• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-आऊटर पर खड़ी ‘द गर्ल ऑन द ट्रेन’

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/03/02
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-आऊटर पर खड़ी ‘द गर्ल ऑन द ट्रेन’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

रोज़ाना ट्रेन से सफर करने वाली एक वकील खिड़की में से एक घर को, उस घर में रह रहे जोड़े को, उनकी खुशहाली को देखती है। उसे अच्छा लगता है उन्हें सुखी देख कर। अपने बीते दिन याद आते हैं उसे। एक दिन वह उस लड़की के साथ किसी दूसरे मर्द को देखती है तो भड़क उठती है और शाम को उसे समझाने के इरादे से उसके घर जा पहुंचती है। इस मुलाकात के बाद उस लड़की की लाश मिलती है और उसके कत्ल का इल्ज़ाम इस वकील पर आता है जिसे भूलने की बीमारी है और यह भी याद नहीं कि असल में उस शाम को हुआ क्या था। अब पुलिस उसके पीछे है और एक अनजान आदमी भी उसे ब्लैकमेल कर रहा है जिसने कत्ल होते हुए देखा था। आखिर सच क्या है? क्यों हुआ यह कत्ल? किसने किया?

नेटफ्लिक्स पर आई यह फिल्म ‘द गर्ल ऑन द ट्रेन’ असल में 2016 में आई हॉलीवुड की इसी नाम की फिल्म का रीमेक है और वो फिल्म भी उससे साल भर पहले आए इसी नाम के एक अंग्रेज़ी उपन्यास पर आधारित थी जो खासा हिट हुआ था। तो, एक हिट उपन्यास पर बनी एक हिट फिल्म का यह हिन्दी रीमेक भी ज़ोरदार होगा ही? भई, कहानी ही इतनी ज़ोरदार है। अगर आप भी यही सोच रहे हैं तो ज़रा रुकिए, क्योंकि हर चमकती चीज़ अगर सोना होने लगे तो फिर पीतल को कौन पूछेगा।

अपने कलेवर से एक थ्रिलर और मर्डर-मिस्ट्री लगने वाली यह फिल्म अपने फ्लेवर से असल में एक सायक्लोजिकल, इमोशनल फिल्म है। इसमें पति-पत्नी का अलगाव है, तलाक है, तलाक के बाद की पीड़ा है, शराब की लत है, उस लत से उपजी जटिलताएं हैं, भूलने की बीमारी है, उस बीमारी से आई बेबसी है, धोखा है, रिश्तों का छल है, अपने फर्ज़ से बेईमानी है, लालच है, बदला है… और भी न जाने-जाने क्या-क्या है। बावजूद इसके इस फिल्म में वो वाला आनंद नहीं है जो आपको दो घंटे तक कस कर जकड़े रहे और जब फिल्म खत्म हो तो आपको झकझोरे या सुकून दे।

असल में इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसे भारतीय परिवेश में नहीं बुना गया। अंग्रेजी फिल्म में लड़की अमेरिका में रहती थी और इस हिन्दी फिल्म में वह लंदन में रह रही है। क्यों भई? इस कहानी को भारत के किसी शहर में फिट नहीं किया जा सकता था क्या? चलिए, लंदन ही सही। लेकिन वहां भी तो आप कहानी के सिरों को रोचकता के रंगों में नहीं डुबो पाए। वकील साल भर से खाली बैठी है तो वह रोज़ाना सुबह एक ही ट्रेन से कहां जाती है और शाम को एक ही ट्रेन से कहां से लौटती है? कत्ल का रहस्य बुना तो अच्छा गया लेकिन जब वह खुला तो सच्चाई निराश कर गई कि अरे, यह तो बड़ी ही पिलपिली वजह निकली। किरदार भी कायदे के नहीं गढ़े गए। कोई, कभी भी, किसी से भी चक्कर क्यों चला रहा है? हर कोई मनोचिकित्सक के पास क्यों जा रहा है? सच तो यह है कि इस फिल्म को देख कर खुद के मनोरोगी होने की फीलिंग आने लगती है। कसूर निर्देशक ऋभु दासगुप्ता का है जिन्होंने कहानी तो बढ़िया ली लेकिन वह उसका आवरण उतना बढ़िया नहीं बना पाए।

परिणीति चोपड़ा ने अच्छा काम किया लेकिन उनके किरदार को दमदार बना कर उनसे बेहतर काम निकलवाया जा सकता था। उनके पति के किरदार में अविनाश तिवारी लगातार निखरते जा रहे हैं। अदिति राव हैदरी और कीर्ति कुलहरी जैसी शानदार अभिनेत्रियों को यूं बर्बाद होते देखना दुखद है। गाने ठीक-ठाक रहे, कैमरा अच्छा और लोकेशन को क्या चाटना जब इस लोकेशन ने कहानी का असर ही कम कर दिया हो। कुल मिला कर यह फिल्म उस ट्रेन की तरह है जो अपने प्लेटफॉर्म पर पहुंचने से ठीक पहले आऊटर पर आकर थम गई हो।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-26 February, 2021

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Aditi Raoavinash tiwarykirti kulhariNetflixParineeti Chopraribhu dasguptaThe Girl On The Train Reviewद गर्ल ऑन द ट्रेन’
ADVERTISEMENT
Previous Post

डॉक्यूमेंट्री रिव्यू-वाजिब सवाल उठाती ‘वंदे भारत-होप टू सर्वाइवल’

Next Post

रिव्यू-‘रूही’ डराटी कम है, हंसाटी भी कम है

Related Posts

वेब-रिव्यू : मार्निंग शो वाले सिनेमा का सेलिब्रेशन ‘मरते दम तक’
CineYatra

वेब-रिव्यू : मार्निंग शो वाले सिनेमा का सेलिब्रेशन ‘मरते दम तक’

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’
CineYatra

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’
CineYatra

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’
CineYatra

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’
CineYatra

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं

Next Post
रिव्यू-‘रूही’ डराटी कम है, हंसाटी भी कम है

रिव्यू-‘रूही’ डराटी कम है, हंसाटी भी कम है

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.