-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
गुरुद्वारे में शबद-कीर्तन गाने वाले बाबा जी के बेटे के खून में गीत-संगीत है लेकिन वह अपने गांव से दिल्ली जाकर मशहूर हो गए एक नामी बिल्डर जैसा बनने का ख्वाब देखता है। जोड़-जुगाड़ से वह इस रास्ते पर कामयाबी पाने भी लगता है लेकिन तभी उसे अहसास होता है कि वह तो असल में संगीत के लिए बना है।
इस फिल्म का नायक बोलते हुए हकलाता है मगर जब वह गाता है तो उसकी हकलाहट आड़े नहीं आती। इस फिल्म की कहानी भी कुछ ऐसी है। फिल्म की कहानी में नयापन भी है और यह बढ़िया भी है। लेकिन दिक्कत इसे परोसने में आई है। कायदे से इसे नायक के म्यूज़िकल ट्रैक और उसकी संगीत-यात्रा पर ज़्यादा फोकस करना चाहिए था। यही कारण है कि बढ़िया होने के बावजूद यह फिल्म बीच-बीच में हकलाती-सी लगती है।
विक्की कौशल और मनीष चौधरी के किरदार और इन्हें निभाने में की गई इनकी मेहनत अच्छी लगती है। मोज़ेज़ सिंह का निर्देशन अच्छा है। फिल्म का संगीत ‘हटके’ किस्म का है। असल में यह पूरी फिल्म ही हटके है। मसालों से अलग कुछ देखने के शौकीन इससे निराश नहीं होंगे।
अपनी रेटिंग-ढाई स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-04 March, 2016
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)