• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-सच और साहस की कहानी ‘लगान’

Deepak Dua by Deepak Dua
2001/06/15
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-सच और साहस की कहानी ‘लगान’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

कौन कहता है कि अपने यहां के किसी लेखक को नए विचार नहीं सूझते? कौन कहता है कि हमारी फिल्में कुछ अलग नहीं परोस सकतीं? कौन कहता है कि अनछुए विषयों पर कायदे की मनोरंजक फिल्म नहीं बनाई जा सकतीं? ‘लगान’ देखिए, आपको इन सब सवालों का जवाब मिल जाएगा। यह फिल्म आने से पहले आमिर खान की ‘अति परफैक्शनिस्टता’ को लेकर जो शंका जताई जा रही थी कि कहीं वो इस फिल्म को ले ही न डूबे, वो निर्मूल साबित हुई है और इस फिल्म का नाम हमारे सिनेमाई इतिहास में लंबे समय तक चमक कर दूसरों को भी राह दिखाता रहेगा।

सन् 1893 में मध्य भारत के एक छोटे से गांव का आम किसान भुवन (आमिर खान) एक सनकी अंग्रेज़ कप्तान रसेल (पॉल ब्लैकथोर्न) की इस चुनौती को स्वीकार कर लेता है कि यदि वो अंग्रेज़ों को उनके खेल क्रिकेट में नहीं हरा पाया तो पूरा प्रांत तिगुना लगान भरेगा। भुवन की जीत पर अगले तीन बरस के लगान के माफ होने का वादा अंग्रेज़ कप्तान करता है। एक बचकानी चुनौती से शुरू हुआ यह खेल धीरे-धीरे एक जन आंदोलन का रूप ले लेता है और अंत में भुवन व उसके साथी अंग्रेज़ों को हरा देते हैं।

पहली नज़र में सुनने वालों को कहानी में बचकानापन लग सकता है। लेकिन यह बात तय है कि ऐसी कहानी आज तक अपनी किसी फिल्म में नहीं आई है और न ही ऐसी फिल्म बनाने का साहस ही कोई कर पाया है। सन् 1893 में अंग्रेज़ी हुकूमत का भारत के राजाओं पर कस चुका शिकंजा, उस दौर के ग्रामीण जीवन, अंग्रेज़ी शान-शौकत के अलावा फिल्म कई छोटे-छोटे मुद्दों पर भी ध्यान खींचती है। लेकिन काफी लंबी इस फिल्म में कहने भर को भी एक सीन, एक संवाद या एक पात्र ऐसा नहीं है जो अपनी जगह पर फिट न नज़र आया हो।

अवधी उच्चारण वाले के.पी. सक्सेना के गंवई संवाद, जावेद अख्तर के गीत, ए.आर. रहमान का संगीत, गांव का सैट, वेश-भूषा, चरित्र-चित्रण, ऐसी एक-एक चीज़ को बारीकी से गढ़ा गया है और इस सबके लिए एक संवेदनशील निर्माता के तौर पर आमिर बधाई के पात्र हैं। धारावाहिक ‘अमानत’ की डिंकी यानी ग्रेसी सिंह का काम काफी अच्छा रहा। उसी का ही क्यों, फिल्म में सभी कलाकारों ने अपनी सर्वश्रेष्ठ परफॉर्मेंस दी है जिनमें ब्रिटिश कलाकार भी शामिल हैं। अभी तक अपने माथे पर ‘पहला नशा’ और ‘बाज़ी’ की नाकामी का धब्बा लिए घूम रहे निर्देशक आशुतोष गोवारीकर के लिए ‘लगान’ सफलता का जगमगाता सेहरा लाई है।

‘‘सच और साहस है जिसके मन में, अंत में जीत उसी की रहे’’-इस संवाद की थीम पर टिकी यह फिल्म आशुतोष और आमिर के सच व साहस का प्रतिफल है। देख डालिए इसे, ऐसी फिल्में कभी-कभार ही बनती हैं।

अपनी रेटिंग-साढ़े चार स्टार

Release Date-15 June, 2001

(नोट-‘लगान’ की मेरी यह समीक्षा उस दौर की लोकप्रिय फिल्म मासिक पत्रिका ‘चित्रलेखा’ के मेरे कॉलम ‘इस माह के शुक्रवार’ में छपी थी।)

(15 जून, 2001 को दिल्ली के ‘शीला’ सिनेमाघर में ‘लगान’ देखने और उस पर लिखी सत्यजित भटकल की अंग्रेज़ी किताब ‘द स्पिरिट ऑफ लगान’ के वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज के किए हिन्दी अनुवाद ‘ऐसे बनी लगान’ के बारे में मेरा आलेख पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: a.k. hangalA.R. Rehmanaamir khanaditya lakhiyaakhilendra mishraamin hajeeamitabh bachchananupam shyamAshutosh Gowarikarchitralekhadayashankar pandeygracy singhjaved akhtarjaved khank.p. saxenakulbhushan kharbandakumar daveLagaanLagaan reviewpaul blackthornepradeep singh rawatrachel shelleyraghubir yadavraj zutshirajender guptarajesh viveksanjay daymashri vallabh vyassuhasini mulayyashpal sharmaलगान
ADVERTISEMENT
Previous Post

ओल्ड रिव्यू-मनोरंजक और दमदार ‘गदर-एक प्रेम कथा’

Next Post

ओल्ड रिव्यू-देस की बात, लोगों की बात ‘स्वदेस’ में

Related Posts

रिव्यू-दुनिया के वजूद को बचाने का आखिरी ‘मिशन इम्पॉसिबल’
CineYatra

रिव्यू-दुनिया के वजूद को बचाने का आखिरी ‘मिशन इम्पॉसिबल’

रिव्यू-सिंगल शॉट में कमाल करती ‘कृष्णा अर्जुन’
CineYatra

रिव्यू-सिंगल शॉट में कमाल करती ‘कृष्णा अर्जुन’

रिव्यू-चिकन करी का मज़ा ‘नाले राजा कोली माजा’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-चिकन करी का मज़ा ‘नाले राजा कोली माजा’

रिव्यू-मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में
CineYatra

रिव्यू-मज़ा, मस्ती, मैसेज ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में

वेब-रिव्यू : झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की
CineYatra

वेब-रिव्यू : झोला छाप लिखाई ‘ग्राम चिकित्सालय’ की

रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’
CineYatra

रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’

Next Post
ओल्ड रिव्यू-देस की बात, लोगों की बात ‘स्वदेस’ में

ओल्ड रिव्यू-देस की बात, लोगों की बात ‘स्वदेस’ में

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment