-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
पांच बच्चे हैं। ओह सॉरी, पांच बच्चों के भूत हैं। नाचते थे, नाचना चाहते हैं, लेकिन भूत भला कैसे नाचें? सो ये लोग पांच बड़ों को पकड़ते हैं कि तुम दुनिया के सामने नाचो, हम तुम्हारे भीतर नाचेंगे। इसके बाद पांच बड़े नाचे, लेकिन ख्वाहिश पूरी हुई उन पांच बच्चों की। मगर नाम किस का हुआ?
बस, इतनी-सी ही कहानी है इस फिल्म की। फिल्म के पोस्टर, ट्रेलर से लग ही रहा था कि यह एक भूतिया कॉमेडी होगी। लेकिन जब देखा कि इसे लिखने वाले वही रवि शंकरन और जसविंदर सिंह बाठ हैं जिन्होंने पिछले हफ्ते आई एक भूतिया कॉमेडी ‘फोन भूत’ लिखी थी तो झटका लगा। फिर जब यह फिल्म शुरू हुई तो इसका शुरूआती हिस्सा देख कर बहुत बड़ा झटका लगा और मन हुआ कि ‘फोन भूत’ के रिव्यू (तुच्छ इंसानों के लिए नहीं बनी है ‘फोन भूत’) में दी गई सलाह इन्हें फिर दे दूं कि भाई लोगों, कुछ दिन के लिए कलम छोड़ कर कोई लेखनाश्रम जॉइन कर लो। लेकिन सब्र का फल मीठा निकला और इंटरवल के बाद इस फिल्म ने न सिर्फ सही रफ्तार बल्कि सही दिशा भी पकड़ी और अंत आते-आते इमोशनल करके यह दिल भी जीत ले गई।
दरअसल इन दोनों लेखकों के साथ दिक्कत यह नज़र आती है कि एक तो इन्हें किरदारों को सही तरह से आयाम देने नहीं आते और दूजे इन्हें यह नहीं पता चलता कि जो चीज़ें ये दर्शकों को डराने के लिए डालते हैं, वे हंसाने लगती हैं और जिन चीज़ों से ये दर्शकों को हंसाना चाहते हैं, वे उन्हें खिजाने लगती हैं। इसलिए लेखनाश्रम भले ही न जाएं, लेकिन आत्मचिंतन करते हुए इन दोनों को हॉरर और कॉमेडी से तो तौबा कर ही लेनी चाहिए। हां, इमोशनल लेखन ये लोग अच्छा कर लेते हैं।
मशहूर कोरियोग्राफर जोड़ी बोस्को-सीज़र के बोस्को मार्टिस की लिखी यह कहानी रेमो डिसूज़ा की ‘ए बी सी डी’ वाली डांस फिल्मों जैसी ही है। डांस शो, कुछ टीमें, उनके मुकाबले, ईर्ष्या, साज़िशें, भावनाएं, हार-जीत जैसे वही तमाम तत्व इस कहानी में भी हैं। नएपन के तौर पर भूत वाला एंगल है जो सही भी लगता है। लेकिन कहानी का शुरूआती कच्चापन इसे कमज़ोर बनाता है। बतौर डायरेक्टर बोस्को ने साधारण ही काम किया है। इंटरवल के बाद ही उनके काम की सराहना करने का मन होता है और अंत में तालियां बजाने का भी। बेहतर होता कि इसकी स्क्रिप्ट पर जम कर काम करवाने के बाद इसे किसी सधे हुए निर्देशक से बनवाया जाता।
रही-सही कसर इस फिल्म के कम नामी कलाकारों ने पूरी कर दी। बस एक निकिता दत्ता प्यारी लगीं। बाकी सब बड़े, छोटे कलाकार साधारण ही रहे। अलबत्ता कहीं-कहीं छोटे कलाकार ज़्यादा असरदार रहे। कुछ नामी, जमे हुए लोगों को लिया जाना चाहिए था। एक डांस-म्यूज़िकल फिल्म में जिस स्तर का उम्दा, कुर्सीतोड़ गीत-संगीत होना चाहिए था, उसकी कमी के चलते यह फिल्म उस मोर्चे पर भी हल्की ही रही। स्पेशल इफैक्ट्स साधारण दिखे।
इंटरवल तक बेहद हल्की लगती रही इस फिल्म का बाद में ताकतवर हो जाना सुखद लगता है। बच्चों को यह फिल्म ज़्यादा पसंद आएगी। लेकिन दिक्कत यही है कि इस फिल्म से कोई बड़ा या गहरा संदेश नहीं मिलता, सिवाय इसके कि ड्राइविंग करते समय नज़रें और ध्यान सड़क पर रखें, बस।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-11 November, 2022 in theaters.
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Bhutia dance accha lga
Or usse accha apka review
शुक्रिया
जाहिर सी बात है कि हर बार की तरह आपके रिव्यू को पढ़ने के बाद कुछ न कुछ नया और गहन मिलता है, चाहे फिल्म देखने पर मिले या ना मिले और ये सिर्फ और सिर्फ आपके हर विषय पर अनुभव और उम्दा सोच की पकड़ और लेखन से ही संभव होता है। 🙏🙏
धन्यवाद भाई जी
बहुत सही आकलन किया है आपने सटीक विश्लेषण दीपक जी👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
धन्यवाद
नन्हे दर्शको को ध्यान में रख कर बहुत कम फिल्में आती हैं और अक्सर भुला दी जाती हैं और उन्हें ज्यादा दर्शक भी नहीं मिल पाते कुछेक फिल्मों को अगर छोड़ दिया जाए तो बॉक्स ऑफिस पर भी कम ही उम्मीद जगाती हैं पर कुछ नया देखने के हिसाब से ये फिल्म कुछ नयापन लिए नजर आती है वैसे भी इसे एक बार देखा जा सकता है ताकि बचपन की मिठास महसूस हो सके एक अच्छे लेखक की ये सबसे बड़ी सफलता है कि वह सबकुछ महसूस कर सकता है वरना ये रिव्यू बोरिंग भी हो सकता था!
धन्यवाद