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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-मैदान न छोड़ने की सीख देता ‘कौन प्रवीण तांबे?’

Deepak Dua by Deepak Dua
2022/04/03
in फिल्म/वेब रिव्यू
7
रिव्यू-मैदान न छोड़ने की सीख देता ‘कौन प्रवीण तांबे?’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

क्या आप क्रिकेटर प्रवीण तांबे को जानते हैं? मुमकिन है इस सवाल पर आप में से बहुत सारे लोग यही पूछ बैठें-कौन प्रवीण तांबे…? डिज़्नी हॉटस्टार पर आई यह फिल्म आपको यही बताने आई है।

प्रवीण तांबे दरअसल मुंबई के एक ऐसे क्रिकेटर हैं जो बचपन से रणजी टीम में खेलने की तमन्ना लिए संघर्ष करते रहे। इस दौरान उन्होंने घर चलाने के लिए ढेरों नौकरियां कीं, तंगी और अपमान भी झेला लेकिन क्रिकेट खेलना नहीं छोड़ा। आखिर 2013 में 41 की उम्र में वह आई.पी.एल. के लिए चुने गए और उसके बाद रणजी के लिए भी। यह फिल्म उनके उसी संघर्ष और हार न मानने के ज़ज्बे को दिखाती है-पूरे जज़्बात के साथ।

एक ऐसी बायोपिक फिल्म जिसका नायक समाज का कोई प्रख्यात ‘नायक’ न होकर आम इंसान हो, जिसे भरपूर शोहरत और ‘सुपरमैन’ का ओहदा न मिला हो, उस पर फिल्म बनाने की सोचना और उसे पूरी ईमानदारी से बना लेना एक ऐसा साहसिक काम है जिसके लिए इस फिल्म की पूरी टीम बधाई की हकदार हो जाती है। बधाई लेखकों कपिल व किरण को, तालियां निर्देशक जयप्रद देसाई के लिए।

एक खेल-पत्रकार के नैरेशन के ज़रिए प्रवीण तांबे की कहानी को हमें बताते-दिखलाते हुए यह फिल्म असल में हमें एक आम इंसान के उस संघर्षपूर्ण जीवन में झांकने का अवसर देती है जिसमें वह अपने कतर्व्यों का निर्वाह करते हुए भी न तो सपने देखना छोड़ता है और न ही उन सपनों को सच करने की कोशिशों से मुंह मोड़ता है। आप चाहें तो इस फिल्म से मैदान न छोड़ने की सीख हासिल कर सकते हैं।

यह फिल्म अपने कलाकारों के बेहद उम्दा अभिनय के लिए भी देखी जानी चाहिए। श्रेयस तलपड़े ने इस किरदार को इस कदर प्रभावी ढंग से निभाया है कि उनकी जगह किसी और अभिनेता की इस रोल में कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनकी पत्नी बनी अंजलि पाटिल बेहद विश्वसनीय और सराहनीय अभिनय करती हैं। इन दोनों के असल में भी मराठी होने के कारण ये अपने किरदारों से भरपूर न्याय कर पाए हैं। आशीष विद्यार्थी अभिनय का पाठ पढ़ाते हैं तो प्रमव्रत चटर्जी भी जंचते हैं। छाया कदम, अरुण नलावड़े, वरुण वर्मा आदि भी खूब साथ निभाते हैं। आरिफ ज़कारिया को ज़्यादा प्रभावी रोल मिलना चाहिए था। लोकेशन और कैमरा फिल्म के असर को बढ़ाने में कामयाब रहे हैं।

यह फिल्म बहुत ज़्यादा उत्तेजना नहीं फैलाती है, न ही यह बहुत तीखी, मारक या पैनी है। लेकिन इसे देखते हुए आपके मन में उत्सुकता, दिल में उम्मीद और होठों पर मुस्कान लगातार बनी रहती है। प्रवीण के परिवार और ऑफिस के माहौल के ज़रिए यह मनोरंजन प्रदान करने का महती कार्य भी बखूबी करती है। अंत में यह आपकी आंखों को हल्का-सा नम करते हुए आपसे कुछ एक तालियां भी बटोर ले जाती है। इसे लिखने-बनाने वालों की फिर से तारीफ करने का मन हो रहा है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-01 April, 2022

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anjali patilarun nalawadeashish vidyarathichhaya kadamjayprad desaikapil sawantkaun pravin tambe reviewkiran yadnyopavitprambrata chatterjeepravin tambeShreyas Talpadevaroon varma
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Comments 7

  1. Subhash Sehgal says:
    10 months ago

    Very well reviewed.
    Curious to see the film.

    Reply
    • CineYatra says:
      10 months ago

      धन्यवाद सर… आपसे तारीफ पाना सौभाग्य है…

      Reply
  2. Dr. Renu Goel says:
    10 months ago

    Very nyc review and I will watch it

    Reply
    • CineYatra says:
      10 months ago

      Thanks

      Reply
  3. Sunita Tewari says:
    10 months ago

    आप फिल्म रिव्यू केरते वक्त भी इतनी सरल भाषा में सब समझा देते हैं। बहुत सुंदर। अब तो फिल्म देखने जाना ही होगा।

    Reply
    • CineYatra says:
      10 months ago

      बहुत धन्यवाद…

      Reply
  4. Shilpi rastogi says:
    10 months ago

    पुरानी कहावत “मन के जीते जीत मन के हारे हार” को चरितार्थ करती फिल्म है, यह आपने बिलकुल सटीक कहा कि श्रैयस तलपड़े से बेहतर कोई और अभिनेता प्रवीण तांबे की भूमिका से जस्टिस नहीं कर पाता। जिंदगी के उतार चढ़ाव को झेलते हुए सपनों को पूरा करने की चाह यह बता जाती है कि लीजेंड पैदा नहीं होते वो अपने प्रयासों और लगन व आत्म बल के दम पर ही लीजेंड्स बनते हैं 👍👍

    Reply

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