ना उधर…. बस रुनवे पर…. आजकल फिल्मों में वास्विकता से आगे बढ़कर दिखाया जा रहा है…. जो शायद एक कल्चर सा बन गया है…