-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में सीक्वेल फिल्में पहले से तय करके नहीं बनाई जातीं। अगर पहला पार्ट सही-से खिंच जाए तो उसी खांचे में, पहले इस्तेमाल किए गए तमाम फॉर्मूलों को दोहराते हुए अगला पार्ट खड़ा कर दिया जाता है। गोया कि पिछली बार दर्शकों ने भठूरे खाए थे तो इस बार पकौड़े क्यों खिलाए जाएं? तो लीजिए, अगला भठूरा तैयार है। गर्मागर्म खा लीजिए, ठंडा होने पर कहीं रबड़ न हो जाए।
पिछली वाली ‘खुदा हाफिज़’ करीब दो साल पहले तब आई थी जब सारे थिएटर महीनों से बंद थे और एंटरटेनमैंट के भूखे दर्शक ओ.टी.टी. पर आ रहे हर किस्म के मसाले को चटकारे लेकर पसंद कर रहे थे। ऐसे में डिज़्नी-हॉटस्टार पर आई वह फिल्म भी साधारण और औसत होने के बावजूद अच्छी-खासी पसंदगी पा गई थी। उस फिल्म में 2008 के लखनऊ में समीर और नरगिस ने खाड़ी के देश नोमान में नौकरी के लिए अर्जी डाली थी। नरगिस पहले चली गई थी और जाकर गायब हो गई थी। तब समीर ने अपनी पत्नी को ढूंढने और वापस लाने का मुश्किल काम किया था।
अब इस फिल्म ‘खुदा हाफिज़-चैप्टर-2-अग्निपरीक्षा’ में 2011 के लखनऊ में समीर और नरगिस के रिश्ते ठंडे हैं। नरगिस नोमान में हुए जुल्म को याद करके डिप्रेशन की दवाइयां खा रही है। ये लोग एक पांच साल की बच्ची को गोद लेते हैं जो कुछ आवारा लड़कों की बुरी हरकत का शिकार हो जाती है। अब समीर उन लड़कों को मौत के घाट उतारने निकल पड़ता है। उसके रास्ते में जो भी आता है, मारा जाता है।
पिछली वाली फिल्म में हीरो विद्युत जामवाल से एक्शन कम करवाया गया था और एक्टिंग ज़्यादा, जो उनसे हो नहीं पाई थी। इस वाली फिल्म में उनसे दोनों चीज़ें भरपूर करवाई गईं। एक्टिंग उनसे इस बार भी नहीं हो पाई क्योंकि बतौर अभिनेता उनकी रेंज बेहद सीमित है। भाव प्रदर्शित करते समय वह नाटकीय हो जाते हैं। हां, एक्शन उन्होंने जम कर किया है। इन फिल्मों में वह चूंकि एक आम आदमी के किरदार में हैं इसलिए उनसे उनका जाना-पहचाना मार्शल आर्ट वाला एक्शन कराने की बजाय ढिशुम-ढिशुम वाला फिल्मी एक्शन करवाया गया है जो दर्शकों को भाता है।
जुल्म करने वाला किसी ताकतवर परिवार का है लेकिन जुल्म सहने वाले की मदद खुदा कर रहा है जिसके चलते वह जीतता भी है, किस्म की कहानियां अब साधारण हो चुकी हैं। शुरू में बेहद सुस्ती के साथ चलने वाली यह फिल्म लड़कियों के साथ हुई बदसलूकी के बाद कचोटती है और फिर एक्शन वाले फॉर्मूले को पकड़ कर रवां हो जाती है। विद्युत का काम यहीं अच्छा लगता है। शिवालिका ओबेरॉय बस खूबसूरत और प्यारी बन कर रह गई हैं। शीबा चड्ढा ओवर होने के बावजूद जंचीं। दिब्येंदु भट्टाचार्य, दानिश हुसैन, रिद्धि शर्मा, इश्तियाक खान व अन्य कलाकार अच्छे रहे। राजेश तैलंग के हिस्से में कुछ अच्छे सीन व संवाद आए जिन्हें उन्होंने गहराई से अंजाम दिया। आइसक्रीम वाले की भूमिका में बचन पचहरा प्रभावी रहे हैं । गीत-संगीत ठीक-ठाक रहा। फारुक कबीर का निर्देशन इस किस्म की फिल्मों के लिए उपयुक्त है। उनसे बड़े वादे करवाना सही नहीं होगा। एक्शन और कैमरा वर्क उम्दा है। फिल्म छोटे सैंटर्स, सिंगल-स्क्रीन थिएटर्स और मारधाड़ वाली फिल्में पसंद करने वाले दर्शकों के फ्लेवर की है, उन्हें भाएगी भी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-08 July, 2022
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
वाह!
धन्यवाद…
Yes, I had very hot Bhatura…. Thanks for hot – hot review….
शुक्रिया…
यानी लीड में हमें विद्युत, वरुण जैसे अभिनय हीन अभिनेता ही देखने को मिलेंगे, पहलवानी और अभिनय को अलग अलग प्लेटफार्म क्यों नहीं देते लोग