-दीपक दुआ…
‘23 सितंबर से ताजमहल पर्यटकों के लिए बंद…!’
उस रोज ये पोस्टर दिल्ली के मैट्रो स्टेशनों पर पढ़े तो माथा ठनका। करीब जा कर देखा तो नीचे छोटे अक्षरों में ‘वाह ताज’ लिखा देख कर अपने को तो समझ में आ गया कि यह श्रेयस तलपड़े और मंजरी फड़नीस की आने वाली फिल्म ‘वाह ताज’ के प्रचार का कोई तरीका है। इसके कुछ ही दिन बाद आगरा चलने और इस फिल्म के पोस्टर लांच इवेंट में शामिल होने का न्यौता मिला। तब तक यह खबर भी आ ही चुकी थी कि इस ‘एंटी पब्लिसिटी’ वाले पोस्टर को लेकर आगरा के बाशिंदे, खासकर पर्यटन व्यवसाय से जुड़े हुए लोग खासे खफा हैं और इस फिल्म से जुड़े लोगों पर केस आदि भी कर चुके हैं।
खैर, 12 अगस्त, 2016 की सुबह आई.टी.ओ. के प्रैस एरिया में एक्सप्रैस बिल्डिंग के ठीक सामने खड़ी बस में हम चंद मीडिया वालों का जत्था आगरा पर चढ़ाई करने के लिए तैयार था। इसी एक्सप्रैस बिल्डिंग में कभी ‘जनसत्ता’ का दफ्तर हुआ करता था जहां 1993 में अपन ने अपनी शुरूआती ट्रेनिंग ली थी। इस तरह के टूर की सबसे दिलचस्प बात यह होती है कि जहां मीडिया में ही कुछ नए दोस्त बनते हैं वहीं एक बार फिर पुराने दोस्तों के करीब आने और रिश्ते प्रगाढ़ करने का मौका मिलता है।
सफर शुरू हुआ और यमुना एक्सप्रैस वाले हाईवे तक आते-आते तमाम लोगों की झिझक खुल चुकी थी। शुरूआत खाने-पीने से हुई और फिर अंताक्षरी और गप्पबाजी के दौर चल पड़े। बीच-बीच में कैमरों के मुंह भी खुलते-बंद होते रहे और पता ही नहीं चला कि दो-तीन जगह रुकते-रुकाते कब दोपहर हुई और कब हम आगरा शहर में दाखिल हो गए।
आगरा के शानदार होटल ‘फोर प्वाईंट्स बाय शेरेटन’ में पहुंचते ही शानदार लंच से स्वागत हुआ और कुछ ही देर बाद फिल्म से जुड़े तमाम लोग हमारे सामने थे। श्रेयस इस फिल्म में एक किसान बने हैं सो वह एक ट्रैक्टर चलाते हुए होटल में दाखिल हुए जिस पर उनके साथ मंजरी और एक बाल-अदाकारा भी थीं।
फिल्म के निर्माता पवन शर्मा ने बताया, ‘यह फिल्म एक राजनीतिक सेटायर है जिसमें किसानों के हक की बात की गई है कि किस तरह से सरकारें किसानों से जमीनें लेकर कॉरपोरेट घरानों को दे देती हैं और कैसे एक किसान अपना हक पाने के लिए एक बिल्कुल ही अनोखा कदम उठाता है और ताजमहल की जमीन पर अपना दावा जताने के लिए पहुंच जाता है।’ पवन कहते हैं कि यह कहानी किसी वास्तविक केस या घटना पर आधारित न होकर एक पूरी तरह से काल्पनिक कहानी होते हुए भी आज के समय में बिल्कुल प्रासंगिक है।
फिल्म को पैन एंटरटेनमैंट के बैनर तले निर्माता जयंतीलाल गाडा प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘जब हमने यह फिल्म देखी तो हमें लगा कि हमें इससे जुड़ना चाहिए। पहले भी हमने ऐसी फिल्मों को अपने बैनर से रिलीज किया है जो थोड़ी हट कर रहीं या जिनमें कोई अलग बात थी।’ गाडा उम्मीद जताते हैं कि बड़ी स्टार कास्ट न होने के बावजूद यह फिल्म चलेगी क्योंकि इसमें जो बात कही गई है वह पूरे देश के लोगों को समझ आएगी और जो भी इसे देखेगा, वह इसे दूसरों को भी देखने को कहेगा।
फिल्म की एंटी-पब्लिसिटी के बारे में पवन शर्मा ने कहा, ‘हमारा मकसद सिर्फ इस फिल्म की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करना था। हम किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते और यदि किसी को लगता है कि हमने कोई गलत कृत्य किया है तो हम उनसे माफी मांगते हैं और हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग ताजमहल को देखने आएं और ज्यादा से ज्यादा लोग हमारी फिल्म को भी देखने आएं।’
श्रेयस तलपड़े और मंजरी फड़नीस से मैंने अलग से काफी बातें कीं। शाम हो चुकी थी और चाय-कॉफी का लुत्फ उठा कर हमारा काफिला अब वहां से चलने को तैयार था। रास्ते में हमें आगरा की मशहूर पेठे की मिठाई भी तो खरीदनी थी। हर किसी की जिद थी कि पेठा तो पंछी-ब्रांड का ही लेना है। अब यह बात अलग है कि आगरा में हर पेठे वाले ने अपनी दुकान के बोर्ड पर किसी न किसी रूप में पंछी का नाम या निशान बना रखा है जिसे देखने के बाद अपना तो यही कहना है कि आगरा शहर में उतने पंछी नहीं होंगे, जितने ‘पंछी पेठा भंडार’ हैं।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)