-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
चाहें तो इस बात पर विलाप कर लें या फिर अचरज, लेकिन सच यही है कि आधुनिक भारत के इतिहास के ढेरों ऐसे पन्ने हैं जिन्हें नई पीढ़ी से न जाने क्यों छुपा कर रखा गया है। 1965 के भारत-पाक युद्ध की भला कितनी बातें हैं जो हमें पढ़ाई-बताई गईं? ऐसे में कोई उपन्यास, फिल्म या वेब-सीरिज़ जो भी सच्चा-झूठा किस्सा सुनाएगी, लोग तो उसे ही असलियत मान लेंगे न? ज़ी-5 पर आई यह वेब-सीरिज़ ‘मुखबिर-द स्टोरी ऑफ ए स्पाइ’ इसी सच्ची-झूठी असलियत को बताने आई है, एक कहानी के तौर पर, कुछ किस्सों की शक्ल में।
कश्मीर का भारत में होना शुरू से ही पाकिस्तान की नज़रों में खटकता रहा है। साठ के दशक में उसने कश्मीरी मुसलमानों को भड़काने के लिए ऑपरेशन जिब्राल्टर चलाया। वह ऑपरेशन फेल हुआ तो पाकिस्तान ने जम्मू के करीब अखनूर में भारी सेना भेज दी। अब अखनूर ऐसी जगह नहीं है जहां हमले की आशंका के बारे में भारत सोच पाता। लेकिन पाकिस्तान के अंदर से अपने किसी मुखबिर ने खबर भेज दी थी और अखनूर में पाकिस्तान का जम कर स्वागत हुआ था। यह सीरिज़ भारत के उन्हीं मुखबिरों, उन्हीं जासूसों की कहानी कहती है जो उस तरफ अपनी जान जोखिम में डाल कर इस तरफ खबरें भेज रहे थे।
यह सीरिज़ उन मलय कृष्ण धर के उपन्यास ‘मिशन टू पाकिस्तान-एक इंटेलिजैंट एजेंट इन पाकिस्तान’ पर आधारित है जो खुद भारत की खुफिया सेवा से जुड़े रहे और जिन्होंने अपने अनुभवों, देखे वाकयों और सुने किस्सों को आधार बना कर कई काल्पनिक कहानियां लिखीं। कहने को यह भी एक काल्पनिक कहानी है लेकिन इसमें दिखाई गई घटनाओं और बताए गए किरदारों का उल्लेख इतिहास में मिलता है और इसीलिए इसे देखते समय आप उन घटनाओं व किरदारों को समझ पाते हैं। यह इसकी पहली और बड़ी सफलता है।
कहानी बताती है कि 1962 के युद्ध में मुंह की खाने के बाद भारत का खुफिया ब्यूरो (खुफिया एजेंसी रॉ 1968 में बनी थी) अब तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। एक जासूस को पाकिस्तान जाने के लिए राज़ी किया जाता है जो थोड़े ही समय में वहां अपनी पकड़ बना लेता है और ऐसी खबरें भेजता है जिससे भारत को एक्शन लेने में आसानी होती है। लेकिन इस दौरान उसकी जान भी जोखिम में पड़ जाती है। घटनाएं कैसे उसे लपेटती हैं, कैसे वह उनसे निबटता है, कैसे वह देश की मदद करता है, कैसे वह अपने जज़्बातों पर काबू रखता है, यह कहानी तफ्सील से बताती है।
लेखकों की टीम ने बड़े ही कायदे से इस कहानी को विस्तार दिया है। हालांकि बहुत जगह चीज़ें सहूलियत के हिसाब से होती नज़र आती हैं लेकिन लेखकों की कोशिश रही है कि दर्शक को कुछ खटके नहीं। अलबत्ता कहीं-कहीं कहानी का प्रवाह अटका ज़रूर है। हर सीरिज़ को आठ एपिसोड तक खींचने की फिल्मकारों की ज़िद बेमतलब है। यह सीरिज़ कई जगह काफी धीमी और लंबी लगती है। इसे कसा जाना चाहिए था। कहीं-कहीं संवाद सुनने के लिए ज़ोर भी लगाना पड़ता है। खास बात यह भी है कि इस कहानी में जासूसी या मुखबिरी का तनाव कई बार ऐसा चरम छूता है कि मन बेचैन होने लगता है। साथ ही इसमें आपसी रिश्तों और भावनाओं का भी ज़बर्दस्त ताना-बाना है जो दिल छूता है, कचोटता है। इसे देखते हुए कई जगह मेघना गुलज़ार की ‘राज़ी’ (खुरपेंच राहों पर ‘राज़ी’ सफर) याद आती है। यह इसकी एक और बड़ी सफलता है।
‘स्पेशल ऑप्स’ (रोमांच की पूरी खुराक ‘स्पेशल ऑप्स’ में) वाले शिवम नायर और ‘कौन प्रवीण तांबे’ (मैदान न छोड़ने की सीख देता ‘कौन प्रवीण तांबे?’) वाले जयप्रद देसाई के सधे हुए निर्देशन में यह सीरिज़ असरदार बन पड़ी है। इन्होंने जो लोकेशन चुनी हैं, जिस तरह से सैट्स तैयार किए गए हैं, जिस किस्म की गाड़ियों, पोशाकों, मेकअप, गैटअप आदि का इस्तेमाल हुआ है, वह देखने वालों को सचमुच 1965 के वक्त में ले जाता है। कुछ गाने भी हैं और लगभग सभी बहुत अच्छे हैं। ज़ेन खान दुर्रानी ने अपने काम को बेहद शिद्दत के साथ अंजाम दिया है। प्रकाश राज, आदिल हुसैन, करण ओबरॉय, बरखा बिष्ट, ज़ोया अफरोज़, हर्ष छाया, सत्यदीप मिश्रा, दिलीप शंकर, अतुल कुमार, सुनील शानबाग, उज्ज्वल चोपड़ा, वीना मेहता, नताशा सिन्हा, विजय कश्यप, अवंतिका अकेरकर जैसे तमाम कलाकारों ने दम भर काम किया है।
दूसरे मुल्क में छुप कर रह रहे जासूसों के कारनामों के अलावा यह सीरिज़ उनके अंतस में भी झांकती है। बताती है कि पैने दिमाग और सख्त जिस्म वाले ये लोग भी आखिर होते तो इंसान ही हैं। ऐसे ही कुछ अड़ियल, पागल लोगों की कहानी कहती है यह, जिनके दिमाग में सिर्फ देश और देशभक्ति रहती है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि सीरिज़ कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-11 November, 2022 on Zee5.
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Superb 👌
Thanks
वाकई आप जबरदस्त लिखते है
धन्यवाद
वाह!! बेहतरीन रिव्यू जिस तरह से आप शब्दों का चयन करते हैं लिखते हुए वह काबिल ए तारीफ है! आरंभ से अंत तक एक प्रवाह बना रहता है और उस मे व्यक्ति लगातार बहता रहता है! राजी एक बहुत ही शानदार फिल्म थी जो हमेशा याद रहेगी! हर लिहाज से, आपकी समीक्षा पढ़ कर लगा कि ये फिल्म भी उसी श्रृंखला से है ऐसी ही अच्छा कहानियों से दर्शको की भूख मिटती है धन्यवाद
शुक्रिया
शुक्रिया 💐