-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
एक शरीफ आदमी ने मजबूरी में एक गुंडे को मारा। गुंडे का बॉस उस शरीफ आदमी के पीछे पड़ गया। बॉस के विरोधी गुट वाले नेता ने उस शरीफ आदमी को अपनी छत्रछाया में ले लिया। शरीफ आदमी अब गुंडा बन गया, अपना गैंग बना लिया। पर जब उसके आका को उससे खतरा महसूस हुआ तो उसने उसे हटाने के लिए दूसरे लोग आगे कर दिए।
कहानी ‘वास्तव’ जैसी लग रही है न…? लगने दीजिए, हमें क्या। फिल्म वालों के पास जब कुछ ओरिजनल नहीं होता तो यूं चोरी-चकारी का माल ही परोसा जाता है। हद तो यह कि संजय दत्त वाली ‘वास्तव’ के डायरेक्टर महेश मांजरेकर थे तो इस फिल्म में महेश नेता की भूमिका में हैं। लेकिन फिल्म में नया क्या है? सच कहूं तो कुछ नहीं। न कुछ नया है, न अनोखा, न स्तरीय और न ही कुछ खास मनोरंजक। तो फिर क्यों देखें इस फिल्म को?
संजय गुप्ता की कहानी साधारण है। इस साधारण कहानी को इसके स्क्रीनप्ले ने रोचक बनाया है जिससे कहानी ‘चलती हुई’ लगती है, भले ही उसमें छेद बहुत सारे हों और इसके नाम का ‘सागा’ किसी को सरसों के साग का भाई लग रहा हो। संजय गुप्ता के निर्देशन ने भी इसे मसालेदार बनाने का काम किया है और इसी वजह से यह फिल्म हल्की व कमज़ोर होने के बावजूद बोर नहीं करती और ज़रूरत भर मनोरंजन भी देती है। हां, इससे बहुत ज़्यादा उम्मीद भी नहीं लगानी चाहिए। फिल्म अभी थिएटरों में है, जल्द ही किसी ओ.टी.टी. पर भी होगी।
जॉन अब्राहम ऐसी भूमिकाएं कर चुके हैं, इसलिए अगर बहुत जमते नहीं हैं तो खिजाते भी नहीं हैं। इमरान हाशमी का किरदार थोड़ा और भारी होता तो उनकी पर्दे पर मौजूदगी ज़्यादा मज़ा दे पाती। यही बात महेश मांजरेकर, अमोल गुप्ते, रोहित रॉय, शाद रंधावा, गुलशन ग्रोवर के बारे में भी कही जा सकती है। हल्की कहानी के हल्के किरदार बन कर रह गए ये सारे। समीर सोनी, अंजना सुखानी जंचे। काजल अग्रवाल फिल्म की ‘हीरोइन’ हैं, लेकिन एकदम शो-पीस नुमा। प्रतीक बब्बर को देख कर अब तरस आता है। मन होता है कि उनसे पूछें-कुछ लेते क्यों नहीं? लो, फैसला लो, कभी एक्टिंग न करने का फैसला, राहत मिले, आपको और हम दर्शकों को भी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-19 March, 2021 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)