-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
अच्छाई और बुराई, प्रकाश और अंधकार की लड़ाई युगों-युगों से इस ब्रह्मांड में चली आ रही है। अच्छे लोग हमेशा से ताकत को सहेजने, बचाने में लगे हैं और बुरे लोग उस ताकत को पाकर उसका गलत इस्तेमाल करने में। तीन भागों में बनने वाली सीरिज़ की इस पहली फिल्म में भी यही लड़ाई दिखाई गई है। फिल्म बताती है कि दुनिया में कई किस्म के अस्त्र हैं जिन पर अच्छे-बुरे लोगों का कब्जा है। ब्रह्मांश कहे जाने वाले कुछ लोग इन अस्त्रों की रक्षा कर रहे हैं। लेकिन सबसे बड़े अस्त्र ‘ब्रह्मास्त्र’ के तीन हिस्से तीन अलग-अलग लोगों के पास हैं। बुरे लोग इन हिस्सों को किसी भी तरह से हासिल करने पर आमादा हैं और अच्छे लोग इन्हें बचाने में लगे हैं। उधर मुंबई में रह रहे एक आम लड़के शिवा को अक्सर कुछ अजीब-सा महसूस होता है। उसे अहसास होता है कि उसके पास कोई अनोखी शक्ति है। उसे कुछ घटनाएं दिखती हैं और वह अपनी दोस्त ईशा के साथ निकल पड़ता है अच्छे लोगों को बचाने। ज़ाहिर है कि उसे बुरे लोगों से भी भिड़ना पड़ेगा। लेकिन यह लड़का आखिर है कौन?
इस किस्म की कहानी भले ही नई न हो लेकिन इस तरह की पृष्ठभूमि और किरदारों की कल्पना हिन्दी फिल्मों के लिए अनोखी है। कायदे से इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत इसकी कहानी और इसकी पटकथा ही होनी चाहिए थी लेकिन इसकी सबसे बड़ी और पहली खासियत इसकी भव्यता है। चकाचौंध कर देने की हद तक इसमें भव्य सैट्स तैयार किए गए हैं और कम्प्यूटर की मदद से ऐसे ज़बर्दस्त विज़ुअल्स रचे गए हैं जो आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। आप चाहें तो इसे देखते हुए गर्व कर सकते हैं क्योंकि किसी हिन्दी फिल्म में इतने ऊंचे स्तर के वी.एफ.एक्स. अभी तक तो नहीं आए हैं। आप इस फिल्म के बेहद तेज़ रफ्तार एक्शन सीक्वेंस को देख कर हैरान हो सकते हैं। उम्दा एक्शन और वी.एफ.एक्स. का ज़बर्दस्त मेल आपकी आंखें थका भी सकता है। लेकिन क्या कोई फिल्म सिर्फ आंखों के लिए ही होती है…?
इस फिल्म को देखते हुए हॉलीवुड के मार्वल स्टूडियो की भव्य एक्शन और वी.एफ.एक्स. वाली फिल्मों की याद आती है, खासतौर से ‘एवेंजर्स’ सीरिज़ वाली फिल्में। अपने रूप-रंग में यह फिल्म भी वैसी ही है। इसके किस्म-किस्म के अच्छे-बुरे किरदार भी उन फिल्मों के किरदारों की याद दिलाते हैं। मार्वल फिल्मों के फैंस जानते हैं कि उन फिल्मों को उनकी कहानी की गहराइयों या स्क्रिप्ट की बारीकियों के लिए नहीं बल्कि उनके विज़ुअल्स की रंगीनियों के लिए देखा जाता है। आप चाहें तो इस फिल्म को हिन्दी में बनी एक ऐसी ही चमकदार फिल्म का दर्जा दे सकते हैं जो बिना हॉलीवुड और बिना मार्वल के बनी है लेकिन उन्हें बराबर की टक्कर दे रही है। लेकिन क्या कोई फिल्म सिर्फ चमक बिखेरने के लिए ही बनाई जाती है…?
हॉलीवुड से आने वाली चमकीली, रंगीन फिल्मों में भी अतार्किक ही सही, बढ़िया कहानी होती है और उससे भी बढ़ कर उनकी स्क्रिप्ट पर दम लगा कर काम किया जाता है। दक्षिण भारत से जो चमकीला माल आकर हिन्दी के बाज़ार में धड़ाधड़ बिकता है उसमें भी पटकथा और संवादों पर की गई मेहनत दिखाई देती है। लेकिन इस फिल्म में यह मेहनत सबसे कम की गई है। वरना ‘लाइट एक ऐसी रोशनी है’ और ‘रफ्तार की गति’ जैसे वाक्य लिखने वाले को क्या इन समानार्थी शब्दों के बारे में पता नहीं होगा? ऐसी फिल्मों के डायलॉग ठहराव लिए और गहराई भरे होने चाहिएं लेकिन यहां ज़बर्दस्ती की कॉमेडी उपजाने के लिए उन्हें उथला और ओछा बना दिया गया। कई जगह किरदारों की सोच में भी गड़बड़ है। लड़का सपने देख कर खुद ही ब्रह्मास्त्र को बचाने की मुहिम से जा जुड़ा लेकिन गुरु जी के पास पहुंच कर ज़िम्मेदारी से भागने लगा, क्यों? विषय को भव्य बनाने पर की गई निर्देशक अयान मुखर्जी ने की मेहनत साफ झलकती है। लेकिन उन्हें विषय को मज़बूत बनाने पर भी ज़्यादा ध्यान देना चाहिए था।
रणबीर कपूर अपनी पूरी रंगत में हैं। उनकी संगत में आलिया भट्ट भी जंचती हैं। इन दोनों की प्रेम-कहानी को बहुत ज़्यादा फैलाया गया। और भी कई सीक्वेंस हैं जो दो बातों में खत्म होने चाहिएं थे लेकिन कई मिनट तक चलते रहे। अमिताभ बच्चन, नागार्जुन, शाहरुख खान आदि जमते हैं। डिंपल कपाड़िया की हल्की-सी मौजूदगी बताती है कि उन्हें अगले पार्ट में बड़ा रोल मिलेगा। मौनी रॉय असरदार रहीं, बाकी सब ठीक-ठाक। दो-एक गाने अच्छे हैं, देखने में भी, सुनने में भी। लेकिन गानों की बहुतायत चुभती है। बैकग्राउंड म्यूज़िक बेहतरीन है। कैमरा, लोकेशन उम्दा हैं। एडिटिंग की गुंजाइश काफी है। पौने तीन घंटे लंबी फिल्म कई जगह अझेल हो जाती है। और हां, इस फिल्म में ब्रह्मास्त्र, नंदी अस्त्र, शिवा जैसे नामों का सिर्फ इस्तेमाल है और बैकग्राउंड में श्लोकों-मंत्रों का उच्चारण भी, मगर पौराणिक आख्यानों या किरदारों से इसका कोई नाता नहीं है।
भरपूर भव्यता देखनी हो तो इस फिल्म को देखा जाए-परिवार के साथ, दोस्तों के साथ, बच्चों के साथ। देखा जाए और इसकी चमक-दमक के मज़े लिए जाएं। लेकिन ऐसा करते समय इसकी कहानी की बारिकियों पर गौर करने से बचा जाए। बचा जाए ताकि आपका मूड सही रहे। भव्यता का चश्मा उतार कर समझदारी की ऐनक पहनना आपको भारी पड़ सकता है, बहुत भारी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-09 September, 2022
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
बहुत सही और सटीक विश्लेषण किया है आपने 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
धन्यवाद भाई साहब
बहुत बारीकी से विश्लेषण किया है
बहुत खूब 👏👏👏
धन्यवाद…
हमेशा की तरह फिर से बेहतरीन समीक्षा, 👌👌 रिव्यू पढ़ कर लगा कि ऊंची दुकान फीके पकवान वाली कहावत इस फिल्म पर फिट बैठती है! भव्य सेट्स के साथ साथ कहानी और किरदार पर काम करना बेहद जरूरी है संजय लीला भंसाली की तरह!! बहुत सारी खामियों के चलते ब्रह्मास्त्र बेअसर साबित हुआ है! यकीनन एक अच्छी फिल्म बनाने में चूक हुई हैं पर एक अच्छी समीक्षा लिखने में दीपक दुआ जी कभी भी नहीं चूकते! धन्यवाद 🙏
जय हो…
This is great like always. Such impartial n to the point review has Cleared all the clouds of doubts whether to watch this movie or not . Now I can wait for same to be released on ott.. Big Thanx
Thanks dear…