-दीपक दुआ…
इसे चाहें तो विडंबना कहें या नियति मगर सच यही है कि हर किस्म का संगीत देने के बावजूद बप्पी लाहिड़ी को डिस्को वाले संगीतकार के तौर पर ही पहचाना गया। सोचिए कितनी कुदरती प्रतिभा रही होगी उस बालक में जिसने तीन-चार बरस की उम्र से ही तबले पर थाप देनी शुरू कर दी थी। जिसे छुटपन में तबला बजाते देख कर खुद लता मंगेशकर ने पंडित सामता प्रसाद से उसे सिखाने को कहा हो। जिसने संगीत की हर विधा सीखी, कई वाद्यों पर पकड़ बनाई और मात्र 19 वर्ष की उम्र में फिल्मों में संगीत देने लगा।
बहुत जल्द मुंबई का रास्ता पकड़ अपने कैरियर के शुरुआती दौर में ही बप्पी दा ने ‘जख्मी’, ‘चलते चलते’, ‘आप की खातिर’ जैसी फिल्मो में सुरीले गाने देकर जनता को लुभा लिया लेकिन वह अपने ‘असली’ रूप में आए 1979 में रिलीज हुई फिल्म ‘सुरक्षा’ से। पाठकों की आज की पीढ़ी तो इस बात से परिचित भी नहीं होगी कि कभी हॉलीवुड की जेम्स बॉण्ड सीरिज वाली फिल्मों की तरह निर्देशक रविकांत नगाइच मिथुन चक्रवर्ती को गनमास्टर जी-9 के किरदार में लेकर ‘सुरक्षा’ (1979) और ‘वारदात’ (1981) जैसी जासूसी थ्रिलर फिल्में बनाई थीं। ‘सुरक्षा’ बनाते समय उन्होंने इस फिल्म के संगीतकार बप्पी लाहिड़ी से गुजारिश की कि कुछ ऐसी रिद्म लेकर आइए जो जॉन ट्रेवोल्टा और जेम्स बॉण्ड का मिश्रण हो। बप्पी दा को मानो मनचाही मुराद मिल गई। पश्चिमी संगीत के प्रति उनके भीतर दीवानगी शुरू से ही थी। वहां की विभिन्न संगीत शैलियों को हिन्दी के पर्दे पर लाने का उनका मन भी था लेकिन यहां बन रहा सिनेमा उन्हें छूट नहीं दे रहा था। सामने से न्यौता आया तो उन्होंने ‘मौसम है गाने का, गाने का बजाने का…’ को अपनी ही आवाज में रिकॉर्ड किया जिसमें उन्होंने डिस्को संगीत की उन बीट्स का इस्तेमाल किया जिनसे हिन्दी फिल्म संगीत और फिल्म संगीत के प्रेमी, दोनों तब तक अनजान थे। बप्पी दा और उनके बनाए इस गाने, दोनों को पहले-पहल आलोचनाओं का सामना करना पड़ा लेकिन दर्शकों, श्रोताओं ने इस गीत को जो पसंद करना शुरू किया तो देखते ही देखते हिन्दी फिल्मों में डिस्को और पॉप संगीत की एक नई धारा आरंभ हो गई। एक सच यह भी है कि मिथुन चक्रवर्ती की डांसिंग स्टार की छवि के पीछे भी बप्पी दा के संगीत का बहुत बड़ा योगदान रहा। खासतौर से 1982 में आई उनकी ‘डिस्को डांसर’ को एक मील-पत्थर के तौर पर देखा जाता है। इस फिल्म के ‘आई एम ए डिस्को डांसर…’, ‘जिम्मी जिम्मी जिम्मी आजा आजा…’, ‘कोई यहां आहा नाचे नाचे…’ जैसे तमाम गीत न सिर्फ तब सुपरहिट हुए बल्कि आज भी इन्हें सुन कर मन और पांव, दोनों थिरकने लगते हैं। अचरज हो सकता है यह जान कर कि उस जमाने में इस फिल्म के गीत सोवियत रूस और चीन जैसे देशों में भी बेपनाह पसंद किए जा रहे थे। यह पहली ऐसी फिल्म थी जिसने दुनिया भर में सौ करोड़ रुपए कमाए थे। विदेशों में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिन्दी फिल्म भी यही थी जिसे बाद में ‘3 ईडियट्स’ ने पछाड़ा था।
सिर्फ डिस्को ही नहीं, हिन्दी के पर्दे पर पहली बार आए ब्रेक डांस के पीछे भी बप्पी दा का ही संगीत था। 1986 में आई शिबू मित्रा की गोविंदा वाली फिल्म ‘इल्जाम’ का गीत ‘आई एम ए स्ट्रीट डांसर…’ याद कीजिए। गोविंदा के डांस, अमित कुमार की आवाज और बप्पी दा के तड़कते-भड़कते संगीत से मिल कर अनजान के लिखे इस गीत के पीछे उन दिनों की युवा पीढ़ी बावली थी। गोविंदा को अपनी इस पहली ही फिल्म से जनप्रिय नायक बनाने के पीछे इस गाने का बहुत बड़ा हाथ माना जाता रहा है।
बप्पी दा कई विदेशी संगीतकारों और उनके बनाए संगीत से प्रभावित रहे। बहुत बार उन्होंने उनकी धुनों को सीधे या घुमा-फिरा कर ‘उठाया’ और आलोचनाएं भी झेलीं लेकिन हिन्दी फिल्म संगीत में अभिनव प्रयोग करने नहीं छोड़े। चाहे वह ‘तोहफा’ के ‘नैनों में सपना…’ में तबले और मटका-संगीत को मिला कर इस्तेमाल करने की बात हो या आज का अर्जुन के ‘गोरी है कलाइयां, तू ला दे मुझे हरी-हरी चूड़ियां…’ में पायल और मटके से संगीत देने की। शराबी के गीत ‘लोग कहते हैं मैं शराबी हूं…’ में खास तरह से घुंघरू बजाने के लिए उन्होंने इसके माहिर कलाकार बुलाए और आमतौर पर कुछ घंटों में गीत रिकॉर्ड करने वाले बप्पी दा ने इस गाने को तीन दिन लगा कर रिकॉर्ड किया। ‘नमक हलाल’ के ‘पग घुंघुरू बांध मीरा नाची थी…’ में उन्होंने तबले और डिस्को बीट्स का फ्यूजन किया। उस दौर में यह अपने-आप में एक अनोखा प्रयोग था। बतौर गायक भी वह अनोखे ही थे। साफ झलकते बांग्ला उच्चारण वाली अपनी हिन्दी में भी उन्होंने ऐसे-ऐसे गाने गाए जो बरसों तक सुने जाते रहे।
अपनी प्रयोगधर्मिता के बावजूद बप्पी दा ने जिस तरह से फिल्म संगीत को एकदम निचली पायदान पर बैठे दर्शक-श्रोता के दिल में उतारा, ‘क्लास’ की बजाय ‘मास’ से जोड़ा, उसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। बाकी, अगर कोई उनकी प्रतिभा पर उंगली उठाए तो उसे ‘एतबार’ की गजल ‘किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है…’ सुना दीजिएगा।
(नोट-इस लेख के संपादित अंश ‘प्रभात खबर’ समाचारपत्र में 20 फरवरी, 2022 को प्रकाशित हुए हैं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)