-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
हरियाणा के किसी गांव में रहने वाले फौजा की दस पुश्तों ने फौज में रह कर देश की सेवा की है। किसी वजह से फौजा सेना में नहीं जा सका। उसकी तमन्ना है कि उसका बेटा फौज में जाए। लेकिन उसके बेटे का मन तो कहीं और है। क्या यह बेटा अपने पिता की तमन्ना पूरी करेगा?
इस फिल्म को सच्ची घटनाओं से प्रेरित बताया जा रहा है। साफ है कि उन घटनाओं में इतना तो दम होगा कि इसे लिखने-बनाने वाले उनसे प्रेरित हुए। लेकिन उन घटनाओं को एक फिल्म की कहानी के तौर पर बुनते हुए मामला हल्का रह गया है। हालांकि लेखक प्रवेश राजपूत की लिखी कहानी अच्छी है और उसमें ईमानदारी झलकती है लेकिन आकाश सिंह के साथ मिल कर उन्होंने जो पटकथा लिखी है वह निराश करती है। लेखन में कल्पनाओं का अभाव है, सीन बहुत लंबे और बेवजह खिंचे हुए लगते हैं। बहुत जगह पटकथा अतार्किक भी हो उठती है।
किरदारों को खड़ा करने में भी ज़ोर नहीं लग सका है। लेखक की पिछली फिल्म ‘छोरियां छोरों से कम नहीं होतीं’ के उलट इस फिल्म की दोनों छोरियों (नायक की बहन और प्रेमिका) के किरदार बहुत कमज़ोर हैं। सच तो यह है कि फौजा के किरदार को छोड़ कर और किसी की भूमिका कायदे से उभर ही नहीं सकी। इस हरियाणवी फिल्म के किरदारों की बोली भी कभी हरियाणवी, कभी हिन्दी तो कभी पंजाबी हो जाती है। सिनेमा का शिल्प कहता है कि जब आप कहानी के बीच-बीच में नैरेशन दें तो समझिए कि आप सीन लिख और बना नहीं पा रहे हैं। फिर जिस कहानी पर कोई नाम न फिट बैठे और मुख्य किरदार के नाम पर उसका नाम रखना पड़े तो संदेह होता है कि बनाने वाले आखिर कहना क्या चाहते हैं।
निर्देशक प्रमोद कुमार का काम कमोबेश सही रहा है। कई जगह उन्होंने बेहतर दृश्य रचे हैं। दृश्यों की लंबाई पर ध्यान देते हुए इन्हें संपादित किया जाता तो फिल्म निखर सकती थी। 95 मिनट की अवधि में भी ढेरों गाने डाले गए हैं जो एक-दो बार सही लग कर अखरने लगते हैं। लोकेशन अच्छी हैं, कैमरा वर्क बढ़िया।
कलाकारों ने हालांकि अपनी तरफ से मेहनत की है लेकिन जब किरदार ही हल्के हों तो वह मेहनत ज़ाया नज़र आती है। कार्तिक धामू, हरिओम कौशिक, संदीप शर्मा, जोगिंदर देशराज सिंह आदि के बीच में पवन मल्होत्रा हीरे की तरह चमकते हैं। लेकिन उन्हें सिक्ख क्यों बनाया गया…!
अंत में भावुक करती यह फिल्म देश के फौजियों को सलाम करती है। लेकिन यह सैल्यूट कड़क नहीं है। काश, कि इसे कस कर लिखा और बनाया जाता।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-01 June, 2023 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)