-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
कानून-व्यवस्थाहीन कोई जिला। बाहुबली विधायक। उसका दबंग भाई। बिकी और डरी हुई पुलिस। कोई एक निडर आदमी। उस पर अत्याचार। नए पुलिस अफसर का आगमन। जनता का जागना और खलनायकों का खात्मा… उफ्फ…! बस करो यार, कब तक वहीं बासा आटा घोल कर पिलाते रहोगे?
प्रकाश झा ने अपनी ही ‘गंगाजल’ की कहानी उठा कर बिना धोए-पोंछे, बस मामूली-सा बदल कर परोस दिया है। एक-एक सीन, एक-एक संवाद बासा-सा लगता है। अजय देवगन की जगह प्रियंका चोपड़ा हैं, तेजपुर की जगह बांकीपुर, साधु यादव और सुंदर यादव की जगह पर बबलू पांडेय और डबलू पांडेय, बाकी के किरदार और सैटअप भी पुराना ही है। नया है तो यह कि उस फिल्म में अपराधियों की आंखों में तेजाब डाला गया था जिसे गंगाजल का नाम दिया गया था और इस फिल्म में उन्हें फांसी दी गई है। पर इसके लिए फिल्म के नाम में ‘गंगाजल’ रखने की क्या जरूरत थी? अरे भई, पब्लिक को भी तो ललचाना है कि नहीं…? समझते नहीं न हैं आप…!
कहानी के बासेपन को छोड़ दें तो फिल्म में कोई कमी नहीं है। प्रकाश झा का डायेक्शन सधा हुआ है और उससे भी बढ़ कर उनकी एक्टिंग। सही मायने में इस फिल्म के हीरो झा खुद ही हैं। कहीं-कहीं तो वह नाना पाटेकर सरीखे जान पड़ते हैं। प्रियंका इस रोल में जंची हैं और कहीं-कहीं ‘सॉफ्ट’ लगने के बावजूद फिट रही हैं। कुछ सीन का मोह त्याग कर झा इस फिल्म की लंबाई थोड़ी कम कर पाते तो यह और ज्यादा मज़ा देती। मज़ा तो यह खैर अब भी दे रही है। सिंगल-स्क्रीन और छोटे सैंटर्स में सीटियां बजवाने की कुव्वत तो है इस फिल्म में। क्या हुआ जो माल बासी है और मसाले पुराने।
अपनी रेटिंग-ढाई स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-04 March, 2016
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)