-दीपक दुआ…
हिन्दी फिल्म पत्रकारिता की अमूमन दोयम दर्जे की समझी जाने वाली विधा को अपने सशक्त कंधों पर उठा कर प्रतिष्ठा के शिखर पर स्थापित करने वालों में स्वर्गीय श्रीश चंद्र मिश्र का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है। ‘जनसत्ता’ में बतौर समाचार-संपादक कार्य करते हुए उन्होंने जिस तरह से सिनेमा, क्रिकेट व अन्य विषयों पर सधे हाथों से लिखा, वैसी मिसाल कम ही देखने को मिलती है। 2021 में उनके असमय चले जाने के समय उनके ढेरों लेखों से सजी यह पुस्तक तैयार हो चुकी थी जो उनके जाने के कई महीने बाद छप कर आई। तीन सौ से भी अधिक पन्नों वाली इस पुस्तक में अपने 62 लेखों के जरिए श्रीश जी पाठकों को सिनेमा की सपनीली दुनिया के आर-पार ले जाने का काम बखूबी करते हैं।
पुस्तक के नौ अध्यायों में उनकी लेखनी का चक्र सिनेमा से जुड़े हर पठनीय विषय पर चला है। फिल्मों में भूत-प्रेत, फिल्मी न्याय का अंदाज, सफल फिल्मी जोड़ियां, अदाकारों में निर्माता बनने की होड़, पर्दे पर दिखती खाकी वर्दी, खलनायिकी, हास्य के रंग, लीक तोड़ती फिल्मों जैसे लेखों में श्रीश जी अपने सिनेमाई ज्ञान के अतिरिक्त अपनी सहज-सरल किंतु प्रभावी भाषाशैली से भी जम कर असर छोड़ पाते हैं। इस पुस्तक को पढ़ते हुए हैरानी होती है कि कैसे एक फिल्म पत्रकार के तौर पर उन्होंने सिनेमा के भीतर-बाहर के हर विषय, हर प्रसंग पर अपनी दृष्टि बनाए रखी और उस पर गहन अवलोकन के बाद विस्तार से लिखा भी। फिल्मी प्रेम के अलग अंदाज, फिल्मी परिवारों से आई बेटियों के जलवे, फिल्मों का ट्रेन से नाता, हिन्दी फिल्मों में विदेशी चेहरे, हमशक्लों का फिल्मी संसार, इतिहास से आंख चुराती फिल्में, फिल्मी सितारों की राजनीति, फिल्मों में होली के रंग जैसे लेखों के जरिए उनकी कलम ने भी ढेरों रंग बिखेरे हैं।
एक फिल्म पत्रकार के साथ बड़ी दिक्कत यही होती है कि उस अकेले शख्स से अतिगंभीर से लेकर मसालेदार स्तर तक के लेखन की अपेक्षा की जाती है। श्रीश जी यहां भी खरे उतरे और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की प्रासंगिकता जैसे धीर-गंभीर विषय से लेकर सलमान खान का अभिनेत्रियों से नाता जैसे हल्के-फुल्के विषय पर उन्होंने जम कर लिखा। यह पुस्तक ऐसे कई लेखों को अपने भीतर समेटे हुए है।
इस पुस्तक का एक और उजला पहलू तब सामने आता है जब श्रीश जी तलत महमूद, मन्ना डे, प्राण, नसीरुद्दीन शाह, प्रदीप कुमार, अमजद खान, देव आनंद, बेगम पारा, श्याम बेनेगल, रजनीकांत जैसी फिल्मी शख्सियतों पर खुल कर लिखते हैं। श्रद्धांजलि वाले अध्याय में सदाशिव अमरापुरकर, नंदा, राजेश खन्ना, फारूक शेख, यश चोपड़ा, देवेन वर्मा, रवींद्र जैन आदि के व्यक्तित्व व कृतित्व को भी वे प्रभावी ढंग से रेखांकित करते हैं।
वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज इस पुस्तक में दी गई अपनी टिप्पणी में लिखते हैं कि श्रीश जी का अखबारी लेखन इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि उन्होंने न केवल अपने समय को लिपिबद्ध किया बल्कि ऐसी बातें कहीं जो कालातीत हैं, आज भी महत्वपूर्ण हैं और प्रासंगिक भी। हालांकि पुस्तक की कीमत 950 रुपए काफी ज्यादा महसूस हो सकती है फिर भी सिनेमा के चितेरों के लिए संधीस प्रकाशन से आई यह पुस्तक एक ज़रूरी दस्तावेज की तरह है।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)