-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
11 बरस पहले आई ‘एक था टाईगर’ में हिन्दुस्तानी खुफिया एजेंसी रॉ का एजेंट अविनाश यानी टाईगर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. की एजेंट ज़ोया से शादी करके दुनिया की नज़रों से यह कह कर गायब हो गया था कि अब वह तभी वापस आएगा जब दोनों मुल्कों को खुफिया एजेंसियों की ज़रूरत ही नहीं होगी। हालांकि जोश-जोश में बोल दिए गए इस डायलॉग के पांच साल बाद अपना वादा तोड़ कर टाईगर और ज़ोया ‘टाईगर ज़िंदा है’ में लौटे और एक बढ़िया मिशन को उम्दा ढंग से पूरा करके फिर से गायब हो गए, फिर से लौटने के लिए। ज़ाहिर है कि यशराज फिल्म्स को तब तक यह फॉर्मूला मिल चुका था कि जब टाईगर के मिज़ाज की कोई कहानी मिले, उसे वापस ले आओ। इस बीच इन लोगों ने ‘वॉर’ और ‘पठान’ जैसी फिल्में लाकर अपने एजेंटों की एक अलग दुनिया ही बसा ली। इस साल के शुरू में आई ‘पठान’ में पठान की मदद को आए टाईगर को दिखा कर यशराज ने अपनी यह मंशा भी जता दी थी कि ये लोग जब चाहे एजेंटों और उनके कारनामों का घालमेल करते रहेंगे। अब इस फिल्म ‘टाईगर 3’ में जब टाईगर फंसा तो उसकी मदद को पठान आया है और फिल्म के एकदम अंत में एक सीन के ज़रिए भविष्य में इस सीरिज़ में ‘वॉर’ को जोड़ने का संकेत भी दे दिया गया है।
टाईगर और ज़ोया का शुरू से ही यह मानना रहा है कि हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के आम लोग, नेता और यहां तक कि दोनों की खुफिया एजेंसियां भी शांति चाहती हैं लेकिन दो-एक खुराफाती लोगों के चलते इन दोनों मुल्कों में तनातनी बनी रहती है जिनसे ये दोनों मुल्क, इनकी एजेंसियां, एजेंट और टाईगर व ज़ोया मिल कर लड़ते रहते हैं। इस बार का खुराफाती है आतिश रहमान, जो कभी ज़ोया का गुरु था। अपनी खुराफाती सोच के चलते आतिश अब पाकिस्तान की सरकार को हिलाना चाहता है। ज़ाहिर है कि ज़ोया उसे रोकेगी और दामाद का फर्ज़ निभाने के लिए टाईगर भी उसका साथ देगा।
इस फिल्म की कहानी पिछली वाली दोनों फिल्मों से हल्की है। हालांकि ढर्रा वही पुराना है-टाईगर का आना, किसी वजह से एक्शन में पड़ना, न चाहते हुए भी एक मिशन में कूदना और जब कूद ही गया है तो जीत कर लौटना क्योंकि ‘जब तक टाईगर मरा नहीं, तब तक टाईगर हारा नहीं…!’ कहानी के साथ-साथ इस बार स्क्रिप्ट भी हल्की है। खासतौर से शुरूआत के सीन और संवादों का अंदाज़ा थिएटर में बैठी जनता को पहले से ही होने लगता है। हां, संवाद ज़रूर अच्छे हैं और टाईगर के किरदार पर जंचते भी हैं।
दरअसल टाईगर-मार्का फिल्मों में किसी बहुत मजबूत कहानी या बहुत शानदार स्क्रिप्ट की बजाय यह मायने रखता है कि घटनाएं कितनी तेज़ी से घट रही हैं, ट्विस्ट कितने और कैसे आ रहे हैं और एक्शन किस स्तर का है। इस नज़र से देखें तो यह फिल्म निराश नहीं करती है। जड़ें खोदने वालों और उन खुदी हुई जड़ों को ज़ूम करके देखने वालों के लिए टाईगर की फिल्में नहीं होती हैं। ये फिल्में जिन दर्शकों के लिए बनती हैं, उन्हें यह वाली फिल्म भी पसंद आएगी और पैसा वसूल मनोरंजन देकर जाएगी। पठान बने शाहरुख खान की एंट्री तो सीटियां भी बजवाएगी।
पहली वाली ‘टाईगर’ के निर्देशक कबीर खान थे, दूसरी वाली के अली अब्बास ज़फर और इस बार डायरेक्शन का ज़िम्मा मनीष शर्मा के हिस्से आया है। मनीष का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो उन्होंने अभी तक एक्शन से परहेज़ करते हुए फैमिली टाइप फिल्में ही बनाई हैं। ऐसे में निर्माता आदित्य चोपड़ा ने मनीष को निदेशन का भार क्यों सौंपा, यह अचरज की बात है। मनीष ने हालांकि खूब दम लगाया है लेकिन इस फिल्म के पिछली दोनों फिल्मों के मुकाबले कमज़ोर होने का गुनाह उन्हीं के माथे रहेगा।
सलमान खान स्टाइलिश तो लगे हैं लेकिन उम्र अब उनके चेहरे के साथ-साथ बॉडी लैंग्युएज में भी झलकती है। कैटरीना कैफ जंचती हैं, जंची हैं। ‘तौलिया-एक्शन’ बढ़िया किया है उन्होंने।इमरान हाशमी अपने अब तक निभाए किरदारों सरीखे ही लगे हैं। रेवती को देखना सुखद रहा। कुमुद मिश्रा, रणवीर शौरी, सिमरन, आमिर बशीर, विशाल जेठवा, रिद्धि डोगरा, अनंत शर्मा जैसे बाकी कलाकारों ने अच्छा साथ निभाया लेकिन पूरी फिल्म में कोई भी कलाकार ऐसा नहीं दिखा जो उचक कर सामने आया हो या जिसने दर्शकों के ज़ेहन में घर बनाया हो। यह कमी किरदारों को लिखने वालों की ज़्यादा है। लोकेशन प्रभावी हैं, कैमरा वर्क शानदार, एक्शन मसालेदार और गीत-संगीत औसत।
पाकिस्तान में शांति बहाल करने की कोशिशों में लगे टाईगर और ज़ोया के सफल होने के बाद पाकिस्तानी बच्चों से ‘जन गण मन…’ की धुन बजवा कर फिल्म भावुक करती है। इन दोनों मुल्कों में शांति रहे, यह भला कौन नहीं चाहेगा लेकिन ‘टाईगर’ सीरिज़ की फिल्में जिस दिशा में चल रही हैं उसे देखते हुए तो लगता है कि एक दिन टाईगर और ज़ोया ही अखंड भारत बनवा देंगे।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-12 November, 2023 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
रिव्यु का शीर्षक पढ़कर हंसी आयी लेकिन अंत पढ़कर लाफा कि सही लिखा गया है…
इस सीरीज़ की फ़िल्म शायद अपने तय बिजनेस प्लान के बराबर बिजनिस भी कर सकती है क्योंकि सल्लू और SRK दोनों जो हैँ… एक टाइगर और दूसरा पठान…. इसके चलते इनको दोनों क़े फैन्स तो ज़रूर ही मिल जायेंगे और क्युंकि कोई फ़िल्म रीलीज़ नहीं हुई है तो बॉक्स ऑफिस पर चल निकले….
लगता है तेलिया एक्शन वाला सीन फ़िल्म में तड़का लगाने क़े लिए किया गया है… शायद जिसकी ज़रूरत न थी…
Film ka title accha business krega
Agr content pe thoda or socha jata to accha hota