-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
‘मैं सिर्फ अपना काम कर रही हूं, सर…!’
1986 का साल। राजेश खन्ना की फिल्मों की दीवानी एयर होस्टेस नीरजा भनोट अमेरिकी एयरलाइंस पैन एम की फ्लाइट में मुंबई से उड़ती है। बतौर हैड पर्सर यह उसकी पहली फ्लाइट है। कराची एयरपोर्ट पर जहाज कुछ देर के लिए रुकता है और कुछ आतंकवादी उसमें सवार हो जाते हैं। नीरजा खतरा भांप कर जहाज के पायलटों को सूचित कर देती है और वह भाग जाते हैं। झल्लाए-खिजाए आतंकवादियों की मौजूदगी में भी नीरजा को अपनी नहीं बल्कि अपने यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा की फिक्र है। उन्हें पानी देने के लिए वह उठती है और एक आतंकवादी द्वारा टोके जाने पर कहती है-‘मैं सिर्फ अपना काम कर रही हूं, सर…!’
सोचिए, क्या तो जीवट रहा होगा उस लड़की में जिसने अभी अपनी जिंदगी के 23 बरस भी पूरे नहीं किए। जो कुछ ही महीने पहले अपने पति के बुरे बर्ताव के चलते उसे छोड़ आई है। जिसे उसकी मां ने सिखाया है कि मुसीबत में अपनी रक्षा करो, दूसरों की नहीं। लेकिन जिसे ऐसे वक्त में याद आती है तो अपने पत्रकार पिता की बात-न गलत करो और न गलत सहो। इसीलिए वह वही करती है जो उसे सही लगता है। अंत में जब विमान का इमरजैंसी गेट खुलता है तब भी वह खुद पहले भागने की बजाय दूसरों को निकालती है।
5 सितंबर, 1986 को अपने यात्रियों को बचाते हुए मारी गई नीरजा भनोट की सच्ची कहानी पर बनी यह फिल्म किसी तरह का मनोरंजन नहीं करती है। इसे देखते हुए आपको न तो हंसी आती है, न गुदगुदी होती है और न ही कोई ऐसा मज़ा यह फिल्म देती है जिसके लिए हिन्दी फिल्में जानी जाती हैं। तो फिर इसे क्यों देखा जाए?
जवाब है-नीरजा के लिए। उन पलों को महसूस करने के लिए जो नीरजा और बाकी सबने उस फ्लाइट में गुजारे थे। नामी फैशन फोटोग्राफर अतुल कसबेकर इस फिल्म से निर्माता बने हैं और 14 साल पहले एक भुला दी गई फिल्म देने वाले राम माधवानी इसके डायरेक्टर हैं। फिल्म का सब्जैक्ट बेहद सूखा है लेकिन इन्होंने उसके साथ कोई समझौता नहीं किया है। साथ ही यह ख्याल भी रखा है कि फिल्म, फिल्म ही रहे, डॉक्यूमैंट्री न बन जाए।
फिल्म के कई दृश्य बेहद मार्मिक हैं। नीरजा की खबर पाने को बैचेन उसके माता-पिता फोन पर एक-दूसरे को जिस अंदाज़ में तसल्ली देते हैं, वह अद्भुत है। शबाना आज़मी और योगेंद्र टिक्कू ने इन किरदारों को निभाया भी कायदे से है। संगीतकार जोड़ी विशाल-शेखर वाले शेखर को पर्दे पर देखना अच्छा लगता है। काम तो हर कलाकार का इस कदर बढ़िया है कि लगता ही नहीं कि आप कोई फिल्म देख रहे हैं। डायरेक्टर ने पूरी फिल्म इस अंदाज़ और रफ्तार में बनाई है कि आप खुद को उसका हिस्सा महसूस करने लगते हैं। और इस बार तारीफ सोनम कपूर की भी। अक्सर अपने किरदारों और अपनी एक्टिंग के लिए आलोचनाएं झेलने वाली सोनम के कैरियर की यह अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। उन्हें देख कर लगता है कि नीरजा उन्हीं के जैसी रही होगी।
यह फिल्म मिस करने के लिए नहीं बनी है। सिनेमा के रुपहले पर्दे से उतरते सच को भीतर तक पहुचाती है यह फिल्म। काफी मुमकिन है इसे देखते हुए आपकी आंखें भीग जाएं या छलक भी पड़ें। मगर रोइएगा नहीं क्योंकि नीरजा जाते-जाते यही कह गई थी-‘पुष्पा, आई हेट टियर्स रे…!’
अपनी रेटिंग-चार स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)
Release Date-19 February, 2016
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)