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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-किसी झील का कंवल ‘ड्रीमगर्ल 2’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/08/25
in फिल्म/वेब रिव्यू
1
रिव्यू-किसी झील का कंवल ‘ड्रीमगर्ल 2’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

पहले फिल्मी कहानी सुन लीजिए- मथुरा में रह रहे कर्मवीर और उसके पिता पर लाखों का कर्ज़ा है। क्रेडिट कार्ड का बिल भरने के लिए आने वाले फोन पर कर्मवीर, पूजा बन कर बात करता है। उसकी अमीर गर्लफ्रैंड के पिता ने शादी के लिए शर्त रखी है कि छह महीने में 25 लाख जमा कर लो। अपने दोस्त के कहने पर वह पूजा बन कर एक क्लब में नाचता-गाता है तो क्लब का मालिक उसका दीवाना हो जाता है। दोस्त की मदद के लिए वह पूजा बन कर उसके होने वाले साले का इलाज करने जाता है तो पैसे के लिए उसे उसी साले से शादी करनी पड़ जाती है। यानी शहर का हर आदमी इस पूजा के पीछे पड़ा है, बिना यह जाने कि उनकी ड्रीमगर्ल यह पूजा असल में कोई दूजा है।

अब कहानी का वह हिस्सा सुनिए जो फिल्म नहीं बताती- कर्मवीर और उसके पिता पर किस बात का कर्ज़ा है? कोई काम-धंधा, ऐश-आराम तो वह कर नहीं रहे हैं। खंडहर जैसे घर में भिखारियों से भी बदतर ज़िंदगी जी रहे बारहवीं तक पढ़े इस लड़के में एक भी अच्छाई नहीं है तो फिर एक करोड़पति, कामयाब वकील की बहुत सुंदर, वकील बेटी उस पर कैसे मर मिटी? प्यार अंधा होने के साथ-साथ बेदिमाग भी होता होगा। बाप-बेटा रोज़ साथ बैठ कर शराब पीते हैं लेकिन इनकी बातें और अकड़ देखिए, वाह-वाह…! फिल्म का हर किरदार दूसरे किरदार से सिर्फ बदतमीज़ी से बात क्यों करता है? और अंत में करोड़पति बाप अपनी बेटी का हाथ अभी भी अपने खंडहर में निठल्ले बैठ कर शराब पी रहे फुकरे हीरो के हाथ में क्यों दे रहा है, और वह भी खुशी-खुशी…?

करीब चार साल पहले आई फिल्म ‘ड्रीमगर्ल’ (रिव्यू-किसी ‘सायर’ की ‘गज्जल’-ड्रीम गर्ल) में भी यही दिक्कत थी कि सब्जैक्ट तो ‘हटके’ किस्म का ले लिया और उसमें मसाले भी भर-भर कर डाल दिए जिसे लोगों ने चटखारे लेकर चाटा भी, लेकिन कुछ सॉलिड, कुछ पौष्टिक नहीं परोस पाए। यही ‘गलती’ इस बार भी की गई है, जान-बूझकर। इसे ‘जान-बूझकर’ की गई गलती इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस फिल्म को लिखने-बनाने वालों को मालूम है कि आप दर्शक लोग जब किसी ऐसी मसालेदार, हंसने-हंसाने वाली फिल्म देखने जाते हैं तो आपका ध्यान मसालों पर होता है, उनकी क्वालिटी पर नहीं और उन चीज़ों पर तो बिल्कुल ही नहीं जिन पर ये मसाले लपेटे जाते हैं। अगर यह सच न होता तो अपने यहां के हर शहर की सड़कों पर इफरात में मिल रहे 20 रुपए वाले मोमो हम-आप चटखारे लेकर न खा रहे होते। खैर…!

अपनी पिछली फिल्म से पहली बार निर्देशक बने राज शांडिल्य ‘कॉमेडी सर्कस’ के सैंकड़ों एपिसोड लिख कर आए थे, इसलिए उन्हें इतना तो पता था कि कहानी में नमक-मसाला कैसे लगाना है, उसे चटखारेदार कैसे बनाना है। इस बार भी उन्होंने कॉमेडी शोज़ के अलावा रोज़मर्रा इस्तेमाल होने वाले कॉमिक-पंचेज़ का जम कर इस्तेमाल किया है और किरदारों के बीच तमीज़, झिझक, शर्म आदि को किनारे रखते हुए उन पंचेज़ को जायज़ भी ठहरा दिया है। यानी कौन, किससे किस लहज़े और किन शब्दों में बोल रहा है, इस पर उन्होंने न खुद दिमाग लगाया है और न ही आपसे ऐसी उम्मीद रखी है। हां, एक बात ज़रूर बढ़िया की गई है कि मूल कहानी के इर्द-गिर्द जो ट्रैक बिछाए गए हैं उनमें आने वाले सहायक कलाकारों को भी अच्छा-खासा रोल मिला है। फिल्म की हीरोइन अनन्या पांडेय से ज़्यादा बड़ा और बेहतर रोल तो सीमा पाहवा को मिला है। अनन्या को वैसे भी दिमागहीन लड़की का रोल दिया गया है और उन्होंने उसे वैसे ही निभाया भी है, बिना ज़्यादा दिमाग लगाए।

आयुष्मान खुराना के काम में कोई कमी नहीं है। सीमा पाहवा, अन्नू कपूर, परेश रावल, मनजोत सिंह, असरानी, विजय राज़, मनोज जोशी, रंजन राज आदि ने जम कर काम किया है। अभिषेक बैनर्जी इस थके हुए रोल में क्यों आए और राजपाल यादव बार-बार जोकरनुमा रोल क्यों करने लगे हैं, यह तो वहीं बता सकेंगे। फिल्म कब मथुरा से आगरा और आगरा से मथुरा पहुंच जाती है, पता ही नहीं चलता। फिल्म की रफ्तार तेज़ है, सो यह सोने नहीं देती। अंत में भाषण पिला कर ज़रूर बोर कर देती है। लगभग सभी कलाकारों ने ब्रज की बोली को पकड़ने की अच्छी चेष्टा की है। यह अलग बात है कि इन तमाम ब्रजवासियों के बीच पंजाबी गाना बज रहा है और लोग एन्जॉय भी कर रहे हैं। खैर, सानूं की…!

यह फिल्म अपने मसालेदार कॉमिक पंचेज़ और सीन्स के चलते टाइमपास किस्म की तो ज़रूर बन गई है लेकिन इस की स्क्रिप्ट में झोलझाल ज़्यादा है। काश, कि हमारे फिल्मकार नॉनसैंस कॉमेडी लिखते समय थोड़ी और सैंस लगा लिया करें। मुमकिन है तब ये लोग कुछ और बेहतर सिनेमा रच पाएं-आज नहीं तो कल…!

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-25 August, 2023 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: abhishek banerjeeananya pandayannu kapoorasraniAyushmann Khurranadream girldream girl 2dream girl 2 reviewmanjot singhmanoj joshiparesh rawalraj shandilyarajpal yadavranjan rajseema pahwavijay raaz
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Comments 1

  1. NAFEESH AHMED says:
    2 years ago

    कटाक्ष भरा रिव्यु….
    शायद लिखने वाले अगर पढ़ें तो सीख ज़रूर लेंगे…
    एक होड़ सी लग गयी है पंचेज़ डायलॉग की.. बस कुछ भी हो परोस दो…और बुलवा दो…

    अच्छे टाइमपास का टैग दुआ जी ने जो दिया है….वह अच्छा है…

    Reply

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